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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''लेकिन जब राजगढ़ में ऐसी घटना घटी नहीं है तो यहां ऐसी खबर लेकर कोई आएगा क्यों?'' बालीदत्त ने अपनी बुद्धि के अनुसार प्रश्न किया।

'आप कौन-कौन से ऐयारों को राजगढ़ में छोड़कर आए हैं महाराज ?'' नलकू ने प्रश्न किया।

पन्नालाल, हीरामल, हरीराम और गहराचन्द इत्यादि ऐयार राजगढ़ में हैं।'' चंद्रदत्त ने बताया- ''किन्तु यहां उनके नाम पूछकर तुम क्या करना चाहते हो? अब इस समय तो वे यहां नहीं आ सकते -- हमें तो ये सोचना है कि इस समय हम दारोगा को कैसे धोखा दें?''

''मैं वही सोच रहा हूं महाराज।'' नलकू बने शेरसिंह ने कहा- ''कल सुबह को मैं पन्नालाल का भेस धरकर यहां आऊंगा। अपने साथ मैं कोई सन्देश लाऊंगा। आप तीनों के अलावा सब यही समझेंगे कि पन्नालाल आया है और कोई सूचना लाया है। यह रहस्य केवल आप तीनों ही जानेंगे कि पन्नालाल के भेस में वह मैं होऊंगा और एक झूठी खबर लाऊंगा। बस---आपको यहां से कूच कर देना है।'

'लेकिन तुम सूचना क्या लाओगे?'' चंद्रदत्त ने पूछा।

'यह तो सब जानते ही हैं कि रामगढ़ी के राजा सूर्यजीत से हमारा पुराना बैर चला आ रहा है।'' नलकू बने हुए शेरसिंह ने अपना शब्दज़ाल बिछाया- ''जानते हैं कि हमारा और सूर्यजीत का झगड़ा राक्षसनाथ के तिलिस्म के ऊपर है। राजा सूर्यजीत कहते हैं कि राक्षसनाथ का तिलिस्म उसके राज्य में है और आप कहते हैं कि हमारे राज्य में है। इस तिलस्म के ऊपर सदियों से दुश्मनी चली आ रही है। अतः मैं यहां ये सूचना लेकर पहुंचूंगा कि सूर्यजीत अपनी पूरी शक्ति से राजगढ़ को जीतने के लिए हमारी तरफ बढ़ रहा है। मैं ये कहूंगा कि सूर्यजीत को यह पता है कि राजा (चंद्रदत्त) इस समय अपनी सेना के साथ यहां है। इसी का लाभ उठाकर आपकी अनुपस्थिति में वह राजगढ़ में कत्लेआम मचाने आ रहा है। अगर उसे रोका नहीं गया तो वह जल्दी ही अपने उद्देश्य में सफल होने वाला है। अत: हमें राजगढ़ की और कूच करना चाहिए।''

''बहाना तो अच्छा है।'' चंद्रदत्त बोले-- ''राजगढ़ में कत्लेआम की सूचना सुनकर सारी सेना को अपने-अपने परिवार की चिन्ता होगी और हर सिपाही राजगढ़ की ओर चलने के लिए आतुर हो उठेगा। वैसे तो दारोगा का परिवार भी राजगढ़ में है किन्तु संभव है कि कांता को प्राप्त करने के लालच में वह अपने परिवार की चिन्ता छोड़ दे और सेना को यहां से हटने का आदेश न दे।''

'ऐसा नहीं होगा, क्योंकि इसके पीछे एक सबब है - जिसे केवल मैं जानता हूं।'' नलकूराम की आवाज में ही शेरसिंह ने कहा।

''ऐसा क्या सबब है?'' चंद्रदत्त ने पूछा- ''हमें भी बताओ।''

''यह बात अभी आपको भी नहीं पता है कि सूर्यजीत का लड़का रमाकांत और जोरावरसिंह की बहन राजेश्वरी आपस में मुहब्बत करते हैं - जो जोरावरसिंह को पता है और उसे बिल्कुल पसन्द नहीं है। उसने राजेश्वरी को सख्ती से रमाकान्त से मिलने से मना किया है। वह किसी भी कीमत पर नहीं चाहता कि राजेश्वरी व रमाकांत आपस में मिलें। इसीलिए वह सूर्यजीत के हमले के बारे में सुनकर खुद ही राजगढ़, पहुंचने के लिए आतुर हो उठेगा और अपनी बहन को बर्बादी से बचाने के लिए वह राजगढ़ कूच करने के लिए तुरन्त तैयार हो जाएगा।''

''लेकिन तुम्हें राजेश्वरी और रमाकांत के बारे में कैसे पता लगा?'' बालीदत्त ने पूछा।

''मेरा काम ऐयारी है छोटे कुंवर!'' नलकूराम ने कहा- ''मुझे लोगों के गुप्त रहस्य पता रखने के ही राजा साहब पैसे देते हैं। इस वक्त यह बताने का समय नहीं है कि मुझे राजेश्वरी और रमाकांत के बारे में कैसे पता लगा? इस समय तो केवल आप इतना ही समझ लें कि मुझे पता है। कभी समय मिलने पर पूरी घटना अवश्य बताऊंगा। इस समय हमें दारोगा को करनी का मजा चखाना है - अत: सबकुछ भूलकर यही सोचते हैं। मैं सुबह पन्नालाल के भेस में यहां आऊंगा और यह सूचना लाऊंगा। इस सूचना को सुनकर सभी सिपाहियों को राजगढ़ में बसे अपने परिवारों की चिन्ता होगी। मेरा विश्वास है कि दारोगा जोरावरसिंह भी खुद को रोक नहीं सकेगा और कांता वाले काम को फिर करने का विचार करके यहां से कूच कर देगा। इस तरह हम अपने उद्देश्य में सफल हो 'जाएगे। राजगढ़ पहुंचकर दारोगा को उसकी करनी का फल दिया जाएगा।''

चंद्रदत्त, शंकरदत्त एवं बालीदत्त को नलकू की योजना ठीक ही जंच रही थी। इस समय खुद को बचाने के लिए उनके पास इसके अतिरिक्त अन्य कोई रास्ता नहीं था। वे समझ रहे थे कि वे एक गहरे षड्यन्त्र से निकल जाएंगे। किन्तु.......।

० ० ०

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