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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''मुझे लगता है अर्जुनसिंह कि हम किसी गलतफहमी के शिकार होकर आपस में ही लड़ रहे हैं।'' पिशाच ने अपनी बुद्धि का जाल फैलाते हुए कहा-''मैं सच कहता हूं कि मैंने तुमसे धोखा नहीं किया है और तुम भी मुझसे यही कहते हो। कहीं ऐसा तो नहीं कि बीच में हम दोनों को भिड़ाने के लिए किसी दूसरे ने ही ऐयारी न खेल दी हो, ताकि हम दोनों बेवकूफ बन जाएं।''

''लेकिन बीच में प्रगति को कौन बदल सकता है?'' अर्जुनसिंह तरद्दुद (सोच) मंु पड़ गए।

''शायद हम ठण्डे दिमाग से सोचने पर कुछ समझ पाएं।' पिशाच ने तलवार अपनी म्यान में रखते हुए कहा। कई सायत ( क्षण) तक वह इस प्रकार का अभिनय करता रहा कि मानो कुछ सोच रहा हो। फिर एकदम बोला- ''तुमने प्रगति को यहां किसके हाथ मंगाया था?'' -''नानक के हाथ।'' अर्जुनसिंह नानक की ओर देखकर बोला- ''नानक स्वयं जाकर उसे लाया था।''

घूमकर पिशाच की दृष्टि नानक पर जम गई। नानक ऊपर से नीचे तक कांप उठा - वह घूरता हुआ बोला- ''तो क्या ये ऐयारी इसकी हो सकती ? सम्भव है कि रमणीघाटी से यहां तक के रास्ते में इसी प्रगति को बदल दिया हो?''

''नहीं पिशाच ये असम्भव है!'' अर्जुनसिंह एकदम बोले-''नानक पर मुझे खुद से भी ज्यादा विश्वास है।''

''नानक पर विश्वास होगा अर्जुनसिंह, लेकिन दुश्मन के किसी ऐयार पर तो विश्वास नहीं किया जा सकता।'' पिशाच खूनी ढंग से नानक की ओर बढ़ता हुआ बोला- ''हो सकता है कि दुश्मन का कोई ऐयार नानक के भेष में हो?''

''अगर ऐसा होता तो यह कभी भी रमणीघाटी के अंदर नहीं पहुंच सकता था।' अर्जुनसिंह ने कहा- ''रमणीघाटी का रास्ता इतना पेचीदा है कि हमारे गिने-चुने ऐयारों के अतिरिक्त दुनिया के किसी और आदमी की समझ में नहीं आ सका है और अगर ये नानक न होता तो प्रगति के पास जाकर ये सांकेतिक शब्द कभी नहीं कह पाता, जो केवल नानक को ही पता हैं, उन्हें कोई दूसरा नहीं जान सकता।''

''जरा इससे पूछो कि इसने रमणीघाटी में प्रगति के पास जाकर क्या गुप्त शब्द कहे थे?'' पिशाच नकली नानक को घूरता हुआ बोला। -''मैं तुम्हारे सामने वे गुप्त शब्द कैसे कह सकता हूं?'' नकली नानक अपनी घबराहट पर काबू पाता हुआ बोला।

''नहीं नानक।'' अर्जुनसिंह ने आदेश दिया- ''इस समय पिशाच से पर्दा रखने की कोई जरूरत नहीं है। तुम बता दो कि तुमने प्रगति से जाकर क्या सांकेतिक शब्द कहे थे, वर्ना यह तुम पर ही शक किए जाएगा।''

नकली नानक अवाक-सा रह गया। वह क्या जानता था कि असली नानक को कौन-सा गुप्त शब्द बताया गया था, वह महसूस कर रहा था कि वह बुरी तरह फंस गया है और अब उसका रहस्य खुलना ही चाहता है। फिर भी वह जल्दी से बोला- ''हरियाली शब्द--मैंने प्रगति के पास जाकर हरियाली ही कहा था - इसका मतलब प्रगति से...

''बकता है ये।'' नानक की बात को बीच में ही काटकर अर्जुनसिंह बोला- ''गुप्त शब्द ये नहीं है। नानक के भेस में यह दुश्मन का ऐयार है, इसे गिरफ्तार कर लो।''

परन्तु - इस बीच नानक एक झटके के साथ अपनी म्यान से तलवार निकाल चुका था। तलवार हाथ में लेकर वह पैंतरा बदलता हुआ बोला- ''मैं दलीपसिंह का ऐयार हूं और अगर आपने मुझे हाथ भी लगाने की कोशिश की तो प्रगति को खत्म कर दिया जाएगा!''

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