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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

इस तरह, बेहोश नलकू के बटुए में से कागज में लिपटा पत्थर निकाला गया। हम पाठकों को यहां इस समय ये तो नहीं बता सकते कि गोपालदास और शेरसिंह इस समय यहां किस तरह आ पहुंचे हैं। समय मिलने पर यह स्पष्ट करेंगे - पहले इस कागज में लिखे मजमून को जरा पढ़ लें।

श्री चंद्रदत्त जी,

उम्मीद है कि आपको मेरा कल वाला पत्र भी प्राप्त हो गया होगा। आज एक खास बात मैं पत्र में लिख रहा हूं यह तो कल के पत्र में लिख ही चुका हूं कि यहां खाद्य-सामग्री समाप्त हो चुकी है, अतः अब हमारा सुनहरा दिन करीब आता ही जा रहा है। आज मैं इस पत्र में आपके लिए एक बहुत ही मुख्य बात लिख रहा हूं - वह यह कि आज परेशान होकर सुरेंद्र भैया कांता को मारने के लिए तैयार हो गए - किन्तु इस बात की चिन्ता मत करना, यह तो खैर मैं नहीं होने दूंगा, किन्तु विशेष रूप से चिन्ता का कारण शेरसिंह है। उसका कहना है कि वह अपनी ऐयारी के बल पर बिना लड़े आपको राजधानी के बाहर से ही नहीं, बल्कि भरतपुर के बाहर कर देगा। उसका कहना है कि उसके दिमाग में एक ऐसी तरकीब आ चुकी है कि जिस तरकीब से वह अकेला ही आपको इस हद तक विवश कर देगा कि आप स्वयं ही भरतपुर से अपनी सेना को लेकर बाहर निकल जाएंगे। यह तो मैं भी नहीं समझ पाया कि ऐसी उसके पास कौन-सी तरकीब होगी - परन्तु यह बात आप भी जानते हैं कि शेरसिंह कितना चतुर ऐयार है - उसने अपने दिमाग की योजना सबके सामने नहीं बताई, बल्कि राजा को  तखलिए में ले जाकर बताई है। मैं इस पत्र में यह तो नहीं लिख पा रहा

हूं कि शेरसिंह किस तरह की ऐयारी करेगा, किन्तु आपको सतर्क करता हूं कि आप किसी तरह के धोखे में न आएं। बस - याद रहे, चाहे जैसी भी परिस्थिति बन जाए, मगर आप यहां से अपनी फौज मत हटाना। अपने ऐयारों को सतर्क कर दीजिए। मैं फिर लिखता हूं कि आप किसी तरह के धोखे में न आएं। वरना आप अपने लड़के

शंकरदत्त को कभी कांता नहीं दे सकेंगे और मैं कभी भरतपुर का राजा नहीं बन सकूंगा। शेरसिंह की ऐयारी से सावधान। चाहे दुनिया इधर से उधर हो जाए, किन्तु फौजें मत हटाना - इसी में मेरी और आपकी - भलाई है।

आपका दोस्त - हरनामसिंह।

''ओह!'' हां पत्र पढ़ने के बाद गोपालदास बोला- ''तो हरनामसिंह गद्दी के लिए अपनी भतीजी (कांता) और भाई सुरेंद्रसिंह का ही दुश्मन बन गया।''

 

० ० ०

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