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देवकांता संतति भाग 3

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2054
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

दूसरा बयान


भरतपुर की राजधानी के बाहर दूर-दूर तक राजा चन्द्रदत्त की सेनाएं पड़ी हैं। यह तो हमारे पाठक समझ ही चुके होंगे कि चन्द्रदत्त का बड़ा पुत्र शंकरदत्त सुरेन्द्रसिंह की लड़की कांता पर आसक्त है। कांता के कारण ही यह सब बखेड़ा है। यह किस्सा हम बाद में कहीं समय मिलने पर खोलेंगे कि शंकरदत्त और कांता की पहली मुलाकात कहां हुई। इस समय हम किस्से का सिलसिला अपने पाठकों को समझाने के लिए केवल इतना ही लिख सकते हैं कि शंकरदत्त अपने तन-मन से कांता पर आसक्त है और अपनी यह इच्छा उसने अपनी मां के सामने रखी थी कि वह कांता से विवाह करेगा और अगर उसे कांता नहीं मिली तो वह आत्महत्या कर लेगा। शंकरदत्त की मां यानी चन्द्रदत्त की पत्नी ने अपने पुत्र की यह इच्छा चन्द्रदत्त से कही। चन्द्रदत्त स्वयं ही मन में यह विचार लिए बैठे थे कि उनके पुत्र शंकरदत्त के लिए इस जमाने में कांता से अच्छी कोई लड़की नहीं होगी। अपना यह प्रस्ताव उन्होंने कांता के पिता यानी सुरेन्द्रसिंह के पास पहुंचाया, मगर उस समय उन्होंने अपनी बहुत बड़ी तौहीन महसूस की, जब सुरेन्द्रसिंह ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया और अपने पत्र में इस प्रकार लिखकर भेजा-

चन्द्रदत्त,

अपने पुत्र के लिए कांता जैसी पत्नी का विचार करने से पहले जरा यह तो विचार कर लेते कि तुम्हारा शंकरदत्त है क्या? अगर नहीं जानते तो हम तुम्हें बताते हैं। हमारे ऐयार पता लगा चुके हैं कि शंकरदत्त सारे दिन वेश्याओं के कोठे पर पड़ा रहता है। अगर हमारी बात का यकीन न हो तो करतारसिंह से पूछ सकते हो। करतारसिंह तुम्हारा एक मुंह-चढ़ा ऐयार है। वह तुम्हारे पुत्र शंकरदत्त का खास दोस्त है। हम अच्छी तरह जानते कि करतारसिंह ही तुम्हारे राज्य यानी राजगढ़ की नई-नई लड़कियोँ को उठाकर शंकर महल में लाता है। तुम्हें याद तो होगा कि शंकर महल तुमने केवल अपने लड़के शंकरदत्त के लिए बनवाया है। हर रात करतारसिंह राज्य की नई-नई लड़कियों को उठाकर शंकर महल में ले जाता है और शंकर महल में, जिसे तुम्हारे लड़के ने ऐय्याशी का अड्डा बना रखा है - तुम्हारा लड़का हर रात नई लड़की के जीवन से खेलता है। मैं निर्णय नहीं कर पाता हूं कि इस छोटे-से खत में मैं तुम्हारे लड़के की किन-किन बुराइयों को लिखूं? बस - अंत में यही लिखता हूं कि अपनी बेटी कांता की शादी शंकरदत्त जैसे आवारा, अय्याश और बदचलन लड़के से नहीं कर सकता। कम-से-कम यह प्रस्ताव हमारे पास भेजने से पहले ये तो सोच लेते कि तुम एक गधे के बच्चे के लिए हूर की परी मांग रहे हो। अगर फिर कभी तुम कांता का नाम भी जुबान पर लाए तो अच्छा न होगा।

- सुरेन्द्रसिंह।

और इस पत्र को पढ़कर चन्द्रदत्त के सारे जिस्म में जैसे आग लग उठी। सुरेन्द्रसिंह का यह पत्र उसके मंत्री ने भरे दरबार में जोर-जोर से पढ़ा था। पत्र को सुनते ही चन्द्रदत्त अपने होशो-हवास खो बैठा था और उसने तुरन्त भरतपुर पर चढ़ाई का हुक्म जारी कर दिया। चढ़ाई से पहले उसने सुरेन्द्रसिंह के लिए एक पत्र लिखा, जिसका मजमून इस तरह था-

सुरेन्द्रसिंह,

हमने तुम्हारे पास अपने लड़के शंकरदत्त और तुम्हारी लड़की कांता, विवाह का प्रस्ताव भेजा था। परन्तु उसका जवाब लिखते समय तुम ये भूल गए कि यह जवाब तुमने चन्द्रदत्त को लिखा है। अपने जवाब में तुमने साफ तौर पर हमें गधा और शंकरदत्त को गधे का बच्चा कहा है। हम ये अपमान सहन नहीं कर सकते - हम कांता को प्राप्त करके रहेंगे। सावधान - हम भरतपुर पर चढ़ाई कर रहे हैं। जिस समय भी तुम अपनी पराजय स्वीकार कर लो और भरतपुर को कत्ले-आम से बचाना. चाहो, कांता को हमारे हवाले कर दो। हम यकीन के साथ कह सकते हैं कि तुम हमारी फौजों का मुकाबला नहीं, कर सकोगे।

- चन्द्रदत्त।

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