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आरोग्य कुंजी

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :45
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1967
आईएसबीएन :1234567890

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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख

५. मसाले


खुराकका विवेचन करते समय मैंने मसालोंके बारेमें कुछ नहीं कहा। नमकको हम मसालोंका राजा कह सकते हैं, क्योंकि नमकके बिना सामान्य मनुष्य कुछ खा ही नहीं सकता। इसलिए नमकको 'सबरस' भी कहा गया है। शरीरको कई क्षारोंकी आवश्यकता रहती है। उनमें से नमक भी एक है। ये सब क्षार खुराकमें होते ही हैं। मगर उसे अशास्त्रीय तरीके से पकानेके कारण कुछ क्षारोंकी मात्रा कम हो जाती है, इसलिए वे ऊपरसे लेने पड़ते हैं। ऐसा ही एक अत्यन्त आवश्यक क्षार नमक है। इसलिए उसे थोड़े प्रमाणमें अलग से खाने को मैंने पिछले प्रकरण में कहा है।

मगर कई ऐसे मसाले, जिनकी शरीर को सामान्यतः कोई आवश्यकता नहीं होती, केवल स्वादके खातिर या पाचन-शक्ति बढ़ानेके खातिर लिये जाते हैं, जैसे कि हरी या सूखी लाल मिर्च, काली मिर्च, हल्दी, धनिया, चाय, काँफी. और कोको १७ जीरा, राई, मेथी, हींग इत्यादि। इनके विषयमें पचास वर्षक निजी अनुभवसे मेरी यह राय बनी है कि शरीरको पूरी तरह निरोग रखनेके लिए इनमें से एककी भी आवश्यकता नहीं है। जिसकी पाचन-शक्ति बिलकुल कमजोर हो गई है, उसे केवल औषधिके रूपमें, अमुक समयके लिए, निश्चित मात्रामें मसाले लेने पड़े तो वह भले ले। मगर स्वादके खातिर तो ऐसी चीज़का आग्रहपूर्वक निषेध ही मानना चाहिये। हर प्रकारका मसाला यहां तक कि नमक भी, अनाज और शाकके स्वाभाविक रसका नाश करता है। जिस आदमीकी जीभ बिगड़ नहीं गई है, उसे स्वाभाविक रसमें जो स्वाद आता है, वह मसाला या नमक डालनेके बाद नहीं आता। इसीलिए मैंने सूचना की है कि नमक लेना हो तो ऊपरसे लिया जाय। मिर्च तो पेट और मुंहको जलाती हैं। जिसे मिर्च खानेकी आदत नहीं होती, वह शुरूमें तो उसे खा ही नहीं सकता। मैंने देखा है कि मिर्च खानेसे कई लोगोंका मुंह आ जाता है-उसमें छाले पड़ जाते हैं। और एक आदमी, जिसे मिर्च खानेका बहुत शौक था, अपनी भरजवानीमें इसी कारण मृत्युका शिकार भी बना था। दक्षिण अफ्रीकाके हबशी तो मिर्चको छू भी नहीं सकते। खुराकमें हल्दीका रंग वे बरदास्त ही नहीं कर सकते। अंग्रेज भी हमारे मसाले नहीं खाते। हिन्दुस्तानमें आनेके बाद उन्हें आदत पड़ जाय तो बात अलग है।

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