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देवकांता संतति भाग 3

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2054
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

दसवाँ बयान


''इस बार शेरसिंह ने बड़ा धोखा खाया।'' एक नकाबपोश दूसरे से कह रहा था- ''उसकी सारी ऐयारी धरी-की-धरी रह गई। समझ रहा होगा कि बकरी बनकर उसने क्या ऐयारी की है? यह तो कभी ख्यालों में भी नहीं सोच सकता कि हमें पहले से ही मालूम था कि वह बकरी का भेस बनाए उस जंगल में घूम रहा है। हमने ठीक उसी समय चंद्रसेन को ऐसा खत लिखकर उधर भेजा... हमें अच्छी तरह पता था कि शेरसिंह चंद्रसेन से इस खत को अवश्य प्राप्त करेगा, चंद्रसेन को भी मैंने बता दिया कि खत चंद्रदत्त के हाथों में नहीं, बल्कि शेरसिंह के हाथों में पहुंचना है। उसने दिखावे का विरोध किया होगा... वरना वह खत पहुंचाना तो हमें शेरसिंह के ही हाथों में था। अब पता लगेगा शेरसिंह को... खुद को सबसे बड़ा ऐयार समझता है।''

''हकीकत में दोस्त तुमने बड़ी अच्छी चाल सोची।'' दूसरा नकाबपोश बोला- ''किसी को हम पर शक नहीं हुआ और हरनामसिंह फंस गए।''

निश्चय ही हमारे पाठक समझ गए होंगे कि ये दोनों नकाबपोश वही हैं, जिनसे वह रहस्यमय आदमी जंगल में बने एक कुएं की जगत पर मिला था... जिसने शेरसिंह इत्यादि ऐयारों की बातें सुनी थीं और वह सबकुछ उसने इन्हीं दोनों नकाबपोशों को बताया था। इस समय रात का आखिरी पहर है और हम इन दोनों को घोड़ों पर सवार जंगल में से जाते हुए देखते हैं। उनके चारों ओर इस समय गहन अंधकार- और सन्नाटा है। आपस में बातचीत करते हुए वे उसी कुएं की तरफ जा रहे हैं। अभी हम नहीं कह सकते कि ये कौन हैं? खैर...हम इनके साथ-साथ चलते हैं.. और छुपकर इनकी बातें सुनते हैं, शायद हमें इनके बारे में कुछ गुमान हो सके। इसी तरह की बातें करते हुए वे कुएं की जगत पर पहुंच जाते हैं। हमें यह कहते हुए जरा भी संकोच नहीं है कि यह वही रात है, जिस रात फूलवती की हत्या हुई। इनकी बातों से साफ जाहिर होता है कि गुनहगार ये दोनों हैं और इन्होंने किसी तरह की धूर्तता करके व्यर्थ ही हरनामसिंह को फंसा दिया है। हम देखते हैं कि थोड़ी देर बाद वे उसी कुएं के पास पहुंच जाते हैं। वहां पहुंचकर वे घोड़े से उतरे और घोड़ों को पेड़ से बांधकर कुएं की जगत पर आए। उन्होंने कुएं में झांका, एक नीचे मुंह करके बोला- ''कुएं देवता.. हम प्यासे हैं पानी पिलाओ।'' उसकी यह आवाज कुएं के अन्दर गूंज उठी और इसके जवाब में जो प्रतिक्रिया हुई, वह कम आश्चर्यजनक नहीं थी। एक बड़ा-सा चमकदार कटोरा कुएं के अंधेरे से निकलकर कुएं की जगत तक आ गया। यह कटोरा इतना बड़ा था कि जैसे कोल्हू का कड़ाह (सामान्य कड़ाही से बड़ी कड़ाही) हो, अत: दो आदमी उसमें बड़ी सरलता से बैठ सकते थे। यह देखकर हमें आश्चर्य होता है कि वास्तव में ये दोनों आदमी कटोरे में बैठकर नीचे की तरफ जाने लगे। अंधेरे में नीचे जाकर कटोरा रुका.. कुएं में वहां इस स्थान पर पानी नहीं था। उनमें से एक ने कटोरे के बीचों-बीच का न जाने कैसा पेच घुमाया कि हल्की-सी गड़गड़ाहट के साथ कुएं की एक दीवार में रास्ता नजर आने लगा। उधर एक कमरा था, जिसमें से एक मोमबत्ती की रोशनी बाहर झांक रही थी। वे उसी में चले गए... कमरे में रखी मोमबत्ती के इर्द-गिर्द हम इस समय पांच आदमियों को देखते हैं। इन पांचों की नजर कमरे की ओर हो गई है, जो इस बात की गवाह है कि वे आने वालों के बारे में जानते हैं। पाठकों को हम बता दें कि ये पांचों और कोई नहीं बल्कि गहराचन्द, हीरामल, गहरीराम और चमनलाल हैं। पांचवाँ आदमी इन्हीं दोनों नकाबपोशों का साथी चंद्रसेन है।

उन दोनों नकाबपोशों के आते ही सब उठकर सम्मान के साथ उन्हें सलाम करते हैं और पुन: सब बैठ जाते हैं। उनमें से एक नकाबपोश बात शुरू करता है-

''सबसे पहला काम तो ये है कि चारों में से कोई एक चन्द्रदत्त को यह खबर दो कि हम, यानी जो उन्हें पत्र लिखता था, हरनामसिंह नहीं है, बल्कि कोई और ही है, उन्हें समझाना कि पत्र के आखिर में हम हरनामसिंह का नाम केवल इसलिए ही लिखते थे कि अगर किसी तरह पत्रों का भेद राजा सुरेंद्रसिंह पर खुले तो गुनहगार हमें नहीं, बल्कि हरनामसिंह को ही समझा जाए। वही हुआ भी.. अत: हरनामसिंह को हमने न केवल सुरेंद्रसिंह की आस्तीन का सांप सिद्ध कर दिया, बल्कि शेरसिंह की पत्नी फूलवती के खून का इल्जाम भी उसी पर लगा दिया। अब सुबह सूरज निकलते ही हरनामसिंह को फांसी पर लटका दिया जाएगा और हमारे रास्तों का कांटा हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा...। हम पूरी तरह चन्द्रदत्त के साथ हैं और कांता का विवाह शंकरदत्त से करके ही चैन की सांस लेंगे।''

''लेकिन हमें ये तो बता दीजिए कि आप कौन हैं?'' चमनलाल ने पूछा- ''ताकि हम अपने महाराज़ को आपका परिचय दे सकें।''

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