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देवकांता संतति भाग 6

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2057
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

दलीपसिंह के मुंह से ये लफ्ज सुनकर मेघराज के चेहरे पर ऐसे भाव उभर आए - मानो वह दलीपसिंह की तारीफ करना चाहता हो और वही उसने किया भी बोला- ''वाकई यह ख्याल आपके दिमाग में खूब आया। फिलहाल उनके लिए तिलिस्म से मुनासिब कोई जगह नहीं है। उस तिलिस्म में दादा को रखकर हम बेफिक्र हो सकते हैं। उसके फरिश्ते भी अंदाजा नहीं लगा सकेंगे कि हमने उन्हें तिलिस्म में रखा है। इस तरह दादाजी की तरफ से बेफिक्र होकर हम शेरसिंह से निपट सकते हैं। आपको उससे घबराने की इतनी जरूरत नहीं है - उससे मैं खुद ही निपट लूंगा।''

''लेकिन अगर उसे किसी तरह यह मालूम हो गया कि दादाजी तिलिस्म में है?'' दलीपसिंह ने सम्भावना जाहिर की।

''आप कैसी बातें करते हैं?'' मेघराज बोला- ''शेरसिंह भी आदमी है, कोई भगवान तो नहीं है। उसे भला कैसे पता लगेगा?''

''वो तो ठीक है।'' दलीपसिंह बोला- ''यह तो मैं भी समझता हूं कि यह भेद उसे आसानी से पता लगने वाला नहीं है। यह भेद हम दोनों केवल अपने तक ही रखेंगे। दादाजी का पता हम अपने किसी सगे को भी नहीं देंगे। अत: शेरसिंह को किसी भी ढंग से पता नहीं लगेगा, लेकिन फिर भी हमें यह सोचकर चलना चाहिए कि मान लो किसी ढंग से उसे पता लग गया तो हम दादाजी की हिफाजत किस तरह से करेंगे?''

''आप तो बेकार के ही वहम में पडते हैं।' मेघराज ने कहा- ''जब हम दोनों में से कोई भी किसी तीसरे आदमी को यह बात नहीं बताएगा तो भला उसे पता ही कैसे लगेगा? यह ख्याल ही दिमाग में लाना एकदम बेकार है।''

''मगर फिर भी, एहतिहातन अगर हम यह मानकर चलें तो क्या बुराई है?''

''आपकी बातों से जाहिर होता है कि शेरसिंह आपके दिमाग पर हव्वा बनकर छा गया है।'' मेघराज बोला- ''जो बात एकदम नामुमकिन है, आप उसी को मानकर चलने के लिए कह रहे हैं। मगर आपके दिल की तसल्ली के लिए मैं मान ही लेता हूं कि शेरसिंह को किसी तरह पता भी लग गया - परंतु फिर भी आप बेफिक्र रहिए - तिलिस्म में जाकर वह दादाजी के जिस्म पर एक उंगली भी न उठा सकेगा।''

''यह बात तुम इतने दावे से कैसे कह सकते हो?'' राजा दलीपसिंह बोला।

''उस तिलिस्म का दारोगा हूं मैं!'' मेघराज सीना फुला और अकड़ा कर फिर गर्व के साथ बोला-- ''मेरी जानकारी के बिना भला उस तिलिस्म में कोई कदम भी रख सकता है? जैसे ही मेरी इजाजत के बिना तिलिस्म में कोई जाएगा वैसे ही मुझे पता लग जाएगा। फिर वह सात जन्म तक भी मेरी इच्छा के बिना बाहर नहीं निकल सकता।''

''इसका मतलब ये है कि तिलिस्म में दादाजी हिफाजत से रहेंगे।'' दलीपसिंह ने कहा।

''बिल्कुल हिफाजत से।'' मेघराज बोला- ''बस, आपने ठीक सोचा है। हम उस वक्त तक दादाजी को तिलिस्म में ही रखेंगे - जब अक कि शेरसिंह से नहीं निपट लें! दूसरी ओर - शेरसिंह से निपटने का भी साज-सामान मेरे पास है!''

''वह क्या?''

''गुरुवचनसिंह ने गौरवसिंह और वंदना को राजनगर भेजा था।'' मेघराज ने कहना शुरू किया--- ''उनका काम था कि वे पिछले जन्म के देवसिंह और इस जन्म के विजय को यहां लें आएं, ताकि दुश्मनों से निपटा जा सके और तिलिस्म तोड़ा जा सके। यह खबर किसी तरह हमारे राजा था जीजा उमादत्त को लग गई। उन्होंने अपने ऐयार गोवर्धनसिंह के नेतृत्व में कई ऐयार राजनगर भेजे। उनका काम ये था कि वे किसी तरह से देवसिंह को बहकाकर राजा उमादत्त के पास ले आएं। वे अपने काम में पूरी तरह तो कामयाब न हो सके, लेकिन हां, उनके कुछ खास आदमियों को उमादत्त के पास पहुंचाने में वे कामयाब जरूर हो गए हैं।''

“उससे क्या होगा?''

''इस बात की गहराई को अभी आप नहीं समझेंगे!'' मेघराज ने कहा- ''विजय तो उन ऐयारों के हाथ से निकल गया। गौरवसिंह उसे लेकर गुरुवचनसिंह के पास पहुंच चुका है। गुरुवचनसिंह ने उमादत्त के ऐयार गोवर्धनसिंह को भी गिरफ्तार कर लिया है। ऐयारों ने आकर बताया है कि विकास नाम के लड़के ने रोशनसिंह को मार डाला है। मगर उमादत्त के ऐयारों ने विकास को गिरफ्तार कर लिया है। उनके साथ धनुषटंकार नाम का एक बंदर भी है। विकास नाम का वह लड़का विजय और अलफांसे को वहुत ही प्यारा है। उसके लिए वे दोनों बहुत कुछ कर सकते हैं। हम शेरसिंह और देवसिंह को अपने कब्जे में करने के लिए विकास को प्रयोग कर सकते हैं। उसे बचाने के लिए वे अपनी जान तक दे सकते हैं।''

''लेकिन तुम्हें यह सब कैसे मालूम?'' दलीपसिंह ने पूछा।

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