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आरोग्य कुंजी

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :45
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1967
आईएसबीएन :1234567890

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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख


इस स्नानके बारेमें क्युनेकी दलील यह है : बुखारके बाहरी चिह्न भले कुछ भी हों, मगर उसका आन्तरिक कारण तो एक ही होता है। आंतोंमें इकट्ठे हुए मलके जहरसे या अन्य कारणोसे बुखार उत्पन्न होता है। यह आतोंका बुखार-अन्दरकी गर्मी -अनेक रूप लेकर बाहर प्रकट होता है। यह आंतरिक बुखार कटि-स्नानसे अवश्य उतरता है और उससे बाहरके अनेक उपद्रव शान्त होते हैं। मैं नहीं जानता कि इस दलीलमें कितना तथ्य है। यह तो अनुभवी डॉक्टर ही बत्ता सकते है। डॉक्टरोने यद्यपि नैसर्गिक उपचारोंमे से कई एकको अपना है, तो भी यह कहा जा सकता है कि वे इन उपचारोंके विषयमें उदासीन रहे हैं। इसमें मैं दोनों पक्षोंका दोष पाता हूँ। डॉक्टरोंने डॉक्टरीके शिक्षण-केन्द्रोंमें सीखी हुई बातों पर ही ध्यान, देनेकी आदत डाल ली है, इसलिए बाहरकी चीजोंके प्रति वे लोग तिरस्कार नहीं तो उदासीनता अवश्य बताते हैं। नैसर्गिक उपचार करनेदाले लोग डॉक्टरोंके प्रति तिरस्कारका भाव रखते हैं। उनके पास शास्त्रीय ज्ञान बहुत कम होता है, तो भी वे दावे बहुत बड़े-बड़े करते हैं। संघशक्तिका उन उपचारकों में अभाव रहता है, क्योंकि सब अपनेअपने ज्ञानकी पूंजीसे ही संतोष मानते हैं। इसलिए कोई दो उपचारक साथ मिलकर नहीं कर सकते। किसीके प्रयोग गहरे नहीं उतरते। बहुतोंमें नम्रताका भी अभाव होता है। (क्या नम्रता सीखी भी जा सकती है?) यह सब कहकर मैं नैसर्गिक उषचारको कोसना नहीं चाहता, परन्तु वस्तुस्थिति बता रहा हूँ। जब तक उन लोगोंमें कोई अत्यंत तेजस्वी मनुष्य पैदा नहीं होता, तब तक यह स्थिति बदलनेकी कम सम्भावना है। इस स्थितिको बदलनेकी जिम्मेदारी नैसर्गिक उपचारकों पर है। डॉक्टरोंके पास उनका अपना शास्त्र है, अपमी प्रतिष्ठा है, अपना संघ है और अपने विद्यालय भी हैं। अमुक हद तक उन्हें अपने काममें सफलता भी मिलती है। उनसे यह आशा नहीं रखनी चाहिये कि एक अपरिचित चीजको, जो डॉक्टरीकी मार्फत नही आई है, वे एकाएक ग्रहण कर लेंगे।

इस बीच सामान्य मनुष्यको इतना समझ लेना चाहिये कि नैसर्गिक उपचारोंका जैसा नाम है, वैसा ही उनका गुण भी है। क्योंकि वे कुदरती हें, इसलिए सामान्य मनुष्य भी निश्चिंत होकर उनका उपयोग कर सकता हे। सिरमें दर्द हो तो रूमालको ठंडे पानीमें प्तइगोकर सिर पर रखनेसे कोई हानि हो ही नहीं सकती। गीले रूमालकी जगह गीली मिट्टीकी मट्टी रखें, तो जल और मिट्टी दोनोंके गुणोंका फ़ायदा मिलेगा।

१५-१२-'४२

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