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देवकांता संतति भाग 4

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2055
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

ग्यारहवाँ बयान


अलफांसे को होश आया तो खुद को उसने एक कोठरी में पाया। यह कोठरी वह नहीं थी, जहां वह बेहोश हुआ था, बल्कि एकदम खाली और कोई दूसरी ही कोठरी थी। इस वक्त वह एक पत्थर के चबूतरे पर लेटा हुआ था और उसके पास ही गुरुवचनसिंह बैठे हुए थे। उसने गुरुवचनसिंह की ओर देखा तथा एकदम उठकर बैठ गया, बोला- ''ज्योतिषीजी... मुझे उसी कमरे में ले चलो... मैं फूलवती को देखना चाहता हूं।''

''पहले ये बताओ कि तुम कौन हो?'' गुरुवचनसिंह ने पूछा।

''मैं शेर.. अल.. शेरसिंह.. अलफांसे!'' अलफांसे ने कुछ अजीब-से ढंग से जवाब दिया।

''हां!'' गुरुवचनसिंह खुश होते हुए बोले- ''तुम्हारे दो नाम हैं, शेरसिंह और अलफांसे!''

''जी हां!'' अलफांसे ने कहा- ''मेरा दिमाग कहता है कि मैं अलफांसे हूं लेकिन ऐसा भी लगता है कि मैं शेरसिंह हूं। अपने अन्धे माता-पिता का बेटा, देवसिंह का भाई और फूलवती का पति। मुझे सबकुछ याद है, सुरेंद्रसिंह, चंद्रदत्त, हरनामसिंह, कांता... हां-हां मुझे सबकुछ याद आ रहा है, लेकिन नहीं, मैं तो अलफांसे  अंतर्राष्ट्रीय मुजरिम, सारी दुनिया की पुलिस मेरे पीछे है। लेकिन.. लेकिन मुझे भारत में जुर्म करने में ज्यादा मजा आता है क्योंकि वहां मेरा मुकाबला करने के लिए विजय है... विकास है... हां, मैं अलफांसे भी हूं और शेरसिंह भी... ओह, शेरसिंह तो पहले था... हां, याद आ गया... राजा सुरेंद्रसिंह ने मुझे मरवा दिया था। अब मैंने दुबारा जन्म लिया है... मेरा नाम अलफांसे है हां, शेरसिंह तो मैं पिछले जन्म में था, लेकिन... मैं भूला नहीं हूं... मुझे सब याद है... राजा सुरेंद्रसिंह ने मुझे मारा था... मैं उसे छोडूंगा नहीं... उससे बदला लूंगा... और.. और वो फूलवती का हत्यारा।'' कहते-कहते अलफांसे का चेहरा पुनः सुर्ख हो गया... मानो एक बार पुन: उसके दिमाग का संतुलन खोता जा रहा हो।

''सुनो शेरसिंह!'' इससे पहले कि अलफांसे फिर पागल-सा हो जाए, गुरुवचनसिंह ने उसे टोका- ''क्या इसे पहचानते हो?'' कहने के साथ उसने हाथ से बनी हुई एक पेंटिंग उसे दिखाई। उसे देखकर अलफांसे मुस्कराया और बोला- ''भला इसे नहीं पहचानूंगा.. ये तो मेरा भाई देवसिंह है। इसने ही विजय के रूप में दूसरा जन्म लिया है। मैं सबकुछ जानता हूं... लेकिन कमाल है.. इसने दोनों जन्मों में एक-सी ही सूरत पाई!''

''अब हमारा मनोरथ सफल हो गया शेरसिंह।'' गुरुवचनसिंह खुश होते हुए बोले- ''तुम्हें अपने दोनों जन्मों की याद बराबर है। हम यही चाहते थे.. हमारी ज्योतिष यही कहती थी। अब तुम्हें अपने दोनों जन्मों की पूरी तरह याद होगी।''

''हां... मुझे सबकुछ याद है।'' अलफांसे ने कहा।

''अच्छा!'' गुरुवचनसिंह ने पूछा- ''ये तो बताओ कि तुम्हें यहां तक कौन लाया?''

''अबे यार गुरुवचनसिंह क्या पूछते हो?'' अलफांसे ने कहा- ''तुम्हीं तो लाए हो। मुझे किसी बागीसिंह ने, जिसका नाम तुमने बलदेवसिंह बताया था, धोखा देना चाहा था। उसी की कैद से निकालकर तुम मुझे यहां तक लाए हो।''

''फिर यह भी याद होगा इस वक्त तुम कहां हो?''

अलफांसे ने एक बार कमरे को देखा और फिर मुस्कराकर बोला-- ''अब तुम किसी तरह की चिन्ता मत करो गुरुवचनसिंह, तुम्हारा प्रयोग सफल हो गया है। अब मेरा दिमाग भी पूरी तरह काबू में है। मैं जानता हूं कि इस जन्म में मेरा नाम अलफांसे और पिछले जन्म में शेरसिंह भी मैं ही था। इस जन्म में यानी अलफांसे के रूप में मैं एक विमान-दुर्घटना का शिकार हो गया था। फिर मैं बागीसिंह के चक्कर में आया... उसने मुझे हजरत बाग में कैद कर रखा था। बागीसिंह ने मुझे एक गलत-सलत कहानी सुनाकर बहका दिया था। उस वक्त तो मैं उसके चक्कर में इसलिए आ गया था, क्योंकि मुझे यह याद नहीं आ रहा था कि मैं शेरसिंह भी हूं। उसी वक्त तुम हजरत बाग में पहुंचे। मुझे सारी असलियत बताई, किन्तु यकीन नहीं आया। मुझे अपने अलफांसे वाले जीवन की सारी बातें याद हैं, जब से यहां आया हूं मुझे वह सब भी याद है। उस कोठरी में जाने से पहले मुझे अपने शेरसिंह वाले जीवन की कुछ भी याद नहीं आ रही थी। लेकिन उस कमरे में मुझे वह सबकुछ भी याद आ गया है.. मैं शेरसिंह वाले जीवन की एक-एक घटना बता सकता हूं। मेरी हालत इस वक्त ठीक उस बच्चे जैसी है, जिसे बचपन से ही अपने पूर्व जन्म की याद रहती है। पूर्वजन्म की भी सब बातें पता रहती हैं। इस वक्त मेरी स्थिति भी ठीक वैसी ही है। जहां मैं इस वक्त हूं... इस जगह को भी अच्छी तरह पहचानता हूं... यह रमणी घाटी है।''

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