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देवकांता संतति भाग 3

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2054
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''अब हमें यहां थोड़ी देर पेड़ की छांव में बैठकर कुछ बातों पर विचार कर लेना चाहिए।'' चमनलाल ने अपने बाकी तीन साथियों से कहा- ''इस समय भरतपुर की सीमा पर सुरेन्द्रसिंह की फौजें होंगी और हम चारों एक साथ भरतपुर में दाखिल कैसे होंगे?'' - ''हमारे ख्याल से हम चारों को अलग-अलग अपने-अपने ढंग से भरतपुर में दाखिल होना चाहिए।'' गहराचन्द पेड़ के नीचे बैठता हुआ बोला- ''हम चारों एक साथ तो किसी भी तरह दाखिल नहीं हो सकेंगे। ये हो सकता है कि हम चारों राजधानी में कोई स्थान निश्चित करके वहां मिलें।''

''मेरे दिमाग में तो एक रास्ता आता है।'' हीरामल भी बैठते हुए बोला- ''हमारे पास जो ये बकरियां चर रही हैं... जरूर एक-दो ग्वाले भी इनके साथ होंगे... जितने भी ग्वाले होंगे, हममें से उतने ही आदमी ग्वाले बनकर राजधानी तक जा सकते हैं।''

''अरे!'' चमनलाल एकदम चौंककर बोला- ''वो देखो - कौन चला आता है - काफी तेज है, शायद कहीं पहुंचने की जल्दी में है।''

सबने उस तरफ देखा... सचमुच ही एक आदमी तेजी से चलता हुआ इधर ही आ रहा था। उसकी बगल में ऐयारी का लटका हुआ बटुआ इस बात का गवाह था कि वह कोई ऐयार है। वह इतनी दूर था कि अभी तक उसने इनको नहीं देखा था। एक सायत तो वे चारों उसे देखते रहे, फिर गहराचन्द बोला- ''ये तो सुरेन्द्रसिंह का कोई ऐयार लगता है। शायद जंगल में इसे सुरक्षा के तौर पर बालादवी के लिए छोड़ा गया है।''

''नहीं!'' हरीराम बोला- ''इसकी चाल बताती है कि यह बालादवी नहीं कर रहा है, बल्कि इसे कहीं पहुंचने की जल्दी है। देखते नहीं...बिना इधर-उधर देखे तेजी के साथ इधर ही आ रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी घात में राजगढ़ ही जा रहा हो?'' - ''जो भी हो।'' हीरामल बोला- ''लेकिन ये तो निश्चित है कि ये है सुरेन्द्रसिंह का ऐयार... हो सकता है कि इसे पता हो कि नलकूराम और सुखदेवसिंह को राजधानी में कहां कैद किया गया है? क्यों न इसे पकड़ लें और इससे पूछताछ करें... कदाचित् कोई भेद की बात बता सके?''

हीरामल के इस विचार को सभी ने एकमत होकर स्वीकारा और सभी आस-पास आड़ में छुप गए। अपने-अपने स्थान पर छुपे चारों ऐयार इस घात में थे कि कब वह आदमी पास आए और कब वे चारों झपटकर उस पर कब्जा करें। उनका इच्छित समय भी आ गया और चारों ने उसे झपटकर पकड़ भी लिया। हालांकि उस आदमी ने खुद को उनके पंजे से बचाने की बहुत कोशिश की, मगर सफल नहीं हो सका। आखिर चारों नेँ उसके हाथ-पैर बांध्र दिए और इस तरह से पूछताछ करने लगे- ''सीधी तरह से बताओ कि तुम कौन हो... तुम्हारा नाम क्या है? वर्ना हम तुम्हें जान से मार देंगे।''

''देखने में तो आप सब ऐयार लगते हैं।'' वह आदमी बोला- ''और मैं खुद भी ऐयार हूं... क्या एक ऐयार दूसरे ऐयार को मार सकता है?''

'बको मत!'' चमनलाल गरजा- ''बताओ कि तुम किसके ऐयार हो... और इतनी तेजी से कहां जाते हो?''

''मैं सुरेन्द्रसिंह का ऐयार हूं और उन्हीं के एक गुप्त काम से जाता था।'' उस आदमी ने कहा- ''लेकिन आप कौन हैं...मुझे तो चन्द्रदत्त के ऐयार लगते हो।''

''ठीक पहचाना तुमने!'' हीरामल बोला- ''बताओ कि तुम्हारे राजा ने नलकू और सुखदेव को कौन-सी कैद में रखा है?'' - ''ओह!'' उस आदमी ने जवाब न देकर अपनी बात ही आगे कही- ''हमें लगता है कि हमारा काम यहीं हो गया। असल बात ये है कि मैं राजा चन्द्रदत्त के पास जा रहा था। हकीकत में मैं सुरेन्द्रसिंह का नहीं, बल्कि हरनामसिंह का ऐयार हूं। उनका एक सन्देश लेकर मैं आपके राजा के पास जा रहा था।''

''कोई भी चालाकी अब काम न आएगी।'' चमनलाल बोला- ''अभी कहते थे कि सुरेन्द्रसिंह के ऐयार हो। हमारी हकीकत जानकर हमारे साथी बनने लगे। सीधी तरह जवाब दो वरना हम ऐयारी के सिद्धान्त का बिल्कुल ख्याल छोड़ देंगे। ठीक-ठीक बताओ कि कहां जाते थे?''

''मेरा यकीन मानिए।'' आदमी बोला- ''मैं ये झूठ बोलता था कि सुरेन्द्रसिंह का ऐयार हूं। तनख्वाह जरूर सुरेन्द्रसिंह की पाता हूं लेकिन पक्षपाती हरनामसिंह का हूं। अगर मैं खुले रूप से यह कहता फिरूं कि मैं हरनामसिंह का ऐयार हूं तो कैसे जी सकूंगा? अब तो मैं आपकी हकीकत जानकर अपनी हकीकत बता रहा हूं। अगर यकीन नहीं आता तो मेरे बटुए में हरनामसिंह की एक चिट्ठी है, जो उन्होंने राजा चन्द्रदत्त को देने के लिए कहा है... आप लोग उसे पढ़कर यकीन कर सकते हैं।''

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