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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

'लेकिन हमारे बाद वे कांता!'' और कुछ कहते-कहते स्वयं ही रुक गए सुरेंद्रसिंह।

''समस्या वहीं-की-वहीं है पिताजी।'' बलरामसिंह ने अपने पिता सुरेंद्रसिंह से कहा- ''हम इस गुत्थी को सुलझा नहीं सकते। आज पूरी राजधानी को चारदीवारी में कैद हुए चार महीने बीत गए हैं। खाद्य सामग्री समाप्त हो चुकी है। फाटक खोला जाएगा तो चंद्रदत्त की सेनाएं यहां कत्लेआम कर देंगी। निश्चय ही हमारी पराजय है। दूसरी तरफ अगर हम दरवाजा नहीं खोलेंगे तो हमारे साथ-साथ प्रजा भी भूख से मर जाएगी। हमारे हर तरफ मौत है। हम बच नहीं सकते, इससे अच्छा है हम कांता को।''

''हां.. हां बलरामसिंह कहो!'' उसके अटकने पर सुरेंद्रसिंह बोले-- ''चुप क्यों हो गए? बोलो कांता के बारे में क्या कहना चाहते थे?''

''पिताजी!'' हिचकिचाता हुआ बोला बलराम- ''क्यों न हम कांता को मारकर जड़ ही खत्म कर दें?''

''बलराम!'' चीख पड़े सुरेंद्रसिंह- ''जुबान को लगाम दो वर्ना हम तुम्हारा सिर कलम कर देंगे। तुम अच्छी तरह जानते हो कि कांता हमारी बेटी है और हम उसे अपनी जान से ज्यादा प्यार करते हैं। हमें तुम्हारे मुंह से यह बात सुनकर घोर आश्चर्य हो रहा है। तुम्हारी तो बहन है कांता.. तुम भला कांता के बारे में ऐसा किस तरह सोच गए? कांता हमारी बेटी है.. हम सब प्राण दे देंगे, चाहे हमारी रियासत में कत्लेआम मच जाए, परन्तु हम कांता पर किसी तरह की आंच नहीं आने देंगे। हम अपनी रियासत की आहुति दे देंगे, किन्तु उन दुष्टों को कांता तक हरगिज नहीं पहुंचने देंगे।''

''कुंवर साहब क्या कांता के सगे भाई हैं, भैया?'' हरनामसिंह बलराम को घूरता हुआ सुरेंद्रसिंह से बोला- ''कांता आपकी पहली पत्नी की लड़की है और कुंवर साहब दूसरी पत्नी के, अगर ये कांता के सगे भाई होते तो ऐसा हरगिज नहीं कह सकते थे।''

''आप लोग मेरी बात समझे नहीं और मुझ पर तोहमत लगाने लगे।'' कुंवर बलरामसिंह ने कहा- ''कहने को हम सौतेले जरूर हैं, लेकिन कांता को सगे से भी बढ़कर प्यार करते हैं।

''हमारा कहने का मतलब ये था कि ये सारा बखेड़ा केवल कांता के कारण हो रहा है। चंद्रदत्त ने कांता की वजह से ही हम पर चढ़ाई की है। उसकी मांग है कि हम कांता को उसके हवाले कर दें तो वह न केवल हमारी राजधानी के चारों ओर से सेना हटा लेगा, बल्कि हमारा वह राज्य भी हमें लौटा देगा, जो उसने आज तक हमसे जीता है। वह कांता को लेकर राजगढ़ लौट जाएगा और हमसे सम्बन्ध कर लेगा। अगर हम चंद्रदत्त को यह जता दें कि हमने कांता को मार दिया है तो वह वापस जा सकता है, क्योंकि केवल कांता के कारण ही तो उसने हम पर चढ़ाई की है। मेरा मतलब असली कांता को मारने से नहीं था, बल्कि किसी तरह चंद्रदत्त इस वहम में डाल देने से था।'' - ''मतलब ये कि आप किसी और लाश को कांता की लाश बनाकर चंद्रदत्त के सामने भिजवाना चाहते हैं?'' ऐयार गोपालदास बोला।

''जी हां!''

''मगर आप ये भूल गए कुंवर साहब कि- चंद्रदत्त और चंद्रदत्त के ऐयार इतने मूर्ख नहीं हैं कि वे इतने थोथे धोखे में आ जाएं। वह पहचान जाएंगे कि हम उन्हें धोखा देना चाहते हैं। ऐसा हो सकता तो हम कभी के एक नकली कांता बनाकर उनके पास भेज चुके होते।''

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