लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 5

देवकांता संतति भाग 5

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2056
आईएसबीएन :0000000

Like this Hindi book 0

चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''रास्ता है नहीं---अभी बनाया जाएगा।'' कहते हुए मेघराज आकृति के दाहिने हाथ की तरफ बढ़ा। उस हाथ की उंगली में एक अंगूठी थी। मेघराज ने बेखौफ संगमरमर की वह अंगूठी आकृति की उंगली से निकाल ली। अंगूठी के उंगली से जुदा होते ही ऐसी गड़गड़ाहट हुई, मानो वहुत-सी मशीनें चल पड़ी हों, साथ ही संगमरमर के चबूतरे में एक ऐसा छोटा-सा मोखला बन गया.. जिसमें सें केवल एक ही आदमी रेंगकर अंदर जा सकता था। उस मोखले की तरफ इशारा करके मेघराज बोला- ''तुम चबूतरे में बनने वाले उस मोखले को देख रहे हो ना... यह तिलिस्म के अंदर जाने का रास्ता है। एक बार में केवल एक ही आदमी इसमें से रेंगकर अंदर जा सकता है। इसका सबसे बड़ा कमाल ये है कि इस वक्त इस मोखले को देखकर तुम्हें लग रहा होगा कि मेरे और तुम जैसे डीलडौल का आदमी ही अंदर जा सकता है, इससे मोटा नहीं। लेकिन हकीकत ये है कि आदमी चाहे जितना मोटा हो---इस रास्ते से होकर आराम से गुजरेगा। इसकी खासियत ये है कि आदमी चाहे जितना पतला हो अथवा मोटा, जो भी इसमें से रेंगकर जाएगा - उसे ऐसा लगेगा कि वह बहुत फंसकर निकल रहा है, अगर वह जरा मोटा होता तो कदाचित निकल नहीं पाता।

(बहुत-से पाठक जानते होंगे कि वैष्णोदेवी के भवन और कटरा शहर के ठीक बीच में 'अर्द्ध-कन्या' नामक एक जगह हैं। वहां एक सुरंग है - जिसकी मान्यता ये है कि जब भैरों ने माता को बुरी नजर से देखा तो माता नौ माह तक उस सुरंग में छुपी रही थी। इसी से यह माना जाता है बच्चा गर्भ में नौ माह तक रहता है। जो भी यात्री वैष्णोदेवी जाते हैं -- वे उस सुरंग में से जरूर निकलते हैं। अर्द्ध-कन्या की उस छोटी-सी सुरंग में यही खासियत आज भी है - जो हमने तिलिस्म के रास्ते वाले मोखले के बारे में बयान किया है। )

तुम तो इस तिलिस्म के बारे में बड़ी अजीब-अजीब बातें बता रहे हो।'' पिशाचनाथ बोला।

''इस तिलिस्म के दारोगा ठहरे हम।'' गर्व से मुस्कराकर मेघराज बोला - ''पहले हम इस रास्ते से अंदर जाते हैं। तुम देखोगे कि जैसे ही हमारा जिस्म इस मोखले में लोप होगा - महाराज चांडाल के गले मे पड़ी माला की एक कली फूल बन जाएगी।''

और - तब जबकि मेघराज उसमें समा गया।

पिशाचनाथ को उसकी बात की सच्चाई का सुबूत मिल गया।

इसके बाद खुद पिशाचनाथ भी लालटेन साथ लेकर उस मोखले में रेंग गया। उसे ज्यादा देर नहीं रेंगना पड़ा और जल्दी ही एक छोटी-सी कोठरी में पहुंच गया। इस कोठरी में मेघराज खड़ा हुआ उसका इंतजार कर रहा था। कोठरी में आते ही पिशाचनाथ खड़ा हो गया। इस कोठरी के आले में गणेशजी की एक छोटी-सी संगमरमर की मूर्ति रखी थी।

गणेशजी की सूंड एक खास ढंग से दबाते वक्त मेघराज ने बताया कि अब वह रास्ता बंद हो गया है।

इस कोठरी में एक इतना छोटा-सा दरवाजा था--जिसमें से कोई भी आदमी बिना गर्दन झुकाए पार नहीं हो सकता था। उस दरवाजे की ओर इशारा करता हुआ मेघराज बोला- ''तुम देख रहे हो कि इस दरवाजे में से कोई भी आदमी बिना गर्दन झुकाए पार नहीं हो सकता। यहीं वह पच्चीसवाँ आदमी मरा था। जैसे ही गर्दन झुकाकर उसने यह दरवाजा पार करना चाहा, इसके ऊपरी भाग में से तेजी के साथ तेज धार वाला एक आरा नीचे गिरा और उसकी गर्दन कट गई। आरा दरवाजे के निचले हिस्से से लगकर पुन: ऊपर चला गया।''

''ओह !'' पिशाचनाथ के मुंह से केवल यही एक शब्द निकला।

''आओ!'' मेघराज ने कहा और गर्दन झुकाकर उस दरवाजे के पार हो गया। पिशाचनाथ उसके पीछे था। इस वक्त वे एक लम्बीचौड़ी सुरंग में थे जो दूर तक चली गई थी। दोनों साथ-साथ लालटेन की रोशनी में आगे बढ़ रहे थे।

''इस वक्त तुम्हें तिलिस्म में घूमना बहुत आसान लग रहा होगा।'' पिशाचनाथ के साथ-साथ चलता हुआ मेघराज बोला- ''मगर हकीकत पूछो तो किसी भी तिलिस्म में घूमना इतना आसान नहीं है। मेरे साथ तुम यहां तक इतनी आसानी से इसलिए पहुंच गए क्योंकि मैं इस तिलिस्म का दारोगा हूं। या तो तिलिस्म का दारोगा ही आराम से तिलिस्म में घूम-फिर सकता है या फिर वह, जिसने तिलिस्म से सम्बन्धित किताब पढ़ी हो।'' इसी तरह की बातें समझाता हुआ मेघराज पिशाचनाथ को अपने साथ लिये जा रहा था।

तिलिस्म के बारे में जो बातें वह पिशाचनाथ को समझा रहा था, अब उन्हें हम कहां तक लिखें। उसकी बातें तो इतनी हैं कि अगर हम लिखने बैठें तो यह पांचवाँ भाग भी उन्हीं में पूरा हो जाएगा। जबकि हमें अभी बहुत कथानक लिखना है। उन बातों से अभी यहां हमें कोई खास वास्ता भी नहीं पड़ेगा, अगर कहीं आगे चलकर पड़ा भी तो उसी वक्त लिख देंगे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

Bhatat Kankhara

Dec kantt santii6