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देवकांता संतति भाग 5

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2056
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

तीसरा बयान

 

अभी-अभी रात का दूसरा पहर शुरू हुआ है--इस वक्त हम अपने पाठकों को राजा उमादत्त के राज्य में बसी एक तवायफ के घर ले जा रहे हैं-

पाठको - तवायफ के नाम से यह न समझें कि हम कोई बेकार का बयान लिखने बैठ गए हैं। पाठकों को अच्छी तरह से यह समझ लेना चाहिए कि हम एक बहुत दिलचस्प और इस कथानक के कई भेदों पर से पर्दा उठाने का निश्चय करके आज लिखने बैठे हैं। आइए - हम तवायफ के उस कमरे में चलते हैं जहां वह मुजरा किया करती है। इस तवायफ का नाम धन्नो है और यह अपना मुजरा साधारण आदमियों के लिए नहीं, बल्कि राजा-महाराजा अथवा राजमहल के लोगों के लिए ही करती है। इस वक्त धन्नो के पास उस कमरे में केवल एक ही आदमी बैठा हुआ है। हमारे पाठक - इस आदमी को अच्छी तरह से पहचानते हैं, क्योंकि पहले इससे कई बार हमारा वास्ता पड़ चुका है।

यह और कोई नहीं बल्कि उमादत्त का दारोगा मेघराज ही है!

कदाचित आपको मेघराज के बारे में काफी कुछ याद होगा -- अगर याद न हो तो पिछले भागों पर सरसरी नजर मारकर उसके बारे में जान सकते हैं। यहां मुख्तसर में इतना ही लिख देना पर्याप्त है? मेघराज उमादत्त की रियासत का गद्दार दारोगा है और वह इस कोशिश में लगा हुआ है? किसी भी तरह से उमादत्त को गद्दी पर से हटाकर वह खुद ही राजा बन जाए...।

इरा वक्त धन्नो और मेघराज आमने-सामने बैठे हुए हैं...। कमरे में एक खूबसूरत कन्दील जल रहा है। कमरे के बीचो-बीच गद्देदार कालीन पर गाव तकियों का सहारा लिये ये दोनों बैठे हैं। ये तो हम जानते हैं कि उनमें कुछ बातें हो रही हैं - किन्तु हमें यह बिल्कुल खबर नहीं है कि वे कितनी देर से यहां बैठे हैं और आपस में क्या बातें कर रहे हैं। हां, हमने मेघराज का वह वाक्य जरूर सुना है जो अभी-अभी उसने कहा था। उसने कहा था-- 'धन्नो -- यहां का राजा बनने के बाद --- यहां की रानी मैं तुझे ही बनाऊंगा।'

'उमादत्त तो तुम्हारे जीजा हैं, तुम किसी भी तरह से उन्हें फंसा सकते हो?'

अभी धन्नो कुछ कहने के लिए मुंह खोलती ही है कि कमरे में एक अर्दली प्रविष्ट होकर कहता है -- “पिशाचनाथ आए हैं और आपसे मिलना चाहते हैं। मैं उन्हें दरवाजे पर खड़ा करके आपकी इजाजत लेने चला आया।”

उसने ये शब्द धन्नो से कहे थे!

धन्नो और मेघराज ने एक दूसरे की ओर देखा, फिर मेघराज बोला-- 'तुम उसे बुला लो। जब तक वह यहां रहेगा, मैं अन्दर वाले कमरे में जाकर छुप जाऊंगा।' कहने के साथ ही मेघराज उठा और उस कमरे में चला गया। कमरे का दरवाजा बंद कर लिया। धन्नो ने अर्दली की ओर देखा और बोली-- 'उन्हें भेज दो!'

अर्दली चला गया और कुछ देर बाद पिशाचनाथ उस कमरे में प्रविष्ट हुआ।

(हम यहां पर पाठकों को यह जानकारी दे देना बहुत जरूरी समझते हैं कि यह रात उस रात से अगली रात है - जिस रात बलदेवसिंह और शामासिंह ने अपने घर में गिरधारीसिंह द्वारा तारा की लूटती अस्मत का तमाशा देखा था। अत: पाठकों को यह बयान -- आगे अच्छी तरह से ही यह बात समझकर पढ़ना चाहिए कि यह बयान - चौथे भाग के आठवें बयान से आगे का है।)

'आओ पिशाचनाथ!' उसकी अगवानी करने के लिए धन्नो उठकर खड़ी हो गई- 'बहुत दिनों के बाद धन्नो की याद आई...?'

'हां, पिछले दिनों मैं बहुत मशगूल रहा - इसलिए इच्छा होने के बावजूद भी नहीं आ सका।' पिशाचनाथ उसके पास आकर बोला।

धन्नो ने अपनी गोरी-गोरी अंगुलियों से उसका हाथ पकड़ लिया और अपने साथ लेकर कालीन की तरफ बढ़ती हुई बोली- 'ऐसा भला क्या काम पैदा हो गया, जिसमें तुम इतने मशगूल हो गए कि अपनी धन्नो को दर्शन देने भी नहीं आ सके...? तुम्हारे इंतजार में हर वक्त मेरी आंखें पथरा-सी गईं..।'

पिशाचनाथ बड़े अजीब ढंग से मुस्कराया और बोला- 'तुम्हारे दिलबरों की इस शहर में क्या कमी है धन्नो! मैं नहीं तो और बहुत से आते होंगे।'

धन्नो ने बड़ी कातिल अदा से पिशाचनाथ को देखा - और फिर बड़ी नजाकत के साथ आंखों को मटकाकर बोली- 'अभी तुमने धन्नो का दिल नहीं देखा है पिशाच..। ठीक है कि यहां बहुत-से आते हैं, लेकिन वे मेरे ग्राहक हैं - मगर कसम धड़कते दिल की - तुम तो इस दिल की धड़कन हो। कितनी ही बार तुमसे कह चुकी हूं कि अगर मुझे तुम अपनी पत्नी का दर्जा दे दो तो मैं सारी दुनिया को छोड़ सकती हूं।'

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