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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

पांचवाँ बयान


ऊपर आप पढ़ आये हैं कि पिशाचनाथ किस खूबसूरती से अर्जुनसिंह को बेवकूफ बनाता है। अभी तक आप ये नहीं समझ पाए होंगे पिशाच किसके पक्ष एवं किसके विपक्ष में है। किसको कितना धोखा देना चाहता है! पिशाचनाथ की इस रहस्यमय कार्यप्रणाली के पीछे उसका क्या उद्देश्य है? अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं हो पाया है। किन्तु हम यह अवश्य कह सकते हैं पिशाचनाथ किसी बहुत ही गहरे चक्कर में उलझा हुआ है। यह बयान भी हम उसी की कार्यप्रणाली पर लिख रहे हैं, आइए देखें।

इस बार यह दिलचस्प पात्र अपने दिमाग से किस-किस को किस-किस ढंग से मूर्ख बनाता है! पिशाचनाथ की जालसाजी को समझाने हेतु थोड़ा-सा हाल -- नकली नानक----यानी बारूसिंह और अर्जुनसिंह की बातों को लिख देना भी अनिवार्य है।

उनकी बातें इस प्रकार हुई थीं-

''क्या रहा--कहीं पिशाच ने किसी प्रकार की गड़बड़ तो नहीं की है? '' -- 'मेरी निगाह में तो उसने कोई भी गड़बड़ नहीं की.... मगर गड़बड़ हो अवश्य गई है।'' नानक (बारूसिंह) ने जवाब दिया।  

“क्या?'' एकदम चौंककर खड़े हो गए अर्जुनसिंह-''क्या गड़बड़ हो गई है?''

'आप भी सुनकर आश्चर्य करेंगे।'' नकली नानक ने कहा-''मैंने उमादत्त के महल तक बराबर पिशाच और प्रगति का पीछा किया। मेरा पूरा प्रयास था कि पिशाच ये न जान सके कि मैं उसका पीछा कर रहा हूं और मुझे विश्वास है कि उसे पता भी नहीं चला। सारे रास्ते मेरी दृष्टि उन दोनों पर ही रही है। सच पूछें तो मुझे भी यह सम्भावना थी कि रास्ते में पिशाच किसी प्रकार की गड़बड़ करेगा, किन्तु वास्तविकता ये है कि उसने किसी प्रकार की कोई गड़बड़ नहीं की। प्रगति होश में थी, किन्तु पिशाच अपने कन्धे पर उसे इस प्रकार से डालकर ले गया, मानो वह बेहोश हो गई हो। यह क्रिया भी उसने उमादत्त को धोखे में डालने के लिए की थी, मगर सब चौपट हो गया।'' -''क्या हो गया? तुम बताते क्यों नहीं?'' अपनी जिज्ञासा को अर्जुनसिंह दबा न सके।

'उमादत्त और पिशाचनाथ में झगड़ा हो गया।'' नानक ने इस प्रकार कहा था - मानो उसे इस बात का बेहद अफसोस हो।

''क्यों.. क्यों हो गया झगड़ा?'' अर्जुनसिंह चीख पड़े-''हमने अपनी भोली-भाली बेटी को भी फंसाया - और फिर भी हमारा वह काम न हो सका! आखिर उन दोनों के बीच झगड़ा किस बात पर हो गया? पिशाचनाथ से क्या गलती हो गई?''

''आप सुनेंगे तो आश्चर्य करेंगे!''

'तुम कहो नानक.. तुम हमें बताओ कि यह झगड़ा क्यों हुआ?''

'झगड़े का सबब ये है अर्जुनसिंह कि पिशाचनाथ ने जो प्रगति उमादत्तजी को दी थी, वह असली नहीं थी, नकली थी!''

''क्या?'' आश्चर्य के कारण अर्जुनसिंह उछल पड़े-''ये क्या बकते हो तुम - प्रगति नकली - वह प्रगति, जिसे मैंने अपने हाथों से पिशाच को सौपा है। असम्भव - प्रगति नकली हो ही नहीं सकती। उसे तुम स्वयं ही तो जाकर रमणीघाटी से लाए थे!''

'जी!'' नानक ने उत्तर दिया।

''तो फिर भला नकली कैसे हो सकती है नानक?'' अर्जुनसिंह बोले-''ये तो हो ही नहीं सकता कि रमणीघाटी में नकली प्रगति हो और अगर वह नकली होती तो तुम्हारे गुप्त शब्द का उत्तर वह गुप्त शब्द में दे ही नहीं सकती थी। वहां से प्रगति को तुम खुद यहां लाए हो, फिर मैं भी दावे के साथ कह सकता हूं जिस प्रगति को पिशाच यहां से ले गया है, वह असली प्रगति थी।''

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