ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 6 देवकांता संतति भाग 6वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
''बलभद्र कौन?'' आंखें बंद किए हुए ही विजय ने पूछा- ''यह किस भद्र पुरुष का नाम है?''
''गोमती के दोनों साथियों में से एक का।'' गणेशदत्त ने जवाब दिया- ''बलभद्र ने जब स्टीमर में होने वाली घटना का खुलासा हाल गोमती से कहा तो गोमती का दूसरा ऐयार साथी जोश में आकर बोला-- ''चलो, हम स्टीमर पर चलकर रोशन और गोवर्धनसिंह को बचाते हैं। अब उनका भेद तो खुल ही गया है। अब उन्हें दुश्मन के हाथ में पड़ने देना भी ठीक नहीं है।''
''नहीं।'' गोमती ने अपने साथी की राय की खिलाफत की- ''इस वक्त हमारा स्टीमर पर जाना नुकसानदायक साबित होगा। वे लोग हमसे ज्यादा ताकतवर हैं। हमारे हाथ में जो भी कुछ है वह भी जाता रहेगा।''
''हमारे हाथ में है ही क्या?'' बलभद्र ने कहा।
''ब्लैक व्वॉय और निर्भयसिंह जो हमारी कैद में हैं।'' गोमती बोली-- ''अगर हम रोशनसिंह और गिरधारीसिंह को छुड़ाने के लालच से स्टीमर पर जाएंगे तो हम न केवल इन दोनों को भी अपने कब्जे से खो देंगे, बल्कि खुद भी उनके शिकंजे में फंस जाएंगे।''
'तो क्या हम रोशनसिंह और गोवर्धनसिंह की मौत का तमाशा चुपचाप देखते रहें?'' गोमती के दूसरे साथी ने जोश में कहा।
''फिलहाल के हालातों में समझदारी इसी में है।'' गोमती ने जवाब दिया- ''रोशनसिंह और गोवर्धनसिंह को वे लोग जान से तो मार नहीं देंगे - ज्यादा-से-ज्यादा गिरफ्तार करेंगे। हम बाद में उन्हें उनकी कैद से निकालकर ला सकते हैं।''
बलभद्र और दूसरा साथी भी गोमती की बातों से सहमत हो गए। इस वक्त वे साफ तौर से समझ रहे थे कि स्टीमर पर जाकर विकास आदि से टकराना नुकसानदायक ही होगा। ब्लैक ब्वाय और निर्भयसिंह उनके पास कैद थे ही। उन दोनों को उन्होंने अभी तक बेहोश कर रखा था। दो गठरियां बनाकर उन्हें उन्होंने नाव के एक कोने में बांध रखा था। नाव स्टीमर के साथ तेजी से भाग रही थी। कुछ ही देर बाद दोनों स्टीमर सागर में पास-पास रुके।
(पाठको, यह वही समय था जब विकास गोवर्धनसिंह से निपटने विजय वाले स्टीमर पर गया था। अंदर जाकर विकास ने क्या किया था - यह हाल तो हमारे पाठक चौथे भाग के नौवें बयान में पढ़ आए हैं)
''यह हाल जो मैं आप लोगों के सामने अपने अलफाजों में बयान कर रहा हूं उमादत्त के सामने गोमती, बलभद्र और सारंगा ने मिलकर बयान किया था।'' गणेशदत्त बोला- ''सारंगा गोमती के दूसरे साथी का नाम था। जिस वक्त स्टीमर रुके हुए थे, उस वक्त सारंगा स्टीमर और नाव के बीच की रस्सी को पकड़ता हुआ स्टीमर पर गया। उसने विजय वाले स्टीमर का अंदर का हाल देखा। यहां उसने विकास को गोवर्धनसिंह को यातना देते देखा था। देखने के बाद वह चुपचाप नाव पर लौट आया।''
''क्या बात है - वहां क्या हो रहा है?'' गोमती ने सवाल किया।
''विकास गोवर्धनसिंह को यातना दे रहा है।'' सारंगा ने बताया- ''गौरवसिंह उसे उससे बचाने की कोशिश कर रहा है।''
''हमने ठीक कहा था ना।'' गोमती बोली- ''गौरवसिह रोशन अथवा गोवर्धनसिंह को ऐयार होने के नाते मरने नहीं देगा।''
''उस लड़के का रूप बहुत ही भयानक हो रहा है।'' सारंगा ने बताया- ''वाकई इस वक्त उससे टकराना मौत को दावत देने के बराबर है। हमारी भलाई इसी में है कि हम चुपचाप ही रहें, वर्ना हमारी भी खैर नहीं है।''
उन लोगों ने ऐसा ही किया। चुपचाप नाव में बैठे हुए वे तीनों दूर खड़े स्टीमरों को देखते रहे। कुछ देर बाद उन्होंने विजय वाले स्टीमर की छत पर से एक साए को विकास वाले स्टीमर की छत पर कूदते देखा। - ''यह विकास ही होगा।'' गोमती बोली- ''मुझे इन सबमें यह लड़का ही खतरनाक लग रहा है।''
अभी उसकी बात पूरी हुई भी नहीं थी कि विकास वाला स्टीमर बेड़ी तेजी से स्टार्ट हुआ और सागर के पानी में एक बड़ा-सा गोला बनाता हुआ वापसी के लिए मुड़ गया। गोमती इत्यादि की नाव भी रस्सी से बंधी हुई स्टीमर के पीछे-पीछे थी।
स्टीमर सागर में तेजी से उसी तरफ दौड़ पड़ा जिधर से आया था। कुछ सायतों तक गोमती, सारंगा और बलभद्र इसका सबब न समझ सके। आखिर बलभद्र ने अपने दिल के जज्वात- यूं कहे- ''ये वापस लौटने का कुछ सबब समझ में नहीं आता। आखिर ये लड़का चाहता क्या है?''
''इस बार स्टीमर की रफ्तार भी दुगुनी तेज है।'' सारंगा ने हिचकोले खाती नाव में खुद को संभाले रखने का प्रयास करते हुए कहा।
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