ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 6 देवकांता संतति भाग 6वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
पाँचवाँ बयान
पिशाचनाथ अभी तक बख्तावरसिंह के ही भेस में था। वह सीधा नम्बर आठ के पास पहुंचा और नम्बर आठ ने उसे देखते ही सलाम बजाया। नम्बर आठ भी इज्जत देने के लिए खड़ा हो गया। पिशाचनाथ ने न तो खुद बैठने की कोशिश की और न ही उसे बैठने के लिए कहा। खड़े-खड़े ही उसने सवाल किया- ''नम्बर दस को निकाल लाए?''
''हां उस्ताद।'' नम्बर आठ बोला- ''दारोगा साहब के यहां जब आपने मुझे हुक्म दिया था, मैं उसी वक्त रवाना हो गया था। शाम तक नम्बर दस को वहां से निकाला और अपने साथ लेकर यहां पहुंच गया था।''
''किसी तरह की परेशानी तो पेश नहीं आई?'' पिशाचनाथ ने पूछा।
''जी नहीं।'' नम्बर आठ ने जवाब दिया- ''वहां बख्तावरसिंह के दो-एक छोटे-छोटे ऐयार थे, सो मैंने उन्हें धोखा दे दिया।''
(पाठक समझ गए होंगे कि यह बयान पांचवें भाग के छठे, सातवें व आठवें बयान से आगे का है। आप पढ़ ही चुके हैं कि पिशाचनाथ किस तरह रामरतन और चंद्रप्रभा को यहां अपने अड्डे पर ले आया। उन दोनों को एक कमरे में आराम से बैठाकर वह यहां नम्बर आठ से बातें करने आया है। पाठकों को अच्छी तरह से याद होगा कि पांचवें भाग के छठे बयान में जिस वक्त मेघराज, बख्तावरसिंह, विक्रमसिंह और गुलबदन को कैदखाने में डालने को कहा गया था, उसी बीच पिशाचनाथ ने नम्बर आठ को करीब बुलाकर उसके कान में कुछ कहा था। निश्चय ही पाठक यहां समझ गए होंगे कि उसके कान में क्या कहा था। पाठक यह बयान उन्हीं तीनों बयानों से आगे का समझकर पढ़ें।)
''हम रामरतन और चंद्रप्रभा को यहां ले आए हैं।'' पिशाचनाथ ने कहा- ''वे अभी तक हमें अपना पिता और श्वसुर बख्तावरसिंह ही समझ रहे हैं। कुछ ही देर बाद उन्हें इसी भुलावे में रखकर हम उनसे कलमदान का भेद पूछ लेंगे।''
''लेकिन कलमदान का पता लगाकर आप क्या करेंगे, उस्ताद?'' नम्बर आठ ने पूछा।
''बहुत कुछ करेंगे।'' पिशाचनाथ भेद-भरी मुस्कान के साथ बोला- ''तुम अभी सारी बातें नहीं समझोगे। ये बात तो साफ है कि मेघराज की कमजोर नस यह कलमदान ही है। कलमदान का भेद जानकर मैं उसे अपना गुलाम बना लूंगा। तुम जानते हो कि मैंने बहुत-से काम बेईमानी के किए हैं। मगर अपना एक खास उद्देश्य पूरा करने के लिए कई काम नेकनीयती के कर रहा हूं। मुझे पहले ही पता लग चुका था कि दारोगा की कमजोरी कोई कलमदान है, जिसका भेद इस दुनिया में फिलहाल रामरतन और चंद्रप्रभा जानते हैं। मैं इस भेद का पता लगाने के लिए कटिबद्ध था क्योंकि मैं मेघराज को अपनी मुट्ठी में करना चाहता था। उसे मुट्ठी में करने का केवल एक ही तरीका मेरे पास था और वो ये कि किसी तरह मैं कलमदान का पता लगा लूं। यह भेद जानने वाले रामरतन और चन्द्रप्रभा दारोगा की कैद में थे। कैद भी ऐसी कि वहां तक मैं पहुंच नहीं सकता, इसलिए मैंने मेघराज का दोस्त बनने का नाटक किया। उसे अपनी दो-एक बातें ऐसी बताई जो भेद की लगीं और वह समझे कि मैं उस पर यकीन करके भेद की बातें बता रहा हूं। इन्हीं सब बातों में फंसाकर मैंने उसे इस बात के लिए तैयार कर लिया कि वह मेरा पीछा टमाटर वाले से छुड़वाए और मैं कलमदान उसे सौंपता हूं। मगर बीच में बख्तावरसिंह, गुलबदन और विक्रमसिंह गड़बड़ करने लगे सो उन्हें अपने रास्ते से हटाना जरूरी हो गया था। जिस-जिस तरह से मैँ इन्हें यहां लाया हूं--वह तो तुम जानते ही हो।''
''लेकिन वह उद्देश्य क्या है, जिसके लिए यह सब आप कर रहे हैं।'' नम्बर आठ ने पूछा।
''वह तो समय पर खुद-बखुद खुल जाएगा।'' पिशाचनाथ ने कहा- ''लेकिन हां, मेघराज ने खाया खूब धोखा।''
''मैं आपकी बातों का पूरा मतलब नहीं समझा।'' नम्बर आठ ने कहा।
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