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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

'हम बड़े हुए तो हमारे गुरु ने हमें ऐयारी सिखाई और हमें बताया कि हमारी मां फलां तिलिस्म में कैद है, हमारा आधा जीवन इसी प्रयास में निकल गया कि हम मां को तिलिस्म से निकाल सकें। कुछ ही दिनों पूर्व हमारी रियासत के एक ज्योतिषी ने बताया कि इस तिलिस्म को देवसिंह के अतिरिक्त कोई नहीं तोड़ सकता। इस पर हमने प्रश्न किया कि हमारे पिता देवसिंह तो मर चुके हैं, फिर इस तिलिस्म को कौन तोड़ेगा? तब उन्होंने कहा कि जो होनी होती है, विधाता उसे पहले ही लिख देता है। विधाता ने देवसिंह के भाग्य में लिखा था कि इस जन्म में वह तिलिस्म तोड़ता-तोड़ता मर जाएगा, किन्तु पूरा नहीं तोड़ सकेगा। वह तय है कि इस तिलिस्म को तोड़ेगा देवसिंह ही पर अगले जन्म में।

''इस तिलिस्म का सबसे मुख्य ताला इस किस्म का है जो केवल ऐसी उंगली से खुलेगा जो आगे से हल्की-सी मुड़ी हुई होगी।

''ऐसी उंगली केवल देवसिंह की ही होगी, वह भी उस जन्म में नहीं, जबकि देवसिंह होगा, बल्कि अगले जन्म में वह विजय की होगी। आप लोगों को शायद विदित हो कि आपके विजय और हमारे पिता देवसिंह के दाएं हाथ की अंगूठे के पास वाली अंगुली का अग्रिम भाग मुड़ा हुआ होगा।

''यह बात हमें उस ज्योतिषी ने बताई - गर्ज ये कि जिसमें हमारी मां कैद है, उस तिलिस्म को आपके विजय के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं तोड़ सकता। हमें ज्योतिषी ने यह बताया कि इस जन्म में देवसिंह का नाम विजय है जो भारत के एक शहर राजनगर में रहता है। वहां के आईजी ठाकुर निर्भयसिंह का लड़का है, दुनिया के जासूसों में उसका सर्वाधिक नाम होगा। विजय के रूप में वह कभी किसी नारी को पत्नी की दृष्टि से नहीं देखेगा। उन्होंने यही बताया कि उन्तालीस वर्ष की आयु तक विजय कभी महसूस नहीं कर सकेगा कि पिछले जन्म में वह क्या था। चालीस वर्ष की आयु में उसे एक स्वप्न दिखेगा। इस स्वप्न में वह खण्डहर जिसमें कांता कैद है, चमकेगा। अपने पूर्व जन्म की कुछ घटनाएं चमकेंगी, साथ ही कांता की चीख भी वह महसूस करेगा। इस स्वप्न के पश्चात उसे उस समय तक सारे जीवन यह स्वप्न चमकता रहेगा, जब तक कि वह उस तिलिस्म को तोड़कर कांता को अपनी बांहों में समेट नहीं लेगा। उसी दिन के बाद उसके मस्तिष्क को किसी प्रकार की शांति मिल सकेगी। कांता के लिए वह ऐसा ही दीवाना हो जाएगा, जैसे कि वह पूर्व जन्म में अर्थात् देवसिंह के रूप में था। इसके बाद चाहे दुनिया की कोई भी शक्ति रोके, वह नहीं रुकेगा। जब तक वह तिलिस्म से कांता को निकाल नहीं लेगा, तब तक वह किसी की चिंता नहीं करेगा। सोते ही उसे कांता, खण्डहर और अपने पूर्व जन्म की घटनाएं चमकेंगी और वह कान्ता के पीछे दीवाना होकर उठ खड़ा होगा। सारे जीवन वह आराम से नहीं सो सकेगा। ज्योतिषी ने यह भी बताया कि उसको यहां आने से कुछ लोग रोक भी सकते हैं। उन्होंने साफ बताया था कि कुछ लोग उन्हें रोकने का प्रयास करेंगे - इस पर हमारे गुरुजी ने हमसे कहा कि अपने पिता को लाना हमारे जिम्मे है। मेरी बहन और मुझे यहां उन्हें लेने के लिए ही भेजा गया था।''

''तो तुम्हारी बहन कहां है?'' विकास ने पूछा।

''उसी के भरोसे पर तो मैं अभी तक यहां शान्तिपूर्वक खड़ा हुआ हूं।'' गौरव ने बताया - 'निश्चय ही वह उस नकाबपोश के पीछे गई होगी जो पिताजी को उठाकर ले गया है। अगर उसका भरोसा नहीं होता तो मैं इस समय आपको कहानी सुनाने के स्थान पर उनकी खोज करता।''

''क्या तुम्हें यकीन है कि तुम्हारी बहन गुरु को दुश्मनों से मुक्त करा लाएगी?'' रघुनाथ ने पूछा।

''आपने अभी वंदना को देखा नहीं है।'' गौरव बोला-''वह नम्बर एक की ऐयार है, किसी भी फन में वह मुझसे पीछे नहीं है। मुझे पूरा भरोसा है उस पर। यकीनन वह पिताजी को किसी प्रकार की क्षति न पहुंचने देगी।''

''और-ये उमादत्त कौन है?'' प्रश्न विकास ने किया।

''इस प्रश्न का जवाब काफी विस्तृत है, किन्तु इस वक्त केवल संक्षेप में समझ लें कि उमादत्त हमारे दुश्मनों में से एक है - वैसे हमने अथवा यूं कहिए कि हमारे गुरु ने दुश्मनों को धोखा देने के लिए काफी अच्छी चाल चली थी, मगर फिर भी पता नहीं कि उमादत्त के ऐयारों को कैसे भनक लग गई कि हम यहां आए हैं। वरना वे किसी भी कीमत पर यहां नहीं पहुंच सकते थे।''

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