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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

तेरहवाँ बयान


कृष्ण पक्ष की काजल-सी काली रात्रि का तीसरा पहर प्रारम्भ हो चुका है। चारों ओर अन्धकार एवं सन्नाटे का साम्राज्य है, कहीं कोई प्रकाश अथवा ध्वनि उत्पन्न होने का साहस नहीं कर रही है। सम्पूर्ण किले पर सिपाही पहरा दे रहे हैं। राजधानी की उस दीवार पर भी सुरेंद्रसिंह के सिपाही पहरा दे रहे हैं, जो राजधानी के चारों ओर खिंची हुई है। यह दीवार कम-से-कम दो सौ हाथ ऊंची है। दो सौ हाथ ऊपर दीवार के सहारे-सहारे एक बारादरी बनी हुइ है। यह बारादरी दीवार के सहारे-सहारे राजधानी के चारो ओर है। इसमें भी पूर्णतया अन्धकार है, किन्तु बारादरी के अन्धकार में खड़े सिपाही चप्पे-चप्पे पर पहरा दे रहे हैं, किन्तु उनमें से किसी को भी किसी प्रकार की रोशनी करने का हुक्म नहीं है। क्योंकि इससे राजधानी के बाहर पड़ी चंद्रदत्त की सेना जान लेगी कि अन्धेरे में पहरेदार खड़े हैं।

ऐसे समय में बारादरी में एक रहस्यमय आदमी नजर आता है। अंधेरा होने के कारण हम उसका चेहरा तो नहीं देख सकते, अलबत्ता हम उसे एक साए के रूप में स्पष्ट देख सकते हैं। इस घोर अन्धेरे में हम उसे पहचान नहीं पा रहे हैं। अत: समझ नहीं पा रहे हैं कि उसके लिए क्या लिखें सहूलियत के लिए इस समय हम उसे आदमी ही लिखते हैं! वह कौन है? यह तब देखा जाएगा, जब हम उसे पहचान लेंगे। फिलहाल हम देखते हैं कि वह आदमी तेज-तेज कदमों से बारादरी में बढ़ा चला जा रहा है। अन्धेरे में खड़े सिपाही उसे रोकते हैं तो वह कहता है- ''हम हैं? इतना सुनते ही सिपाही उसके रास्ते से हट जाते हैं।

इसी तरह प्रत्येक सिपाही से कहता हुआ वह आगे बढ़ता जाता है। इस समय वह धरती से दो सौ हाथ ऊपर बारादरी में है। वह राजधानी से बाहर देखता है। कई स्थानों पर अलाव जल रहे हैं। इसका मतलब चंद्रदत्त की सेना के कुछ लोग रात का पहरा देते हुए हाथ ताप रहे हैं। सारी स्थिति को देखता हुआ वह आदमी बारादरी के एक निश्चित स्थान पर पहुंच जाता है। यहां उसके आसपास कोई भो सैनिक नहीं है। वह सावधानी के साथ अपने बटुए में हाथ डालता है। जब उसका हाथ वापस आता है तो उसके हाथ में एक कागज दबा हुआ होता है। वह आदमी धीरे से उस कागज को दीवार के पार बाहर उस तरफ फेंक देता है, जिस तरफ चंद्रदत्त की सेना पड़ी है। उसके आसपास अंधेरा होने के सबब से हमारे अतिरिक्त इस रहस्यमय आदमी की इस अनोखी हरकत को अन्य कोई भी नहीं देख पाता।

अभी तो हम नहीं कह सकते कि यह रहस्यमय आदमी कौन है। और उसकी इस अजीब हरकत का मतलब क्या है। हम ये भी नहीं कह सकते कि जो कागज इसने सबकी नजर से बचाकर बाहर की ओर फेंका है, उसमें क्या लिखा है। आइए, हम इसका पीछा छोड़कर यह देखते हैं कि इसका फेंका हुआ कागज किसके हाथ लगता है - शायद हमें उस कागज में लिखा मजमून भी पता लग सके और कदाचित् इस आदमी ने उस कागज में अपना नाम भी लिखा हो।

दीवार के ऊपर बनी बारादरी के जिस स्थान से उस रहस्यमय आदमी ने कागज फेंका है - ठीक उसके नीचे दीवार के सहारे बाहर की ओर अन्धेरे में एक आदमी खड़ा है। उसके खड़े होने के ढंग से ऐसा प्रतीत होता है मानो इस समय उसे किसी होने वाली घटना का इन्तजार है किन्तु-अंधेरा होने के कारण वह कुछ भी नहीं देख पाता। अचानक उसके समीप ही एक ऐसी आवाज होती है, जैसे आसमान से कोई छोटा-सा पत्थर आकर धरती पर गिरा हो। आवाज सुनते ही वह आदमी सतर्क हो जाता है। मानो उसे इसी बात का इन्तजार था। वह तुरन्त आवाज की दिशा में बढ़ता है। टटोलता है, किन्तु उसके हाथ वह पत्थर नहीं लगा, जो ऊपर से आकर उसके आसपास ही अन्धेरे में कहीं गिरा है, इस परेशानी में हमें उस आदमी का चेहरा चमक रहा है और हम इसे पहचानते भी हैं। अत: पाठकों को भी हम इसका नाम बता देना अपना फर्ज समझते हैं। इसका नाम नलकूराम है और यह राजा चंद्रदत्त की ऐयार मंडली का एक ऐयार है, फिलहाल हमारे पाठकों के लिए नलकू के बारे में बस इतना ही जानना पर्याप्त है।

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