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देवकांता संतति भाग 1

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2052
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

'क्यों?'' व्यंग्यात्मक ढंग से बोले महाशयजी-''बोलो, पहचान का शब्द.. नहीं पता ना. अपने-आपको गुलबदन बताकर हमें धोखा देना चाहते थे? सोचते थे कि हम तुम पर यकीन कर लेंगे और बटुए से चूरन निकालने की इजाजत दे देंगे और तुम बेहोशी का चूरन निकालकर हमें आसानी से बेहोश कर दोगे - मगर ये नहीं जानते कि हम तुम जैसे छोटे-मोटे ऐयारों को अपनी जेब में रखते हैं।''

रूपलाल चुपचाप गरदन झुकाए खड़ा रहा।

''लाओ--अपना ऐयारी का बटुआ हमें दो - नहीं दोगे तो हम तलवार का प्रयोग करेंगे।''

'इतने बड़े ऐयार होकर तुम एक ऐयार को मारने की धमकी देते हो?'' रूपलाल ने कहा--''क्या इतना नहीं जानते कि ऐयार को मारने का सिद्धान्त नहीं है। जिस तरह स्त्री को मारना पाप होता है, इसी तरह ऐयार को मारना भी अधर्म है।''

''लेकिन ऐयार को नजरबन्द करके कैद में रखा जा सकता है।''

''तो क्या तुम मुझे कैद करना चाहते हो?''

''नहीं।'' महाशयजी ने कहा-''हम तुम्हें केवल घायल करके छोड़ देना चाहते हैं।'' कहते हुए वे रूपलाल पर तलवार का वार कर देते हैं। तलवार रूपलाल की बांह पर घाव बना देती है। रूपलाल निहत्था है और वह तो वैसे भी हमारे महाशयजी के सामने कुछ नहीं है। कुछ ही देर यदि महाशयजी उसे बेहोश कर देते हैं। उस समय तक रूपलाल के बदन पर तलवार से वीसों घाव बन जाते हैं, किन्तु घाव अभी साधारण और हल्के हैं। कोई भी घाव सफेद नहीं हैं, जिससे यह भय हो कि वह रूपलाल के जिस्म से लहू निकाले देने का काम करेगा। पथरीली धरती पर पड़ी मोमबत्ती को उठकर हमारे महाशयजी ठीक से एक पत्थर पर जमा करते हैं।

अब मोमबत्ती पहले की अपेक्षा अधिक प्रकाश प्रदान करने में समर्थ होती है।

सबसे पहले हमारे महाशयगी रूपलाल के ऐयारी के बटुए पर कब्जा कर लेते हैं। इसके बाद में रूपलाल के सारे कपड़े उतार लेते हैं। उसे पूर्णतया नग्न करके वे वटुए से उस्तरा निकालले हैं और रुपलाल के सिर का मुंडन-संस्कार कर देते हैं। इसके वाद वे बटुए से काली स्याही निकालकर रूपलाल के सारे बदन पर लेप देते हैं! रूपलाल का सारा जिस्म काला करके महाशराजी बाकायदा एक दीवार से सटा कर खड़ा कर देते हैं। उसके कपड़े महाशयजी खुद पहन लेते हैं और उसके बटुए से आईना तथा शक्ल बदलने की सामग्री निकालकर अपने चेहरे पर रुपलाल का मेकअप कर लेते हैं। अपने फटे हुए कपड़े वे कहीं एक स्थान पर छुपाकर रख देते हैं और पूरी तरह रूपलाल बनने के बाद मोमबत्ती हाथ में लेकर वापस उधर ही चल देते हैं, जिधर से रूपलाल आया था।

वे कोई आधा कोस सुरंग में चलने के बाद एक ऐसे स्थान पर पहुंच जाते हैं, जहां सुरंग की धरती और छत के बीच एक लोहे की सीढ़ी लगी हुई है। महाशय जी सीढ़ी के सबसे निचले डण्डे पर पैर रखते' हैं। उसी समय हल्की-सी गड़गड़ाहट के साथ ही सीढ़ी के समीप ही छत पर एक रास्ता बन जाता है।

सीढ़ी पर चढ़कर महाशयजी ऊपर पहुंच जाते हैं। वह रास्ता एक स्नानगृह में खुलता है।

वहां पहुंचकर वे एक टोंटी को घुमाते हैं--रास्ता पुन: बन्द हो जाता है।

यह स्नानगृह महल में रहने वाले रूपलाल के कमरे का है। कमरे से बाहर निकलकर वे दालान में आ जाते हैं। दालान में पहुंचकर वे सीटी बजाते हैं। जवाब में उमादत्त के पांच-सात ऐयार उनके पास आ जाते हैं। --''क्या हुआ रूपलाल?'' एक ऐयार पूछता है।

'जल्दी से हमारे साथ आओ।'' महाशयजी ये कहकर पुन: रूपलाल के कमरे में प्रविष्ट हो जाते हैं। सारे ऐयार कमरे में आ जाते हैं, उसी समय महाशयजी कमरे का दरवाजा बन्द कर लेते हैं। सभी ऐयार चौंकते हैं।

''क्या बात है रूपलाल...तुम घबराए-से क्यों हो?'' एक ऐयार पूछता है।

''बड़ा गजब हो गया - हमारे राजा के माथे पर कलंक का टीका लग गया।'' महाशयजी एकदम बोले।

''कुछ बोलो भी-क्या बात है ?'' उसने भी पूछा।

लेकिन महाशयजी ने अपने हाथ में दबी एक गेंद जैसी गोल वस्तु जोर से कमरे की धरती पर पटक दी। हल्का-सा धमाका हुआ और सारे कमरे में एकदम गाढ़ा सफेद धुआं भर गया, हुआ ये था कि यह छोटा बम महाशयजी को रूपलाल के बटुए से मिला था। उसके प्रभाव से बचने के लिए एक दवा खानी होती थी। यह दवा भी रूपलाल के बटुए में मौजूद थी।

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