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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

सातवाँ बयान


हम जानते हैं कि इतना कथानक पढ़ जाने के पश्चात् भी पाठक अभी तक यह नहीं समझ पाए हैं कि मुख्य कथानक क्या है? कौन किसका दुश्मन और दोस्त है? कौन किसका ऐयार है, यह सब बखेड़ा किस बात पर बना हुआ है? हम जानते हैं कि जब तक पाठक यह सब न जानें, उनका दिमाग उलझन में ही रहेगा, अत: अब जरा ध्यान से पढ़िए -- हम धीरे-धीरे करके एक-एक रहस्य स्पष्ट करते जा रहे हैं।

विक्रमसिंह ने मेघराज और पिशाच के बीच की जो बातें सुनी हैं, उनसे काफी कुछ पाठकों की समझ में आएगा - अत: विक्रमसिंह की ही जुबानी हम वह सब पाठकों को भी सुनाते हैं जो विक्रमसिंह, बख्तावरसिंह इत्यादि को बता रहा है।

उस समय मैं मेघराज के कमरे के बाहर ही था, जब मैंने मेघराज की आवाज कमरे के अन्दर से आती सुनी-

'देखो पिशाचनाथ, ये तो मैं नहीं जानता कि तुम मुझे अपना दोस्त मानते हो या नहीं मानते, लेकिन मैं तुम्हें ये विश्वास दिला सकता हूं कि मैं तुम्हें सच्चे दिल से अपना दोस्त मानता हूं। इस समय हम दोनों मुसीबत में हैं। अगर हम दोनों मिलकर काम करें तो दोनों ही अपनी- अपनी मुसीबत से छुटकारा पा सकते हैं। तुमने और मैंने बहुत से पाप-कर्म किए हैं। तुम जो भी कुछ कर रहे हो, अपने अपमान का बदला लेने के लिए कर रहे हो और मैं जो कुछ कर रहा हूं उमादत्त का राज्य लेने के लिए कर रहा हूं।'

मेघराज का यह वाक्य सुनकर मैं चौका और मेरी दिलचस्पी उनकी बातों के प्रति बढ़ गई। अत: मैं कमरे के बाहर ही खड़ा होकर उनकी बातें सुनने लगा। मेघराज की बात के जवाब में पिशाच की आवाज आई-

तुम यकीन मानो या न मानो मेघराज, लेकिन मैं तुम्हें हमेशा से अपना दोस्त समझता हूं। तुम जानते हो कि मैंने जितने भी पाप-कर्म किए हैं, उन सबका रहस्य वह टमाटर वाला जानता है। जबकि मैं ये भी नहीं जानता कि वह टमाटर वाला है कौन। केवल इतना ही जानता हूं कि वह अपना नाम शैतानसिंह बताता है। उसका मुझे टमाटर दिखाने का मतलब है कि वह मुझे जब चाहे समाप्त कर सकता है। मैं तुमसे केवल इतना ही चाहता हूं कि उस टमाटर वाले को खोजने में तुम मेरी कुछ मदद करो।'

लेकिन तुमने आज तक यह नहीं बताया कि आखिर तुम एक छोटे-से टमाटर से डरते क्यों हो?

'तुम नहीं जानते मेघराज, उस टमाटर में ही तो मेरी जान पड़ी है।' पिशाच ठण्डी सांस भरकर बोला- 'अगर वह टमाटर मेरे हाथ लग जाए तो दुनिया की कोई भी शक्ति पिशाच से नहीं जीत सकती। साथ ही ये बात भी है कि मैं अपने मुंह से उस टमाटर का रहस्य किसी को बताकर भला अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी किस प्रकार मार सकता हूं? हां, उसके मिल जाने पर मैं तुम्हें उसका रहस्य बता सकता हूं।'

लेकिन तुम्हें मुझसे किस बात का डर है?' मेघराज ने कहा-'मुझे तो तुम अपना दोस्त मानते हो?'

'तुमने भी तो आज तक अपने कलमदान का रहस्य मुझे नहीं बताया?' जवाब में पिशाच बोला-'क्या मैं तुम्हारा दोस्त नहीं हूं?'

'खैर!' मेघराज बात को सम्भालने की चेष्टा करता हुआ बोला--'हम दोनों को चाहिए कि मैं तुम्हारे रहस्य को जानने की कोशिश न करूं और तुम मेरे रहस्य को। हम दोनों को विश्वास करके एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए। तुम मेरे, साथ मिलकर मेरी मदद करो - यानी उस कलमदान को प्राप्त करने में मेरी मदद करो, उसके बाद हम दोनों मिलकर उस टमाटर वाले को खोज निकालेंगे।'

'ठीक है।' पिशाच स्वीकार करता हुआ बोला-'तो तुम ये बताओ कि इस समय तुम उस कलमदान के विषय में क्या बता सकते हो ?

तो समझ लो कि जिन आदमियों के हाथ में वह कलमदान है, वे मेरी कैद में हैं।' मेघराज ने कहा- 'मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि अभी तक उस कलमदान का रहस्य केवल दो ही व्यक्ति जानते हैं.. और वे दोनों चंद्रप्रभा और रामरतन हैं।'

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