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आरोग्य कुंजी

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :45
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1967
आईएसबीएन :1234567890

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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख


भाप लेनेका पुराना और आसानसे आसान तरीका यह है : सनकी या सुतलीकी खाट इस्तेमाल करना ज्यादा अच्छा है, मगर निवारकी खाट भी चल सकती है। खाट पर एक खेस या कम्बल बिछाकर रोगीको उस पर सुला देना चाहिये। उबलते पानीके दो पतीले या हंडे खाटके नीचे रखकर रोगीको इस तरह ढंक देना चाहिये कि कम्बल खाट परसे लटक कर चारों तरफ जमीनको छू ले, ताकि खाटके नीचे बाहरकी हवा जा ही न सके। इस तरहसे लपेटनेके बाद पानीके पतीलों या हंडों परसे ढंकना उतार देना चाहिये। इससे रोगीको भाप मिलने लगेगी। अच्छी तरह भाप न मिले, तो पानीको बदलना होगा। दूसरे हंडेमें पानी उबलता हो, तो उसे खाटके नीचे रख देना चाहिये। साधारणतया हम लोगोंमें यह रिवाज है कि हम खाटके नीचे अंगारे रखते हैं और उसके ऊपर उबलते हुए पानीका बरतन। इस तरह पानीकी गर्मी कुछ ज्यादा तो मिल सकती है, मगर इसमें दुर्घटनाका डर रहता है। एक चिनगारी भी उड़े और कम्बल या किसी दूसरी चीजको अगर आग लग जाय, तो रोगीकी जान खतरेमें पड़ सकती है। इसलिए तुरन्त ही गर्मी पानेका लोभ छोड़कर जो तरीक़ा मैंने बताया है उसीका उपयोग करना ज्यादा अच्छा है।

१७-१२-'४२


कुछ लोग भापके पानीमें वनस्पतियां डालते हैं, जैसे कि नीमके पत्ते। मुझे स्वयं इसकी उपयोगिताका अनुभव नहीं है, मगर भापका उपयोग तो प्रत्यक्ष ही है। यह हुआ पसीना लानेका तरीका।

पांव ठंडे हो गये हों या टूटते हों, तो एक गहरे बरतनमें, जिसमें कि घुटने तक पांव पहुंच सकें, सहन होने लायक गरम पानी भरना चाहिये और उसमें राईकी भुली डालकर कुछ मिनट तक पांव रखने चाहिये। इससे ठंडे पांव गरम हो जाते हैं, बेचैनी और पांवोंका टूटना बन्द हो जाता है, खून नीचे उतरने लगता है और रोगीको आराम मालूम होता है। बलगम हो या गला दुखता हो, तो केटलीमें उबलता हुआ पानी भरकर गले और नाकको भाप दी जा सकती है। केटलीको एक स्वतंत्र नली लगा कर उसके द्वारा आरामसे भाप ली जा सकती है। यह नली लकड़ीकी होनी चाहिये। इस नली पर रबड़की नली लगा लेनेसे काम और भी आसान हो जाता है।

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