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देवकांता संतति भाग 4

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2055
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

पत्र पढ़ते-पढ़ते गोवर्धनसिंह का चेहरा लाल सुर्ख हो गया... सभी ने यह पत्र पढ़ा और अपने माथे पीट लिए।

'इस बद्कार ने तो सारे किये-धरे पर पानी फेर दिया।'' गोवर्धन ने कहा।

''लेकिन सोचना तो ये है कि अब हमें क्या करना चाहिए?''

''सबसे पहले तो गोमती को होश में लाओ।'' --''गोवर्धनसिंह का यह आदेश पाते ही एक आदमी गोमती के पास पहुंचा और उसे लखलखा सुंघाकर होश में लाया। उसके होश में आने पर गोवर्धन ने पूछा- ''क्या हुआ था.. तुम्हारी ये हालत किसने कर दी?''

''तुम लोग उस हाल में बैठे हुए विजय से बातें कर रहे थे और मैं वहां कांता बनी तुम्हारे बुलावे का इन्तजार कर रही थी।'' गोमती ने कहना शुरू किया- ''कि अचानक ही वहां वंदना आई - उसे देखकर अभी मैं चीखना ही चाहती थी कि वह किसी शेरनी की तरह मुझ पर झपट पड़ी, उसके हाथ में बेहोशी की बुकनी से भरा एक रुमाल था... मेरे चीखने से पहले ही उसने वह रुमाल मेरी नाक पर रख दिया।''

'और बकरी की तरह बेहोश हो गयीं?'' गोवर्धनसिंह झुंझलाहट और क्रोध में व्यंग्य के साथ बोला।

''बेहोश होने के बाद मुझे कुछ पता नहीं रहा कि क्या कुछ हो रहा है।'' गोमती ने कहा- ''क्या तुमने वन्दना को पकड़ा नहीं?''

''लानत है तुम पर।' रोशनसिंह झुंझलाकर बोला- ''तुम अकेली वन्दना पर काबू नहीं कर सकीं!''

''देखो इस तरह डांटो मत रोशनसिंह!'' गोमती भी गुस्से में आ गई- ''मुझे लगता है वन्दना ने तुम्हें जबरदस्त धोखा दिया है, इसीलिए ऐसे उखड़े हुए हो। तब तो मैं ये कह सकती हूं कि मैं तो चलो अकेली थी, तुम तो पांच-पांच मर्द वन्दना से धोखा खा गए।''  - 'इन बेकार की बातों को छोड़ो।'' एकाएक गोवर्धनसिंह उसके बीच में बोला- ''इस तरह की बातें करने से हमारे हाथ कुछ भी नहीं लगेगा। अब तो हमें यही सोचना है कि जो हो गया सो हो गया... अब हमें क्या करना चाहिए...अभी वंदना को यहां से गए ज्यादा वक्त नहीं हुआ है, अगर हमें ये पता लग जाए कि वंदना उसे कहां ले गई है तो हम आसानी से उसे धोखा देकर अपना काम निकाल सकते हैं।''

'मेरे ख्याल से तो वन्दना गौरवसिंह के पास ही जायेगी।''

गोमती ने कहा।

''मेरा भी यही ख्याल है।'' रोशनसिंह ने उसका समर्थन किया - ''और मैं जानता हूं कि इस समय गौरवसिंह कहां हैं।'' गोवर्धनसिंह जल्दी से बोला- ''आओ-अपने घोड़ों पर सवार होकर हम उधर से ही चलते हैं। बाकी बातें आगे के हालात देखकर करेंगे।''

इस तरह से वे पांचों और साथ में गोमती घोड़ों पर सवार होकर वहां से जंगल में उस तरफ को रवाना हुए जिधर विकास, रघुनाथ, रैना, ब्लैक-ब्वाय और ठाकुर निर्भयसिंह के साथ गौरवसिंह भी था और वह वंदना विजय को लेकर वहीं पहुंची थी। वहां का हाल... वंदना का उनके सामने आना और उनके बीच वहां होने वाली बातचीत पाठक दूसरे भाग में पढ़ आये हैं, यहां तो उस जगह का वर्णन हम पाठकों समक्ष यह भेद स्पष्ट करने के लिए कर रहे हैं कि. उनके बीच होने वाली आखिरी कुछ बातें गोव्रर्धनसिंह इत्यादि ने बखूबी सुन ली थीं। वंदना और विकास आदि के बीच हुई बातें अगर पाठकों को याद न हों तो (दूसरे भाग के दूसरे बयान) के पेज पढ़ जाएं... यहीं से हम गोवर्धनसिंह और उसके साथियों में होने वाली वे बातें लिखते हैं... जिन्हें पाठकों ने हमारे पिछले कथानक में कहीं नहीं पढ़ा है।

''क्यों न हम पहले ही की तरह इस बार भी विजय पर कब्जा कर लें?'' यह बात रोशनसिंह ने धीरे से गोवर्धनसिंह के कान में कही।

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