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परशुराम की प्रतीक्षा

रामधारी सिंह दिनकर

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1969
आईएसबीएन :81-85341-13-3

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रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...

पाद-टिप्पणी

(युद्ध-काव्य की)


मेरी कविताएँ सुनकर खुश होने वाले !
तुझे ज्ञात है, इन खुशियों का रहस्य क्या है?
मेरे सुख का राज? सभ्यता के भीतर से
उठती है जो हूक, बुद्धि को विकलाती है।
कोई उत्तर नहीं। हार कर मैं मन-मारा
चौराहे पर खड़ा जोर से चिल्लाता हूँ।

गर्जन धावा नहीं ; स्वरों का घटाटोप है;
परित्राण का शिखर ; पलायन उन प्रश्नों से
जिन का उत्तर नहीं, न कोई समाधान है।
तेरे सुख का भेद? कहीं भीतर प्राणों में
तुझ को भी काटते पाप ; मन बहलाने को
तू मेरी वारुणी पान कर चिल्लाता है।

कौन पाप? है याद, उचक्के जब मंचों से
गरज रहे थे, तू ने उन्हें प्रणाम किया था?
पहनाया था उसे हार, जिसके जीवन का
कंचन है आराध्य, त्याग सूती चप्पल है।

कौन पाप? याद, भेड़िये जब टूटे थे
तेरे घर के पास दीन-दुर्बल भेड़ों पर,
पचा गया था क्रोध सोच कर तू यह मन में
कौन विपद् में पड़े बली से वैर बढ़ा कर?

जब-जब उठा सवाल, सोचने से कतरा कर
पड़ा रहा काहिल तू इस बोदी आशा में,
कौन करे चिन्तन? खरोंच मन पर पड़ती है।
जब दस-बीस जवाब दुकानों में उतरेंगे,
हम भी लेंगे उठा एक अपनी पसन्द का।

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