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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''ये गलत है - झूठ है।'' विक्रमसिंह चीख पड़ा- ''मेरे खिलाफ साजिश है !

''तुम्हारी यह पोल-पट्टी तो वह कागज खोल देगा जो कि मेघराज ने मुझे इसलिए लिखकर दिया था कि यह मैं तुम्हें दे दूं किन्तु अब यह कागज नकली बख्तावर की जगह असली बख्तावरसिंह पढ़ेगा। लो बख्तावर - और जान लो कि कौन सच्चा और कौन झूठा है!''

बख्तावरसिंह ने वह कागज लिया। वह अच्छी तरह पहचान गया कि यह लिखाई तो वास्तव में मेघराज की ही है। लिखा था-

प्यारे विक्रमसिंह,

मैं पिशाचनाथ को यह कागज लेकर तुम्हारे पास भेज रहा हूं आज से चार दिन पहले पिशाच ने रामरतन और चंद्रप्रभा से कलमदान का पता लगाने की जो तरकीब बताई थी। आज हम उस तरकीब पर अमल करने वाले हैं। हमें आशा है कि अभी तक तुमने गुलबदन से मुकरन्द का पता लगा लिया होगा। तुमने हमसे कहा था कि हमारे  तिलिस्म में घूमने की तुम्हारी भी बड़ी इच्छा है। आज वह वक्त आ गया है - तुम यह पत्र देखते ही पिशाच के साथ चले आओ। आज हम तीनों तिलिस्म में जाएंगे और पिशाच की तरकीब से कलमदान का पता लगाएंगे। बाकी सब ठीक है, शेष बातें मिलने पर होंगी।  

- तुम्हारा मेघराज।

वह पत्र बख्तावरसिंह ने जोर-जोर से पढ़कर सबको सुनाया। पत्र के समाप्त होते ही विक्रमसिंह चीखा- ''नहीं.. ये गलत है - बख्तावर ये धोखा है.. मुझमें और तुममें फूट डालकर फिर हमें एक बहुत ही खतरनाक जाल में उलझाया जा रहा है।''

''अब तुम्हारा झूठ नहीं चलेगा विक्रमसिंह!'' बख्तावरसिंह गुर्राया- ''मैं मेघराज की लिखाई पहचानता हूं।''

''इस साजिश को समझने की कोशिश करो बख्तावर।'' विक्रम बोला- ''ये कमीना पिशाचनाथ मेघराज से मिला हुआ तो है ही। मुझे फंसाने के लिए यह दुष्ट ऐसा पत्र असली मेघराज से ही लिखवा लाया हो तो क्या आश्चर्य की बात है? मैं नहीं, बल्कि ये पिशाच मेघराज से मिला हुआ है! तुम्हारे सामने झूठा बनाने की यह इन दोनों की गहरी चाल है! तुम तो भुगत चुके हो कि मेघराज कैसी खतरनाक साजिश बनाता है।''

''अब तुम्हारी एक नहीं चलेगी विक्रमसिंह।'' बख्तावरसिंह बोला- ''हम अच्छी तरह जानते हैं कि मेघराज कैसी साजिश बनाता है? मेघराज इस बार तुम्हारे जरिए हमें साजिश में फिर फंसाना चाहता है। गुलबदन!'' एकाएक बख्तावर ने अपने लड़के को आदेश दिया- ''विक्रमसिंह को गिरफ्तार कर लो।''

विक्रमसिंह इस समय ऐसी परिस्थितियों में नहीं था कि वह शारीरिक विरोध कर सकता - क्योंकि उसके चारों ओर गुलबदन, बख्तावरसिंह और पिशाचनाथ के साथी थे। विक्रमसिंह चीखता रहा कि पिशाच झूठा है - वह सच्चा है, किन्तु किसी ने उसकी एक न सुनी और बख्तावरसिंह के आदेश पर उसे गुलबदन गठरी बनाकर कैदखाने में डालने के लिए ले गया - उसके जाने पर बख्तावरसिंह पिशाच की ओर पलटा और बोला- ''मुझे यकीन हो गया है पिशाच कि तुम सच्चे हो। वास्तव में अगर तुम समय पर न आते तो आज फिर मैं एक साजिश में फंस जाता। मानना पड़ेगा कि दुष्ट मेघराज बड़ी गहरी चाल चलता है। और अब तुम बताओ कि वह योजना क्या है जोकि तुमने मेघराज को बताई थी? मैं तुम्हें मुंहमांगी सोने की मुहरें दूंगा, लेकिन शर्त यही है कि इस काम में ईमानदारी से मेरा साथ दो।''

''मैं अब अधिक समय खराब करना नहीं चाहता हूं।'' पिशाच ने कहा- ''मैंने मेघराज को योजना बताई थी कि मैं यानी पिशाचनाथ मेघराज के साथ उस तिलिस्म में जाऊंगा। मेरे साथ विक्रमसिंह भी होगा। जो तुम -- यानी बख्तावरसिंह होगे।

'मेघराज हम दोनों को वह कैदखाना दिखा देगा, जहां रामरतन और चंद्रप्रभा होंगे।

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