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देवकांता संतति भाग 4

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2055
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''वह तो हम तुम्हें दिखा ही देंगे प्यारे!'' विजय ने कहा- ''पहले ये बताओ कि स्टीमर कहां है?''

'आज रात नौ बजे राजघाट पर पहुंच जायेगा।'' ब्लैक-ब्वाय ने बता दिया।

''अब तुम ये करामाती डिबिया देखो।'' विजय ने एक डिबिया ब्लैक-ब्वाय की तरफ बढ़ाते हुए कहा। हमारा ख्याल है कि पाठक अच्छी तरह समझ गये होंगे कि यह क्या हो रहा है। इस दृश्य के बारे में हम अधिक विस्तार से न लिखकर मुख्तसर में ही लिख देना काफी समझते हैं कि ब्लैक-ब्वाय का हाल भी वही हुआ, जैसा कि  आप ठाकुर साहब का पढ़ आये हैं। उसके बेहोश होते ही विजय बने हुए रोशनसिंह और उसके तीनों साथियों ने ब्लैक-ब्बॉय को कार में डाल दिया। पास ही छुपी हुई गोमती भी कार के पास पहुंच गई। उसके पहुंचते ही रोशनसिंह ने कहा- ''गोवर्धनसिंह ने यह तरकीब बताई तो अच्छी थी, लेकिन मुझे उम्मीद बिल्कुल नहीं थी कि हम अपने काम में इतनी आसानी से सफल हो जायेंगे।''

अभी वे ये बातें कर ही रहे थे कि पिछले मोड़ से ठाकुर साहब वाली जीप मुड़ी और उसमें से गोवर्धनसिंह उतरा-- ''क्या रहा?'' उसने पूछा।

''हमने तुम्हारे कहे अनुसार काम किया है।'' रोशनसिंह ने कहा- ''अब आगे क्या करना है? - ''इससे तुमने यह तो पूछ ही लिया होगा कि स्टीमर कितने बजे कहां पहुंचेगा?'' गोवर्धनसिंह ने पूछा और स्वीकारात्मक जवाब सुनकर बोला- ''बस, अब हमारा काफी कुछ काम हो गया है... अब मुझे ठाकुर निर्भयसिंह और तुम्हें अजय बनकर उनके बीच में मिल जाना है।''

''लेकिन चेहरे इनकी तरह पोत लेने के लिये हमारे पास जगह कहां है?'' गोमती ने पूछा।

''ठाकुर निर्भयसिंह की कोठी खाली पड़ी है।'' रोशनसिंह ने कहा- ''अपना काम करने के लिये हम उसी को अपना अड्डा बना सकते हैं, वक्त कम है... जल्दी चलो। बाकी बातें आराम से वहीं बैठकर होंगी... अब हमें देखना है कि गौरवसिंह किस तरह सफल होता है।''

 

० ० ०

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