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देवकांता संतति भाग 1

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2052
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

हालांकि मौसम बेहद खतरनाक और डरावना था, किन्तु वह वृक्ष से नीचे उतर आया। जंगल की धरती, जो इस समय कीचड़ में बदल चुकी थी, पर चलता हुआ अलफांसे हवेली की ओर बढ़ा। पल-पल गर्जना के साथ चमकने वाली बिजली उसका मार्गदर्शन कर रही थी।

तब, जबकि वह हवेली के समीप पहुंचा-

सांय-सांय करती हवा के मध्य किसी दैत्य की भांति खड़ी हवेली उसे बेहद भयानक लग रही थी।

हवेली का मुख्यद्वार किसी राजमहल के द्वार से कम बड़ा नहीं था। किन्तु मुख्यद्वार का दरवाजा न जाने कब का टूट चुका था। इस समय हवेली के अन्दर जाने के लिए कोई अवरोध नहीं था। अलफांसे द्वार से प्रविष्ट होकर अन्दर चला गया। जैसे ही वह गैलरी में घूमा, उसने एक कमरे में किसी चिराग का पीला प्रकाश देखा। वह उत्सुक-सा होकर उसी तरफ बढ़ गया - किन्तु दबे-पांव।

वह कमरे के समीप पहुंच गया, उसी समय-

''सुना है आजकल यहां बख्तावरसिंह भी आया हुआ है।'' कमरे में से निकलकर एक पुरुष का स्वर उसके कानों से टकराया।

''लेकिन गौरवसिह का नाम सुनकर उसे पसीना छूट जाता है।'' किसी दूसरे पुरुष की आवाज।

इससे पूर्व कि अलफांसे इससे अधिक कुछ सुन पाए, एक तलवार की नोंक उसने अपनी पीठ पर महसूस की। वह तेजी से पलटना ही चाहता था कि पीछे से स्वर उभरा- ''चालाकी की तो सर धड़ से अलग कर दूंगा।''

पीछे से उभरने वाली इस चेतावनी ने अलफांसे को ठिठका दिया।

''कौन है, गुलशन?'' कमरे में एक आवाज उभरी।

''कोई ऐयार लगता है, छुप-छुपकर बातें सुन रहा था।'' अलफांसे के पीछे वाले ने कहा।

कमरे से बाहर एकदम तीन आदमी निकले। तीनों ने अच्छी तरह अलफांसे की सूरत का मुआयना किया और इसके बाद उसे कमरे में ले जाया गया। कमरे में उसे एक दीवार के सहारे खड़ा कर दिया गया।

चारों उसके सामने खड़े उसे घूर रहे थे।

''पहचान में नहीं आता-शायद सूरत बदल रखी है।'' उसमें से एक बोला।

''जी, मैं कोई ऐयार नहीं हूं।'' अलफांसे ने कहा- ''मैं तो एक मुसीबत का मारा हूं जो इस टापू पर फंस गया हूं।''

''क्या नाम हे तुम्हारा?'' उनमें से एक ने पूछा।

''अलफांसे।''

''अलफांसे!'' उसका नाम सुनते ही चारों एकदम चौंककर बोले। ये चारों ही इस प्रकार हैरत के साथ अलफांसे की सूरत देख रहे थे, मानो दुनिया में उनके लिए सबसे अधिक आश्चर्य की वस्तु अलफांसे का नाम है। उन चारों के चेहरों पर अजीब-से भाव उभर आए थे, उस पर से नजर हटाकर चारों ने हैरत के साथ एक-दूसरे की ओर देखा -- मानो उन्हें विश्वास न हो कि सामने खड़ा व्यक्ति अपना नाम ठीक बता रहा है। अलफांसे चमत्कृत-सा उन चारों के चेहरे देख रहा था।

''बकते हो तुम।'' उन चारों में से एक बोला-''तुम्हारा नाम अलफांसे नहीं हो सकता।''

बुरी तरह चौंका अलफांसे। यह वाक्य उसने पहली बार सुना था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर आज एकदम उसके नाम में क्या विशेषता उभर आई है जो चारों में से एक भी व्यक्ति उसका नाम अलफांसे मानने को तैयार नहीं है। अलफांसे यह भी जानता था कि अन्तर्राष्ट्रीय पैमाने पर उसका नाम प्रसिद्ध है, किन्तु यह तो उसने कल्पना भी नहीं की थी कि दुनिया से बिल्कुल अलग इस टापू पर भी व्यक्ति उसके नाम से परिचित ही नहीं, बल्कि ऐसे लोग होंगे जो उसके नाम पर सन्देह भी करने लगें। वह नहीं समझ पा रहा था कि दो-चार दिन में ही आखिर उसके नाम में क्या विशेषता पैदा हो गई है, वह बोला-''मैं बकता नहीं हूं जनाब, वाकई मेरा नाम अलफांसे है।''

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