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देवकांता संतति भाग 4

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2055
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

इसीलिए मैंने इस वक्त, तुम्हें यहां बुलाया कि तुम्हें यह बता सकूं कि अब हमारी दुश्मनी का सबब... यानी रक्तकथा अब मेरे पास नहीं है। जब हमारी दुश्मनी का सबब हो खत्म हो गया तो तुम बेकार ही मुझे क्यों बदनाम करोगे?'' इसी तरह की मक्खन पालिश करता हुआ पिशाचनाथ उसे बंदरों वाले टटे-फूटे कमरे में ले गया... यहां पहुंचकर उसने अपने बटुए से एक मोमबत्ती निकालकर जलाई और उस कमरे में रोशनी कर दी। दाईं तरफ की दीवार के पास मिट्टी के तीन बंदर एक लाइन में बैठाए गए थे।

शैतानसिंह ने देखा कि पिशाच ने बीच वाले बंदर को थोड़ा दाहिनी तरफ घुमाया। कमरे की धरती में एक खाली स्थान बन गया। पिशाच ने उस रास्ते की तरफ बढ़ते हुए कहा- ''इसके नीचे एक हॉल है... उस हॉल में से सुरंग के जरिए एक रास्ता मेरे मकान तक जाता है। तुम्हें मालुम है कि मैंने अपने मकान में एक कमरा मन्दिर का बनवा रखा है। उसमें एक बड़ी हनुमान की मूर्ति है... यह रास्ता उसी मूर्ति में खुलता है।'' इसी तरह की बातें बनाता हुआ पिशाच बंदरों वाले कमरे की धरती में खुले रास्ते के पास पहुंचा। मोमबत्ती की रोशनी में नीचे को जाती हुई लोहे की सीढ़ी का थोड़ा-सा भाग नजर आ रहा था। मोमबत्ती हाथ में लिये पिशाच और उसके पीछे शैतानसिंह उस सीढ़ी पर उतरता चला गया। पांच सायत बाद ही वे दोनों उसी हॉल में थे, जिसके बारे में पिछले बयान में पढ़ आए हैं। - ''वो देखो।'' चबूतरे के ऊपर बने बंदर की ओर इशारा करके पिशाच बोला-- उसके एक हाथ में... जो बायां हाथ है और बाहर को निकलता हुआ है, में तलवार है और दाहिना हाथ इस वक्त खाली है, बंदर के इसी हाथ में रक्तकथा का वह जड़ाऊ डब्बा था।'' - 'लेकिन इतनी कीमती चीज तुमने सबकी आंखों के सामने क्यों रखी?'' शैतानसिंह बोला ... ऐसी कीमती चीज को तो तुम्हें किसी खास हिफाजत की जगह पर छुपाकर रखना चाहिए था। अगर कोई भी यहां पहुंच जाए तो फिर उसे इस बंदर से रक्तकथा लेने में क्या परेशानी हो सकती है? हमें लगता है कि तुम झूठ बोल रहे हो... ऐसी गैर-जिम्मेदार जगह तुम रक्तकथा रख ही नहीं सकते।''

''मेरे पास इससे ज्यादा हिफाजत की जगह और कोई नहीं थी।'' पिशाचनाथ ने कहा- ''अगर मैं उन दुष्टों को तरकीब नहीं बताता तो वे किसी भी हालत में इस बंदर से रक्तकथा नहीं ले सकते थे।''

''इस बंदर में हमें ऐसी तो कोई खास बात नजर नहीं आती।''

''यह बंदर अपने पास किसी को पहुंचने तक नहीं देता। जो भी इसके पास जाने की कोशिश करता है, यह उसी को अपनी तलवार से मौत के घाट उतार देता है। यह तलवार उसके हाथ में इसी सबब से है।''

''ऐसा भला क्योंकर हो सकता है?' शैतानसिंह अविश्वास भरे स्वर में बोला- ''एक संगमरमर का बेजान बंदर भला किसी को अपने पास पहुंचने से कैसे रोक सकता है और किसी का कत्ल...नहीं, यह तो एकदम नामुमकिन है। तुम हमें उल्टी-सीधी बातों में फंसाने की कोशिश कर रहे हो।''

जवाब में पिशाचनाथ ने उस करामाती बंदर की सारी खासियतें बता दीं। जिन्हें सुनने के बाद भी शैतानसिंह को उसकी हकीकत पर यकीन नहीं आया। आखिर में पिशाचनाथ ने जब उसे सबकुछ करके दिखाया तो मजबूरन उसे यकीन करना पड़ा। किन्तु इस समय भी उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे कि अगर उसका बस चले तो वह इस बंदर की खासियतों को झुठला दे। जब उसे यकीन आ गया कि पिशाचनाथ जो भी कुछ कह रहा है, ठीक कह रहा है तो बोला- ''जब ऐसी बात है तो उन्होंने भला रक्तकथा इस बंदर के हाथ से किस तरह ली?''

''हाय...हाय...यही सब तो याद करके मुझे खुद पर गुस्सा आता है।'' पिशाचनाथ इस तरह बोला, जैसे इस बात का उसे दिली अफसोस हो- ''न जाने उस वक्त मेरी अक्ल को क्या हो गया था? मैंने ये भी नहीं सोचा कि अभी इन दुष्टों को मेरे पास तीन महीने ही हुए हैं। मैंने अपनी ही बेवकूफी से उन्हें बंदर के हाथ से रक्तकथा लिकालने की तरकीब बता दी। वरना वे किसी भी हालत में अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो सकते थे।''

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