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देवकांता संतति भाग 1

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2052
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''जी हां.. खुशी से।'' बागीसिंह ने कहा-''अभी तक चुप रहने का शुक्रिया।''

''ये सब क्या चूहे-बिल्ली का खेल हो रहा है ?'' अलफांसे के स्वर में गुर्राहट थी।

''शायद आप ये सोच रहे हैं कि पहले मैंने आपको उस' पत्थर के चबूतरे पर बिठाकर धोखा क्यों दिया?' बागीसिंह बोला-''और फिर तुरन्त ही आपको इस दूसरे मार्ग से छुड़ाने क्यों आ गया?''

''और ऐसी परिस्थिति में आदमी सोच ही क्या सकता है?''

''आपको सुरक्षित रखने के लिए यह आवश्यक हो गया था।'' बागीसिंह ने कहा।

''मुझे सुरक्षित रखने के लिए?'' हल्के-से चौंकते हुए अलफांसे ने कहा।

' जी हां-और पिताजी को धोखा देने के लिए।''

इस बार ताव आ गया अलफांसे को।

उसने झपटकर बागीसिंह की गरदन पकड़ ली और गुर्राकर बोला-''मिस्टर बागी-बहुत उल्टा सीधा मामला हो चुका है। ये पहेलियां छोड़ो और साफ साफ बताओ कि क्या चक्करबाजी है? वर्ना याद रखना, मेरा नाम भी अलफांसे है। एक झटके में गरदन तोड़कर तुम्हारे बटुए में रख दूंगा। कभी कहते हो कि मुझे सुरक्षित रखने के लिए तुमने ऐसा किया.. कभी कहते हो पिताजी को धोखा देने के लिए ऐसा किया। अबे पहले तो मुझे खुद बाप के पास लाए और फिर उसे ही धोखा देने लगे-बातों का सिर-पैर भी तो हो।''

''ये मेरी बदकिस्मती है मिस्टर अलफांसे कि आप मेरे बारे में गलत धारणा बना रहे हैं।'' बागीसिंह ने कहा-''ये तो ठीक है कि मैं आपको यह समझकर पिता के पास लाया था कि हम वहां सुरक्षित रहेंगे, लेकिन जब मैंने देखा कि मेरे पिता के रूप में घर पर एक ऐयार बैठा है तो मन-ही-मन चौंक पड़ा-मैं समझ गया कि उसने मेरे पिता को अपने कब्जे में कर लिया है और मुझे धोखा देने के लिए खुद मेरा पिता बन बैठा है। समय ऐसा भी नहीं था कि मैं उस पर प्रकट करता कि मैं समझ गया हूं कि वह मेरा पिता नहीं ऐयार है, क्योंकि मैं अगर उसी समय प्रकट कर देता तो आपको खो भी सकता था-अतः मैंने यही उचित समझा कि उनके सामने ही मैं आपको बन्द कर दूं तो वह धोखा खा जाएगा.. मैंने उसे दिखाने के लिए आपको बन्द कर दिया। लेकिन मुझे यह भी डर था कि कहीं वह आपको कैद से निकाल न लें? इसी डर से मैं आपको तुरंत इस कैद से निकाल लाया, अब मैं आपको एक सुरक्षित स्थान पर छोड़कर उस ऐयार की खबर लूंगा और अपने पिता का पता लगाऊंगा.. पता नहीं इसने मेरे पिता को कहाँ बन्द कर रखा है।''

''इसका मतलब ये हुआ कि तुमने उस ऐयार को, जो तुम्हें धोखा देने के लिए तुम्हारा पिता बना-धोखा देने के लिए मुझे गिरफ्तार किया?''

'जी हां।'' बागीसिंह बोला-''उसे वहां देखते ही मुझे इससे अधिक उचित मार्ग आपकी सुरक्षा का नहीं सूझा। वह यह सोचकर सन्तुष्ट होगा कि आप उसकी कैद में हैं और मैं उसके धोखे में आ गया हूँ-अतः वह निश्चिन्त होगा, किन्तु मैं आपको भी उससे दूर ले आया हूं और जाकर उसकी भी खबर लूंगा-पिता का पता लगाना भी बेहद आवश्यक है। कृपा करके आप मेरी गरदन छोड़ दें।''

अलफांसे ने उसकी गरदन छोड़ दी।

उसे बागीसिंह की बात में दम नजर आया था। गरदन छोड़कर उसके साथ-साथ सुरंग में आगे बढ़ता हुआ वह बोला-''अब मुझे कहां ले जा रहे हो?''

''सुरक्षित स्थान पर।'

''तुमने मुझे समझ क्या रखा है?'' एकदम -झुंझला उठा अलफांसे।

''क्यों?''

''मैं क्या मिट्टी का माधो हूं जो मुझे किसी सुरक्षित स्थान पर रख दोगे?''

अलफांसे ने कहा-''मैं किसी से डरता नहीं और वक्त पड़ने पर जितने आदमियों से तुम लड़ सकते हो, मैं अकेला ही उससे दुगुने आदमियों से लड़ सकता हूं।''

''अरे...!'' एकदम अपने कान पर हाथ मारता हुआ चीखा बागीसिंह-- अबे....!''

''क्या हुआ?'' अलफांसे ने चौंककर पूछा।

''कान में मच्छर घुस गया।'' बागीसिंह कान में उंगली डालता हुआ चीखा।

अलफांसे एक बार पुन: धोखा खा गया।

बिना सोचे-समझे वह बागीसिंह के कान पर झुक गया। कान से एक तीव्र गंघ निकलकर उसके मस्तिष्क में समा गई। एक क्षण में उसे खतरे का आभास हुआ और उसने तेजी से अपनी नाक बागीसिंह के कान के समीप से हटाई, परन्तु वह एक पल धोखा खाने के लिए पर्याप्त था - उसके मस्तिष्क पर तेजी से बेहोशी अपना प्रभुत्व जमाने लगी।

''तुम भला किससे लड़ोगे?''

बेहोश होते - होते अलफांसे ने बागीसिंह का ये स्वर सुना-''अभी तक तुम मुझे ही नहीं समझ सके -- तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं कि मेरा पिता कोई ऐयार नहीं, बल्कि असली पिता था! इन सब हरकतों का तो कुछ और ही सबब है। अलफांसे ने बहुत चाहा कि वह बागीसिंह पर झपट पड़े, किन्तु सफल न हो सका और बेहोशी की वह दवा इतनी तीव्र थी कि पल-भर में वह बेहोश होकर गिर पड़ा। एक बार बागीसिंह बेहोश अलफांसे को देखकर मुस्कराया फिर बोला-'मूर्ख - बागीसिंह की ऐयारी तो तुम सौ जन्मों में भी नहीं समझ सकते।''

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