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देवकांता संतति भाग 6

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2057
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

आठवाँ बयान


''आप ऊपर के खतों में पढ़ आए हैं कि इन दुष्टों ने किस तरह दो मासूमों की हत्या की साजिश रची है।'' इन खतों के पीछे लगे बंसीलाल के लिखे एक कागज का मजमून बताता हुआ रामरतन पिशाच को बख्तावरसिंह समझकर बोला - मैं कितना मजबूर हूं कि सारी साजिश जानते हुए भी मैं कुछ नहीं कर सकता। मेरी मजबूरी शायद मेरे अलावा कोई दूसरा न समझ सके। मेरा दिल कहता है कि इस साजिश में गुनहगार मैं भी हूं। उन दोनों के अलावा शायद मैं ही तीसरा आदमी हूं जो इस साजिश से वाकिफ है। कितना दुष्ट हूं मैं भी कि सबकुछ जानते-बूझते भी मैं सबकुछ हो जाने देने के लिए मजबूर हूं। सच - इन दोनों के साथ-साथ गुनहगार मैं भी हूं। मुझे मालूम हो चुका है कि ये लोग किस घिनौने ढंग से इतना बड़ा पाप करने जा रहे हैं। मगर फिर भी मैं उनकी खिलाफत नहीं कर रहा हूं -- हूं ना मैं भी गुनहगार।

और आगे बंसीलाल ने इस प्रकार लिखा था-

खैर - मैंने यह फैसला किया कि जो गुनाह होने जा रहा है, उसे मैं अपनी आंखों से देखूं। इसीलिए मैंने एक काला लबादा पहना - चेहरे पर काली नकाब डाली और रात के पहले पहर से ही दारोगा के घर की निगरानी करने लगा। मैं रोशनदान के जरिए दारोगा के कमरे का सारा हाल बखूबी देख सकता था। उस वक्त दारोगा अपने कमरे में शीशे के सामने बैठा, चेहरे की लीपा-पोती कर रहा था। थोड़ी ही देर बाद मैंने देखा कि उसने अपनी सूरत कमला जैसी बना ली। रात का पहला पहर खत्म होने तक उसने जनाने कपड़े पहन लिए और पूरी तरह कमला बन गया।

और - फिर वह गुप्त तरीके से अपने घर से बाहर निकल गया।

मैं इसके पीछे इस तरह था कि वह मेरी मौजूदगी का हल्का-सा भी आभास न पा सके। मैं यहां पर वे सारी घटनाएं लिख रहा हूं जो मैंने अपनी आंखों से देखी हैं। कमला बना हुआ दारोगा सीधा महारानी कंचन के शयनकक्ष में पहुंचा। उसके दरवाजा खटखटाने पर खुद कंचन ने अंदर से दरवाजा खोला और फिर सामने कमला को देखकर बोली--- ''क्या बात है कमला? तू रात के इतने वक्त गए - यहां पर कैसे?''

''एक बहुत ही दुःखद और जरूरी खबर आपको देने आई हूं।'' दारोगा ने कमला की आवाज में कहा- ''अगर आप न चलीं तो गजब हो जाएगा।''

''क्यों, क्या बात है?'' कंचन ने चौंकते हुए पूछा- ''ऐसी क्या बात है?''

''दारोगा सा'ब वाकई दलीपसिंह से मिले हुए हैं।'' दारोगा ने कहा- ''वह अभी-अभी महाराज उमादत्त को अपने साथ खूनी घाटी ले गए हैं।''

''ये तुम क्या कह रही हो?'' महारानी कंचन एकदम चौंककर बोली- ''तमाम हाल को साफ-साफ और मुख्तसर में कहो!''

''ज्यादा मुख्तसर का तो इस वक्त समय नहीं है।'' दारोगा ने कहा- ''फिलहाल केवल इतना ही समझ लीजिए कि उस दिन का दारोगा सा'ब का बयान ठीक था या गलत - यही परखने के लिए मैं बराबर उसी समय से उनके पीछे थी। अभी कुछ ही देर पहले - दारोगा सा'ब के मकान पर दलीपसिंह का बलवंत नामक एक ऐयार आया और उसने दारोगा सा'ब से कहा कि - योजना के मुताबिक दलीपसिंह खूनी घाटी में पहुंच चुके हैं। उन्होंने खबर भिजवाई है कि आप फौरन राजा उमादत्त को साथ लेकर खूनी घाटी पहुंच जाएं। बस - वहां बड़ी आसानी से उमादत्त को कैद कर लिया जाएगा।''

''ये तू क्या कह रही है?'' महारानी कंचन लगभग चीख पड़ीं।

'चीखिए मत महारानी।'' दारोगा धीरे-से बोला-''आप नहीं समझतीं कि कितना खतरा है।' अभी ये नहीं पता लगा है कि राजमहल में कौन-कौन-से मुलाजिम मेघराज के साथ मिल गए हैं --- हां, यह जरूर पता है कि बहुत-से मुलाजिम उसके साथ हैं। अगर उनके किसी ऐयार ने हमें बातें करते देख लिया तो फिर इसी वक्त गिरफ्तार कर लिए जाएंगे। अगर महाराज को बचाना है तो जोश से नहीं - बल्कि दिमाग से काम लीजिए।''

इन लफ्जों का महारानी कंचन पर काफी कुछ असर पड़ा -- और वह धीरे-से बोली-- ''उसके बाद दारोगा मेघराज ने क्या किया?''

''बलवंत की बात सुनते ही उन्होंने उसे यह कहकर विदा कर दिया कि वे थोड़ी देर बाद उमादत्त को अपने साथ लेकर खूनी घाटी पहुंच रहे हैं। बलवंत के जाने के बाद दारोगा साव महाराज से मिले और उन्हें धोखे में डालकर अपने साथ ले गये हैं।''

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