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देवकांता संतति भाग 4

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2055
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

पांचवाँ बयान


अब जो ये नया बयान हम लिखने बैठ रहे हैं, हकीकत में यह पाठकों के लिए बहुत ही दिलचस्प है। क्योंकि हम वह भेद खोलने जा रहे हैं कि पहले भाग में वे चारों आदमी बंदर से क्यों डर गए थे? यह बयान कई भेदों को खोलने वाला है। अत: पाठकों को इसे पढ़ने से पहले कई खास बातें याद रखनी चाहिए। जैसे... जब हमने (दूसरे भाग के तीसरे बयान) में जमना का सारा बयान शुरू किया था, उस समय ये शब्द लिखे थे- 'यह किस्सी उन सभी बयानों से पहला है जो अब तक हम लिख आए हैं।' यह तो पाठक समझते होंगे, पिशाच और शैतानसिंह की टक्कर का यह किस्सा भी उसी जमाने का है और इस तरह से हमें यह समझ रखना चाहिए कि यह किस्सा उस समय का है, जब गौरवसिंह और वंदना विजय को लेने राजनगर नहीं गए थे। इस घटना के बाद ही गौरव और वंदना को उनके गुरु... गुरुवचनसिंह ने विजय के बारे में उन्हें यह बताकर कि विजय पूर्वजन्म का उनका पिता देवसिंह है और राक्षसनाथ का तिलिस्म हर हालत में उसी के हाथों से टूटेगा... उन्हें राजनगर भेजा।

अभी हम आपको उनके राजनगर जाने से पहले का किस्सा सुनाते हैं।

यह समय दोपहर का है... जाड़ों की धूप सभी जीवों को प्रिय होती है, यह सर्वविदित है। ऐसे समय में हम आपको एक बहुत ही गुप्त और रमणीक जगह पर ले चलते हैं। यह कोई तीन बीघे का मैदान है। सारे मैदान में प्राकृतिक घास बिछी है। मैदान के बीचो-बीच से होकर एक ठण्डे और साफ पानी की नहर बह रही है। इधर-उधर कुछ मीठे फलों के पेड़ भी हैं। नहर का कोई पुल नजर नहीं आता... जिसके कारण ऐसा महसूस होता है जैसे नहर ने मैदान को दो भागों में बांट दिया है। इस जगह को हमने गुप्त इस कारण से कहा, क्योंकि यह मैदान चारों ओर से गगनचुम्बी पहाड़ों से ढका हुआ है। इस मैदान के बाहर से कोई ऐसी जगह को देखे तो किसी हालत में नहीं देख सकता.. क्योंकि उसे केवल ऊंचे-ऊंचे पहाड़ ही नजर आते हैं। कोई ख्वाब में भी नहीं सोच सकता कि इन पहाड़ों के बीच में इतना लम्बा-चौड़ा और रमणीक मैदान भी है। मैदान के चारों ओर खड़े पहाड़ों की चोटियां बर्फ से ढकी हुई हैं.. और बर्फ से ढकी उन चोटियों को मैदान की घास पर बैठकर देखें तो सूरज की रोशनी में चमकती बर्फ बड़ी.. ही लुभावनी लगती है। दक्षिण तरफ की पहाड़ी से अपनी झर-झर के साथ एक झरना मैदान की ओर गिर रहा है.. इसी झरने ने मैदान में आकर नहर का रूप धर लिया है। नहर के किनारे पर ही एक कम्बल बिछाये हम कुछ आदमियों को बैठा हुआ पाते हैं। शायद यह हमारा सौभाग्य ही है कि हम उनमें से अधिकतर को पहचानते हैं। वे गुरुवचनसिंह, गौरवसिंह, गणेशदत्त, केवलसिंह, शीलारानी,. अर्जुनसिंह, नानक, प्रगति और महाकाल हैं। हम यहां यह बता देना जरूरी समझते हैं कि हम आखिरी नाम महाकाल के अलावा सभी को जानते हैं। हम समझते हैं कि अगर हम यहां इन सबका थोड़ा-थोड़ा परिचय दे दें तो पाठकों की बहुत-सी शिकायतें और उलझनें दूर हो जाएंगी। गुरुवचनसिंह, गौरवसिंह और वंदना के बारे में तो आप बहुत कुछ जान चुके हैं और आगे भी जानते ही रहेंगे। हमारे मुख्य पात्र यही हैं। आप जानते हैं कि अर्जुनसिंह वंदना के पति और प्रगति के पिता हैं तथा नानक अर्जुनसिंह का खास विश्वसनीय ऐयार है। यह भेद हम (दूसरे भाग के चौथे बयान) में खोल आए हैं। शीलारानी के बारे में आपने (पहले भाग के चौदहवें) बयान में पढ़ा है, यही शीलारानी नकली वन्दना बन थी। केवलसिंह और गणेशदत्त दोनों ऐयारों को आपने पहले भाग में नकली गौरवसिंह बने देखा है। केवलसिंह दलीपसिंह की कैद में पहुंच गया था और गणेशदत्त बेगम बेनजूर के खास ऐयार माधोसिंह को गुरुवचनसिंह के पास लेकर आया था... इन दोनों के बारे में विस्तार से जानने के लिए (पहले भाग का दसवाँ वाला बयान पढ़ जाएं।) अब यहां बैठे हुए इन सभी पात्रों के बारे में जान गए हैं। ऐसी रमणीक और गुप्त जगह पर बैठे हुए ये लोग कुछ बातें कर रहे हैं। आइए, इनके पास चलकर बातें सुनते हैं... शायद ये हमारे ही काम की कुछ बातें कर रहे हों।

''तुम और वन्दना बिटिया यहां से राजनगर चले जाना।'' गुरुवचनसिंह गौरवसिंह की ओर देखते हुए कह रहे थे- ''सारो बातें तुम्हें बता चुका हूं। बिना शेरसिंह (अलफांसे) और देवसिंह (विजय) के यह तिलिस्म नहीं तोड़ा जा सकेगा। हमारी ज्योतिष के अनुसार शेरसिंह को तो यहां खुद प्रकृति ही पहुंचाएगी और विजय को चालीस वर्ष की आयु में एक ख्वाब चमकेगा। वह यहां आना चाहेगा.. किन्तु इस जन्म में जो लोग उसे प्यार करते हें, वे उसके रास्ते में बाधा डालेंगे। वहां पहुंचकर तुम्हें हर हालत में विजय को यहां लाना है.. चाहे उसके हितैषियों को समझाना पड़े अथवा उनसे लड़-भिड़कर विजय को यहां लाना पड़े। हमें उम्मीद है कि तुम दोनों भाई-बहन इस काम को बखूबी कर सकोगे।''

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