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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

बारहवाँ बयान


हम नहीं कह सकते कि विजय गुरुवचनसिंह के हाथ कहां से लग गया? हम इस समय केवल वह लिख रहे हैं, जो हम इस समय अपनी आंखों के सामने देख रहे हैं। हम देख रहे हैं कि विजय इस समय गुरुवचनसिंह के साथ है। विकास इत्यादि पता नहीं कहां हैं? विजय विकास और गौरव इत्यादि से किस तरह अलग हुआ, यह हम आगे के किसी बयान में बताएंगे, फिलहाल - इतना ही काफी है कि विजय गुरुवचनसिंह के साथ है और गुरुवचनसिंह ने उसे पढ़ने के लिए एक मोटा और हस्तलिखित ग्रन्थ दिया है। ग्रन्थ देते समय उनके बीच क्या बातें हुई हैं, यह आप तीसरा भाग पढ़कर ही पता लगा सकते हैं, यहां केवल इतना ही कह सकते हैं कि इस ग्रन्थ में उस समय की घटनाएं लिखी है, जब विजय देवसिंह था। जिस तरह अपने सब कामों को छोड़कर विजय अपने पूर्वजन्म के विषय में लिखा गया ग्रन्थ पढ़ रहा है, आइए हम भी उसके साथ सबकुछ भुलाकर इस ग्रन्थ को पढ़ें, हम देखते हैं कि पिछले जन्म में विजय ने क्या-क्या किया।

प्रिय पाठको, अब हम आपको एक ऐसी दिलचस्प कहानी में ले जा रहे हैं, जो विजय और अलफांसे के पूर्वजन्मों की कहानी है। यह तो आप समझ ही गए होंगे कि देवसिंह नामक चरित्र विजय का है और शेरसिंह इस जन्म का अलफांसे है - हम विश्वास के साथ कह सकते हैं कि यह कहानी आपको अपनी दिलचस्पियों में बहाकर ले जाएगी। आज यानी इस आधुनिक युग में तो जासूसी होती है, वह वैज्ञानिक आधारों पर होती है। आज का जासूस विभिन्न प्रकार के शस्त्र रखता है। आज आदमी की बहादुरी और प्रतिभा कम रह गई है और वैज्ञानिक शस्त्रों का बोलबाला है। आज अगर किसी के पास बम है तो वह अकेला ही पूरी बहादुर फौज से विजयी हो सकता है। मगर उस समय विज्ञान इतना विकसित नहीं था। ऐयार लोग अपनी बुद्धि, बहादुरी और प्रतिभा के बल पर ही कैसे-कैसे कमाल कर दिखाते थे.. यही सब इस कथानक में है। हम समझते हैं कि आपको जासूसी साहित्य का वास्तविक आनन्द इसी कथानक से प्राप्त होगा। आज के युग में आदमी से अधिक विज्ञान का महत्व है। एक अपाहिज और अनाड़ी आदमी एक बम गिराकर पूरी फौज को नष्ट कर सकता है - मानव प्रतिभा की कसौटी तो तभी हो सकती है, जबकि मानव केवल अपनी प्रतिभा से सामने आए। इस कहानी में पात्र केवल अपनी मानव शक्ति का प्रयोग करता है। एक-से-एक चालाक आदमी आपके सामने आएगा। इस सारे कथानक में आपको बुद्धि का कौशल मिलेगा - दावा तो हम नहीं करते, किन्तु यह आशा अवश्य है कि आपको विजय के पूर्वजन्म की इस कहानी में पूर्ण दिलचस्पी होगी।

यह किस्सा उस समय का है, जब भरतपुर नामक रियासत राजा सुरेद्रसिंह के कब्जे में थी। यह रिसायत पूरब दिशा की ओर है। यहां एक विशाल किला बना हुआ है; जिसे राजमहल कहा जाता है। भरतपुर रियासत कई हजार बीघे में फैली हुई है। राजधानी के चारों ओर ऊंची-ऊंची दीवारें हैं, जिन पर चढ़कर किसी इन्सान के राजधानी में दाखिल होने की कल्पना भी मुमकिन नहीं है। राजधानी का केवल एक बड़ा फाटक है, जिसे अगर बन्द कर दिया जाए तो पूरी फौज भी मिलकर उसे नहीं खोल सकती। कहने का मतलब ये कि पूरा भरतपुर ही एक सुदृढ़ किला है - जिसमें दुश्मन जबरन दाखिल नहीं हो सकता, हालांकि भरतपुर की सीमाएं उस महल के चारों ओर दूर-दूर तक फैली हुई हैं। किन्तु इस समय, जिस समय का हम जिक्र कर रहे हैं। एक तरह से सुरेंद्रसिंह के कब्जे में केवल वह महल ही रह गया है। भरतपुर के दक्षिण में दूर-दूर तक जंगल फैला हुआ है। पश्चिम की तरफ दूर-दूर तक पहाड़ियों का न खत्म होने वाला सिलसिला है। खैर! अधिक भौगोलिक स्थिति का वर्णन करके हम अपने प्यारे पाठकों का समय बर्बाद नहीं करेंगे। हम शीघ्र ही अपने मुख्य विषय पर आते हैं, क्योंकि इस दूसरे भाग में पाठकों को पूरी कहानी समझानी है और हमारे पास स्थान कम है।

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