ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 3 देवकांता संतति भाग 3वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
अपने बचाव के रास्ते के लिए ही मैं ये खत खुद न लिखकर - अपने खास आदमी से लिखवाया करता था। उसी रास्ते से दरबार में आज मेरी इज्जत बच गई। वरना मेरे लिए भैया सजाए-मौत का हुक्म दे देते। क्योंकि दरबार में खतों की लिखाई से मेरी लिखाई नहीं मिली... इसीलिए मैं न केवल साफ बच गया, बल्कि अब किसी को मुझ पर शक भी नहीं है। बल्कि सभी को मुझसे सहानुभूति है कि मुझ जैसे ईमानदार आदमी को किसी दुष्ट ने व्यर्थ फंसाने की कोशिश की है। लेकिन इस कमबख्त शेरसिंह पर न जाने कहां का दिमाग है कि अब भी मुझी पर शक करता है।
शेरसिंह सुरेंद्रसिंह के अन्य ऐयारों के साथ घर पर गया, इन ऐयारों का विषय दरबार बरखास्त होने के बाद भी यही खत वाला था। मैंने अपना एक जासूस उनके पीछे लगा रखा था। जिसने उनकी बातें बखूबी सुनीं। उसका कहना है कि सभी ऐयारों का ख्याल ये था कि आपको खत लिखने वाला मैं नहीं... बल्कि कोई और था... मगर शेरसिंह उस समय भी जोर दिए जा रहा था कि ये खत मैं ही तुम्हे भेजता हूं। अत: स्पष्ट है... कि अभी तक उसे मुझी पर शक है और यह बात तुम भी समझते होगे कि अकेला शेरसिंह ही दस ऐयारों के बराबर है। अत: सबसे पहले मुझे कोई ऐसा काम करना है...जिससे उसका शक मुझसे हट जाए।
इतनी बात इस खत में मैंने केवल इसलिए लिखी है कि आप भी शेरसिंह से बचकर ही रहें। शेरसिंह ही खतरनाक आदमी है। हमें जो भी कुछ करना है... उससे बचकर ही करना है। अब केवल यही हो सकता है कि किसी तरह कांता का अपहरण किया जाए---- मगर यह काम अभी नहीं, थोड़ा-सा ठहरकर करना है, पहले जरा कोई घटना करके मैं शेरसिंह का दिमाग दूसरी तरफ मोड़ दूं। हालांकि मुझे इस बात का डर है कि कहीं मेरा यह खत भी पकड़ा न जाए---इसीलिए मैं अपने एक खास ऐयार चन्द्रसेन के हाथ यह खत आपके पास भिजवा रहा हूं। चन्द्रसेन मेरा इतना खास आदमी है कि मरते मर जाएगा... लेकिन यह खत किसी दूसरे के हाथ नहीं लगने देगा। उसी की वफादारी पर भरोसा करके मैं यह खत आपके पास भिजवा रहा हूं और आपसे विनती करता हूं कि पूरा खत पढ़ते ही आप इसे जलाकर खत्म कर देना। हो सका तो आज ही रात मैं कोई ऐसा काम करूंगा... जिससे शेरसिंह का दिमाग दूसरी तरफ हो जाए। तुम्हें यह खत इसलिए लिखा है कि जिससे तुम्हें यह पता रहे कि तुम्हारा मददगार अभी जीता है। तुम यह न सोच बैठो कि अब तुम कांता को न पा सकोगे। मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि कांता तुम्हारी बहू बनेगी और मैं हर हाल में अपना वादा पूरा करके रहूंगा।
- हरनामसिंह।
पूरी चिट्ठी पढ़ते-पढ़ते क्रोध के कारण सुरेंद्रसिंह का चेहरा लाल सुर्ख हो गया। सारा शरीर गुस्से से कांपने लगा। आखें आग बरसाने -बोले- ''शेरसिंह, हरनामसिंह इतना गिर सकता है, यह तो हम स्वप्न में भी नहीं सोच सकते थे। जब दरबार में इसकी लिखाई खतों की लिखाई से न मिली थी तो हमें सन्तोष हुआ था। लेकिन ये खत... उस खुदगर्ज की सारी करतूतों को ही खोल रहा है... हम उसे किसी भी कीमत पर नहीं बख्शेंगे।''
''मैं पहले ही कहता था महाराज कि जरूर उन्हीं की चाल है। फिर भला किसी और को उनका नाम लिखने से क्या लाभ?''
''तुम्हारे हाथ यह खत कहां से लगा?'' सुरेंद्रसिंह ने पूछा- ''क्या वास्तव में ही इस खत को लेकर चन्द्रसेन ही वहां जा रहा था?''
''हां महाराज!'' शेरसिंह ने कहा- ''हकीकत में यह खत लेकर चन्द्रसेन ही चन्द्रदत्त के पास जा रहा था। इसमें यह बात भी सच लिखी है कि हम सभी ऐयार घर गए। हममें इन्हीं खतों के विषय को लेकर बातें हो रही थीं। यह भी सच है कि चन्दराम इत्यादि सभी इस बात के पक्षपाती थे कि ये खत चन्द्रदत्त को भेजना और आखिर में हरनामसिंह का नाम लिखना किसी और का काम है... लेकिन अकेला मैं ही इस बात का पक्षपाती बना हुआ था--कि यह सब चाल हरनामसिंह की है।
''उस समय तो मुझे इस बात का सपने में भी ख्याल नहीं था कि हमारी बातें कोई सुन रहा था, किन्तु इस बात को पढ़कर पता लगा कि कोई आदमी हमारी बातें बखूबी सुन रहा था।
''खैर... उस समय मैंने यही निश्चय किया कि गद्दार चाहे जो हो... है हमारे किन्हीं खास आदमियों में से ही.. और एक बार फिर चन्द्रदत्त और उस गद्दार के बीच कोई पत्र-व्यवहार जरूर होगा अथवा चन्द्रदत्त के ऐयार नलकू और सुखदेव को छुड़ाने तो जरूर ही आएंगे। मैंने सोचा कि क्यों न मैं उनकी टोह में रहूं--सम्भव है कोई भेद की बात का पता लग सके। यही विचार करके मैंने एक बकरी की खाल पहनी... और भरतपुर की सरहद के पास वाले जंगल में बकरियों के साथ मिलकर चरने का अभिनय करता रहा। यह तरीका मैंने इसलिए अपनाया था कि मैं अच्छी तरह सरहद की निगरानी कर सकूं। अन्त में शाम के समय मेरी मुराद पूरी हुई... मुझे चंद्रदत्त के ऐयार चमके... मैंने उनकी बातें सुनी।
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