ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 1 देवकांता संतति भाग 1वेद प्रकाश शर्मा
|
0 |
चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
आठ कोस पैदल चलने के बाद वह दलीपनगर नामक एक शहर में पहुंच जाता है। रात का अंधियारा चारों ओर छा चुका है। इस समय वह महल के पिछले बाग के एक कोने में छुपा बैठा है। बाग में प्यादे हाथ में नंगी तलवारें लिये टहल रहे हैं। एक प्यादा टहलता हुआ उसके करीब आता है। गौरव एकदम झपटकर उसका मुंह भींच लेता और अगले पल उसे गौरव ने बेहोशी की बुकनी सुंघाकर अचेत कर देता है। दो
मिनट बाद ही गौरव प्यादे के कपड़े पहनकर बाग में टहलने लगता है।
टहलता हुआ गौरव महल की दीवार के पास पहुंच जाता है।
कमन्द लगाकर वह एक छत पर पहुंच जाता है और छत से नीचे एक गलियारे में। उसके चारों ओर इस समय सन्नाटा है। अभी वह गलियारे में ही है कि अचानक एक, मोड़ से मुड़कर दलीपसिंह का ऐयार बलवंतसिंह एकदम उसके सामने आ जाता है।
दोनों एक-दूसरे को देखकर ठिठक जाते हैं।
गौरव फुर्ती के साथ तलवार निकालकर उस पर झपटता है-किन्तु बलवंत भी कोई छोटा मोटा ऐयार नहीं है, पलक झपकते ही वह भी अपनी तलवार खींचकर गौरव की तलवार से अड़ा देता है।
''तुम खुद ही महल में आ गए।'' गौरव का वार अपनी तलवार पर रोकते हुए बलवंत कहता है-''शायद वह मुकरन्द लेने आए हो।''
''और लेकर ही जाऊंगा।'' गौरव पैंतरा बदलकर कहता है।
इसी प्रकार उनमें युद्ध छिड़ जाता है। आधे घंटे की इस तलवारबाजी में यह निर्णय नहीं हो पाता कि कौन अधिक है। अलबत्ता तलवारों की आवाज सुनकर वहां बहुत से सिपाही एकत्रित हो जाते हैं। गौरव पर काबू पा लिया जाता है। उसे बन्दी बनाकर राजा दलीपसिंह के सामने ले जाया जाता है। उस समय दलीपसिंह अपने शयन-कक्ष में होते हैं और यह सुनते ही कि गौरव को गिरफ्तार कर लिया गया है, - बाहर आते हैं। गौरव उनके लिए बहुत महत्त्वपूर्ण व्यक्ति है।
दलीपसिंह उस कक्ष में आते हैं, जहां नंगी तलवारों के बीच गौरव खड़ा था।
उनके कक्ष में प्रविष्ट होते ही मुलाजिम सम्मानित ढंग से सलाम करते हैं। -''राजा साहब!'' बलवन्त मुस्कराकर कहता है-''ये मुकरन्द प्राप्त करने यहां आए हैं।''
व्यंग्यात्मक ढंग से दलीपसिंह गौरव की ओर देखकर कहते हैं-''क्यों, अपनी मां से मिलना चाहते हो?''
''तुम्हारी सहायता की जरूरत नहीं है।'' गौरव ने गरदन ऊंची करके कहा।
''उसे ऐसे तिलिस्म में कैद किया गया है कि हवा भी वहां नहीं पहुंच सकती।'' दलीपसिंह गर्व के साथ कहते हैं- ''तुम्हारा पिता तक उसे उस तिलिस्म से नहीं निकाल सका, तुम भाई-बहन की आधी उम्र निकल गई, तब भी तुम आज तक मुकरन्द तक भी नहीं पहुंचे, तुम शायद ये समझते हो कि मुकरन्द प्राप्त करते ही तुम तिलिस्म तोड़ दोगे --- अगर मुकरन्द के जरिए तिलिस्म तोड़ना इतना आसान होता तो आज तक हम स्वयं ही तिलिस्म तोड़ देते।''
''तुममें और हममें अंतर है..।'' मुस्कराकर बोला गौरव।
|