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देवकांता संतति भाग 4

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2055
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

छठा बयान


जब बिहारीसिंह ने यह बताया कि रक्तकथा तक पहुंचने के लिए हनुमान की मूर्ति में से रास्ता जाता है तो पिशाचनाथ एकदम चौंक पड़ा। उसके चेहरे पर घबराहट के भाव स्पष्ट उभर आए। अब उसे यह भी यकीन आ गया.. बिहारीसिंह जो कह रहा है ठीक ही कह रहा है, बोला- ''ओह.. तुमने सबूत तो ऐसा दिया है कि अब मुझे तुम्हारी बात का यकीन करना ही होगा। वास्तव में यह भेद उन चारों के अलावा मैंने आज तक किसी को नहीं बताया। जरूर ही तुमने उनकी बातें सुनी हैं। वर्ना तुम्हें किसी भी तरह हनुमान की मूर्ति वाला भेद पता नहीं लग सकता था।''

'इसका मतलब तो ये हुआ पिशाचनाथ कि वे चारों आदमी हकीकत में गौरवसिंह के ऐयार हैं।'' शामासिंह बोला- ''अब तक उन्होंने वहां से रक्तकथा गायब कर दी होगी। उधर जमना को भी बेगम बेनजूर के आदमी ले गए होंगे। यह तो हमारी बहुत बड़ी हार हो गई। जिस रक्तकथा को बचाने की इतनी कोशिश कर रहे थे, उसे कितनी आसानी से गौरवसिंह के ऐयारों ने हासिल कर लिया।'' काफी देर तक उनके बीच इसी तरह की बातें होती रहीं। पिशाचनाथ सहित अब सभी को यकीन हो गया था कि बिहारीसिंह हकीकत में जमना से मुहब्बत करने लगा है और अपने दिल की खातिर ही उसने इतना बड़ा खतरा लेकर उन्हें बचाया है... कुछ देर तक पिशाचनाथ चुपचाप न जाने क्या सोचता रहा... फिर एकाएक बोला- ''बिहारीसिंह, हम मान गए कि तुम जमना से सच्ची मुहब्बत करते हो और हम तुमसे यह वादा भी करते हैं कि हम जमना से तुम्हारी शादी कर देंगे, लेकिन जैसा कि तुम जानते हो... जमना इस समय तुम्हारे पिता के कब्जे में है और वे उसकी हत्या तक करने के लिए तैयार हैं। इस वक्त जमना को उनके पंजे से निकालने का एक ही रास्ता है। उसमें तुम्हारी मदद की जरूरत है... अगर तुम मेरी मदद करो तो।''

''जमना के लिए मैं सब करने के लिए तैयार हूं।''

जवाब में पिशाचनाथ ने बिहारी के हाथ से कुछ लिखवाया और बोला-- ''अब मैं आप सभी से विदा लेकर चलता हूं और जमना को निकालकर लाने का उद्योग (प्रयास) करता हूं। रामकली दो-एक दिन यहीं रहेगी गिरधारीसिंह तुम रामकली का ख्याल रखना।''

'कैसी बात करते हो, यह घर तुम्हारा नहीं है?''

इसके बाद पिशाचनाथ बलदेवसिंह, बिहारीसिंह, शामासिंह, बागीसिंह और गिरधारीसिंह से विदा लेकर मकान से बाहर निकल गया। वह तेजी के साथ बेगम बेनजूर के राज्य की ओर जा रहा था। चलते-चलते उसे शाम और फिर रात हो गई। जब वह बेगम बेनजूर के राज्य में दाखिल हो गया तो किसी तरह से शैतानसिंह से मिलने का उद्योग करने लगा।

आइए--हम पहले शैतानसिंह से मिलते हैं।

हम इस समय शैतानसिंह को बेगम बेनजूर के पास ही बैठा हुआ पाते हैं और वे दोनों इस समय दीवानेखास में कुछ जरूरी, बातें कर रहे हैं। शैतानसिंह बेगम बेनजूर से कह रहा है- ''इस तरह से हमने पिशाचनाथ की लड़की जमना को तो अपने कब्जे में कर लिया. लेकिन मठ के नीचे वाले तहखाने में हमें पिशाचनाथ अथवा रामकली कहीं भी नजर नहीं आए और सबसे ज्यादा तरद्दुद की बात ही मैंने बिहारीसिंह को भेजा था.. लेकिन रास्ते में से ही न जाने वह कहां गायब हो गया... कुछ पता नहीं लगता!''

''क्या उन पन्द्रह सिपाहियों में से भी कोई कुछ नहीं बताता, जो उसके साथ गए थे?'' बेगम ने पूछा।

''यही तो तरद्दुद की बात है बेगम साहिबा।'' शैतानसिंह बोला- ''मैंने खूब अच्छी तरह उनसे ठोक-बजाकर पूछ लिया है, लेकिन सबका यही कहना है कि उन्हें तो यह भी नहीं पता है कि बिहारीसिंह उनके बीच में से आखिर गायब किस वक्त हुआ?''

''तो अब तुम क्या करोगे?'' बेगम बेनजूर ने पूछा।

''करूंगा क्या?'' शैतानसिंह दृढ़ स्वर में बोला- ''इतनी आसानी से मैं भी हिम्मत हारने वाला नहीं हूं। मैंने भी कसम खाई है कि मैं रक्तकथा के बारे में पता लगाकर ही चैन की सांस लूंगा। जमना इस वक्त मेरे कब्जे में है.. इस बार चाहे जैसे भी हो, मैं पिशाचनाथ से आमना-सामना करूंगा और उससे कहूंगा कि या तो वह मुझे रक्तकथा का भेद बता दे अन्यथा मैं जमना को मार डालूंगा और टमाटर वाला भेद सारे जमाने के सामने खोल दूंगा।''

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