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देवकांता संतति भाग 4

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2055
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''नमस्ते बेटे!'' पिशाचनाथ ने मुस्कराकर कहा। इसके बाद बागीसिंह ने रामकली को चाची और बलदेवसिंह को भैया कहकर नमस्ते की। कुछ देर बाद पिशाचनाथ ने बेहोश बिहारीसिंह को बैठक की जमीन पर लिटा दिया। बागीसिंह ने पूछा कि ये कौन है। लेकिन पिशाच ने उसे उसके सवाल का जवाब देने की जगह यह आदेश दिया कि वह फौरन अपने घर से अपने पिता गिरधारीसिंह और चाचा शामासिंह को बुला लाये। आदेश मिलते ही बागीसिंह चला गया। तारा रसोई में जाकर मेहमान-नवाज़ी का इन्तजाम करने लगी।

कोई तीस सायत बाद बागीसिंह. गिरधारीसिंह और शामासिंह को लेकर वहां आ पहुंचा। औपचारिकता की जरूरी बातों के बाद गिरधारीसिंह काम की बात पर आता हुआ बोला- ''ये तो शैतानसिंह का लड़का बिहारीसिंह लगता है.. इसे तुमने क्यों पकड़ लिया?''

गिरधारीसिंह की बात का जवाब देने से पहले पिशाचनाथ ने रामकली-से कहा जाकर तारा भाभी के काम में मदद करो।'' रामकली के जाने के बाद पिशाचनाथ ने यूं कहना शुरू किया- ''हम सब, शामासिंह, मैं...गिरधारीसिंह, बलदेवसिंह और बागीसिंह राजा दलीपसिंह के ऐयार हैं। हम सब उनके नौकर हैं और दलीपसिंह की भलाई के लिये काम करना हम सबका धर्म है। मैं आप सबको आज एक ऐसे भेद की बात बताता हूं कि हमारे मालिक ने सारी जिम्मेदारियां केवल मुझ पर छोड़ी थीं... लेकिन आज कुछ ऐसी स्थिति बन गई है कि उस जिम्मेदारी से पैदा होने वाली मुसीबतों को मैं अकेला नहीं संभाल पा रहा हूं।''

''कहो पिशाच, वह जिम्मेदारी क्या है?'' शामासिंह बोला- ''हम सब अपने मालिक के लिये जान तक दे सकते हैं।''  -- ये तो मैं नहीं जानता कि दलीपसिंह के हाथ रक्तकथा कहां से लग गई।'

''रक्तकथा!'' एक साथ सभी चौंक पड़े।

''हां!'' पिशाचनाथ बोला- ''ये तो मैं भी नहीं जानता कि रक्तकथा हमारे राजा को किस जरिये से मिली, लेकिन इतना जरूर बता सकता हूं कि वह रक्तकथा दलीपसिंह ने मुझे सौंपी और कहा कि इसे संभालकर रखना तुम्हारा काम है।''

''क्या तुम हमें यह सब बातें विस्तारपूर्वक नहीं बता सकते?''

''इसका विस्तार कोई ज्यादा लम्बा नहीं है।'' पिशाच ने कहा- ''बस, इतना ही है कि आज से कोई छ: महीने पहले एक दिन राजा दलीपसिंह ने मुझे तलब किया और तखलिये में मुझे बताया कि राक्षसनाथ के तिलिस्म की चाबी... यानी रक्तकथा बड़ी मेहनत से हमारे हाथ लग गई है। उन्होंने मुझसे कहा कि पिशाचनाथ, तुम जानते हो राक्षसनाथ की लिखी हुई ये रक्तकथा एक ऐसी चीज है जिसे बहुत से आदमी हासिल करना चाहते हैं, लेकिन किसी जरिये यह हमारे हाथ लग गई है। हो सकता है कि इस रक्तकथा की कहानी तुम भी बहुत कुछ जानते हो, उसे दोहराने का तो समय नहीं है... तुम इस वक्त केवल इतना ही समझ लो कि यह दुनिया की सबसे नायाब चीज है और इसको हम तुम्हें सौंप रहे हैं। तुम इसे संभालकर रखो... हम वक्त पड़ने पर इसे तुमसे मांग लेंगे, लेकिन सावधान रहना... न जाने कितने व्यक्ति इसे हासिल करना चाहते हैं, तुम इसकी रक्षा अपनी जान से भी बढ़कर करोगे। इस तरह की कुछ बातें बताकर उन्होंने मुझे रक्तकथा सौंप दी। मैंने उसे एक बहुत ही गुप्त स्थान पर मुनासिब जगह रख दिया। आज से चार दिन पहले तक रक्तकथा पर किसी तरह की आंच नहीं आई थी, लेकिन चार दिन पहले से मेरे साथ बड़ी अजीब-अजीब घटनाएं हो रही हैं और यह करने वाला बेगम बेनजूर का ऐयार शैतानसिंह है।''

''उसने क्या-क्या किया है?'' शामासिंह ने पूछा।

जवाब में पिशाचनाथ ने वे सारी बातें मुख्तसर में सबको बता दीं, जिन्हें पाठक पीछे के बयानों में पढ़ आये हैं। पहले शैतानसिंह द्वारा रामकली का अपहरण, वहां पर नसीमबानो का रामकली बनना अगली रात उसके द्वारा नकली रामकली का अपहरण करके असली रामकली को वहां रखना। बिहारी और जमना के सम्बन्श्व से लेकर यहां पहुंचने तक की सारी बातें पिशाचनाथ ने मुख्तसर में सबको बता दीं, किन्तु टमाटर वाली बात को वह बड़ी सफाई से छुपा गया था। सबकुछ सुनने के बाद गिरधारीसिंह बोला-

''लेकिन आखिर में तुम्हारे पास बिहारी का आना, यह बताना कि उसका पिता इस मठ को घेर रहा है...घर से जमना का अपहरण हो चुका है और तुम्हारे चेलो नाहरसिंह, भीमसिंह, बेनीसिंह और गुलशन को गौरवसिंह के ऐयार बताने का चक्कर समझ में नहीं आया।''

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