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देवकांता संतति भाग 3

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2054
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

नौवाँ बयान


कुछ ही सायत के अन्तराल से चन्द्रदत्त, शंकरदत्त, बालीदत्त और जोरावरसिंह को होश आया। चारों के ही सिर में तेज दर्द हो रहा था और यह सोचने में उन्हें कोई कठिनाई नहीं हुई कि उन्हें जबरदस्त धोखा दिया गया है। चारों ने एक-दूसरे की ओर देखा और आश्चर्य करने लगे। डेरे में अब वह खाकी मोमबत्ती नहीं जल रही थी - बल्कि कन्दील का पर्याप्त प्रकाश था। डेरे का सामान यह गवाही दे रहा था कि उनकी बेहोशी का फायदा उठाकर डेरे की तलाशी ली गई है।

''ये क्या हुआ महाराज... क्या ये हमारे किसी दुश्मन के ऐयार की कार्यवाही है?'

अभी चन्द्रदत्त जोरावरसिंह के सवाल का कोई उत्तर भी न दे पाए थे कि उनकी नजर अपने पास ही पड़े एक कागज पर स्थिर हो गई। पाठक लोग समझ गए होंगे कि यह वही कागज था, जो शेरसिंह ने इन लोगों की गफलत के समय लिखा था। अब हम पाठकों को इस खत का मजमून बताने जा रहे हैं। चन्द्रदत्त ने वह खत उठाया और लिखे हुए अक्षरों पर उनकी दृष्टि फिसलती चली गई। अन्त में लिखे- 'शेरसिंह' ने उन्हें चौंका दिया। उन्होंने खत शुरू से पढ़ा-

प्यारे चन्द्रदत्तजी,

आपको मेरा... यानी ऐयार शेरसिंह का सलाम।

हमारे ख्याल से अब आपको बताने का समय आ गया है कि आपने जबरदस्त धोखा खाया है। सबसे पहले हम आपको यह बता दें कि आपका दारोगा जोरावरसिंह गद्दार और नमकहराम नहीं, बल्कि वफादार, सीधा और सच्चा है। वक्त रहते हम आप पर यह भेद इसलिए खोल रहे हैं कि आप बेकार ही निर्दोष जोरावरसिंह को किसी तरह परेशान न करें। हमने यह सब किस तरह किया है, वह सब तो इस खत में लिखने की कोई जरूरत नहीं है - यह आप ही सोचिए। हमें केवल इतना करना था कि आपको और आपकी सेना को राजधानी के बाहर से हटाना था, सो हम कितनी खूबी से कर चुके हैं यह आप जानते ही हैं। आपकी सेहत के लिए हम ये बता दें कि आपके ऐयार नलकूराम और सुखदेवसिंह हमारी कैद में आराम फरमा रहे हैं ... मैं खुद नलकूराम बना हुआ था और मेरा दोस्त गोपालदास सुखदेव। हमने आपके दिमाग में यह बैठा दिया कि जोरावरसिंह हमारे महाराज सुरेन्द्रसिंह से मिल गया है, जबकि यह एकदम गलत है। जोरावरसिंह तो बेचारा आपके हुक्म का गुलाम है। अपनी इस पराजय का दोष आप अपने दारोगा को नहीं अपनी बुद्धि को दीजिए, जिसे हम ऐयारों ने गलत दिशा में घुमा दिया। खैर... जो भी हुआ, लेकिन इतना जरूर है कि आपने हमारी ऐयारी का कमाल देख लिया। इस समय आप भरतपुर से बाहर हैं और अब तक राजा सुरेन्द्रसिंह इतना इन्तजाम कर चुकें हैं कि आप अगर भरतपुर की ओर मुंह करें तो आपका मुंह तोड़ा जा सके। इस बार भरतपुर की सीमाओं पर ही आपको सुरेन्द्रसिंह की सेनाओं से लोहा लेना होगा। वैसे हम आपकी बेहतरी के लिए लिख दें कि अब जिन्दगी में कभी भरतपुर की ओर मुंह मत कीजिए ... क्योंकि भरतपुर में आपका मददगार यानी हरनामसिंह का भेद भी सुरेन्द्रसिंह तक पहुंच चुका है और सजाए-मौत का हुक्म सुनाया जा चुका है, इस बार तो आप राजधानी तक पहुंच गए ... मगर अब सेनाएं आपके स्वागत के लिए तैयार हैं। अगर हमारा विश्वास न हो तो आगे बढ़कर देख लें। हमें माफ करें क्योंकि हम आपके डेरे से हरनामसिंह के सारे खत ले जा रहे हैं ... ताकि उस गद्दार की जल्दी से फांसी पर लटकाया जा सके ... राजकुमारी कांता की अंगूठी और वह खत जो हमने केवल आपको धोखा देने के लिए सुरेन्द्रसिंह से जोरावरसिंह के लिए लिखवाया था ... वह भी हम ले जा रहे हैं। राजकुमारी कांता की तो बात ही दूर है, आप और शंकरदत्त तो इतने कमीने हैं कि राजकुमारी की अंगूठी भी आपको नहीं मिलेगी। अब अगर भरतपुर आए तो अपना भला-बुरा सोचकर आएं।

आपका शुभचिन्तक

शेरसिंह।

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