लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 3

देवकांता संतति भाग 3

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2054
आईएसबीएन :0000000

Like this Hindi book 0

चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

तेरहवाँ बयान


तीसरे भाग में पाठक अभी तक केवल वही सबकुछ पढ़ पाए हैं जो विजय ने उस किताब में पढ़ा है... जो गुरुवचनसिंह ने उसे दी है। अब हम अपने पाठकों को इस नये बयान के साथ उस कहानी से बाहर निकालते हैं, पाठकों की यह शिकायत हम तक पहुंच चुकी है कि पहला और दूसरा भाग पढ़ने के बाद उन्हें यह समझ में नहीं आ पाया कि कौन-सा पात्र क्या है? कौन किसका ऐयार है? किसकी किस हरकत का क्या मतलब है? हम जानते हैं कि जब तक हमारे पाठक यह सब नहीं जानेंगे तब तक सन्तति का भरपूर आनन्द वे नहीं उठा सकेंगे। पाठकों का कहना है कि सन्तति के पात्रों की संख्या बहुत हो गई है, हमारे अगले बयानों से पाठक समझ जाएंगे कि पात्र इतने नहीं जितने कि वे समझ रहे हैं, आइए हम आपको एक रहस्य पर से पर्दा हटाकर दिखाते हैं। अब हम आपको जमना के पास ले चलते हैं।

जमना अभी-अभी लौटकर अपने कमरे में आई है और बिना चिराग जलाए अंधेरे में ही चारपाई पर पड़ी पिछली सारी घटनाओं को याद करके बड़े अजब अचरज में पड़ी हुई है। अभी वह पूरे ढंग से कुछ सोचने नहीं पाई थी कि अचानक किसी ने उसके कमरे का दरवाजा बहुत हल्के-से खटखटाया। वह चौंक पड़ी और बोली- ''कौन है?''

''मैं हूं जमना, बिहारी।'' दरवाजे के बाहर से कोई इस ढंग से फुसफुसाया कि उसकी आवाज केवल जमना तक ही पहुंच सके। यह आवाज सुनते ही जमना एक झटके के साथ खड़ी हो गई और अंधेरे में ही तेजी के साथ अन्दाज से आगे बढ़कर सांकल खोल दी। अब हम बाहर एक खूबसूरत नौजवान को खड़ा देखते हैं। उसे देखते ही जमना एकदम आगे बढ़कर उससे लिपट गई और बोली- 'मुझे बचाओ बिहारी।''

''क्या बात है... तुम ऐसी परेशान और डरी हुई क्यों हो?'' बिहारी ने उसे बांहों में और प्यार से सिर पर हाथ फेरता हुआ बोला- ''तुम्हारी आखें बताती हैं कि आज तुम सारी रात सोई नहीं हो और किसी तरह के तरद्दुद का शिकार हुई हो।''

पाठकों को याद होगा कि हम दूसरे भाग के दूसरे बयान में लिख आए हैं कि जमना किसी से प्यार करती है। आप समझ गए होंगे कि जमना का वह प्रियतम बिहारी ही है जिसको स्मृति में जमना रात को जाग रही थी।

''पहले अन्दर आ जाओ, बिहारी।'' जमना धीरे से बोली- बहुत अच्छा हुआ जो तुम इस समय यहां आ गए। इस समय मैं अपने ही घर में खुद को फंसी हुई महसूस कर रही थी।'' इसी तरह की बात बताती हुई जमना बिहारी को अन्दर कमरे में ले गई। - ''अब बताओ जमना कि तुम आज ऐसी उखड़ी हुई बातें क्यों कर रही हो?''

''बिहारी, तुम तो जानते ही हो कि मेरे बापू ऐयार हैं और इसी कारणवश वे अक्सर घर पर नहीं रहते। मेरे साथ इस घर में केवल मां ही रहती है, परन्तु आज मुझे इसलिए डर लग रहा है क्योंकि आज यहां पर मौजूद मेरी मां, असली मां नहीं है।''

'क्या? ये तुम क्या कह रही हो?''

''हां मैं ठीक कह रही हूं।'' जमना ने बताया- ''उस समय रात का कोई दूसरा पहर था जब मैं जाग रही थी। अचानक ही किसी खटके की आवाज ने मुझे चौंका दिया, मैंने देखा कि चार आदमी जिनके चेहरे पर नकाब था, किसी तरह की आहट न पैदा करने का प्रयास करते हुए मेरी मां रामकली के कमरे की ओर बढ़े, मैं उन्हें देखती रही, जब वे कमरे से बाहर आए तो उनमें से एक के कन्धे पर गठरी थी। उस गठरी को साथ लिये वे मकान की चारदीवारी के पार हो गए। मैंने उनका पीछा किया... वे सब एक मठ पर पहुंचे, वहां पर पहले ही पांच आदमी बैठे हुए हाथ ताप रहे थे। वे पांचों इन चारों के साथी ही थे... जब उन्होंने गठरी खोली तो मैं यह देखकर दंग रह गई कि उसमें मेरी बेहोश मां रामकली थी। जब उन चारों में से एक ने नकाब पलटा तो यह देखकर मैं भौचक्की-सी रह गई कि उस चारों में एक आदमी पिशाचनाथ यानी मेरे पिता थे। यह सोचकर मैं दंग रह गई कि मेरे पिता को भला मां का अपहरण इस तरह करने की क्या जरूरत आ पड़ी?''

''वह कोई दूसरा ऐयार होगा... किसी को धोखा देने के लिए तुम्हारे पिता का भेस बनाया होगा।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book