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आरोग्य कुंजी

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :45
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1967
आईएसबीएन :1234567890

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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख

२. पानी


पानीका उपचार एक प्रसिद्ध और पुरानी चीज़ है। उसके बारेमें अनेक पुस्तकें लिखी गयी हैं। क्युनेने पानीका उत्तम उपयोग ढूंढ़ निकाला हे। क्युनेकी पुस्तक हिन्दुस्तानमें बहुत प्रसिद्ध हुई है और उसका तर्जुमा भी हमारी भाषाओंमें हुआ है। उसके सबसे अधिक अनुयायी आन्ध्र देशमें मिलते हैं। क्युनेने खुराकके बारेमें भी काफ़ी लिखा है। मगर यहां तो मेरा विचार केवल पानीके उपचारों के बारेमें ही लिखने का है।

क्युनेके उपचारोंमें मध्यबिन्धु कटि-स्नान और घर्षण-स्नान हैं उनके लिए उसने खास बरतनकी भी योजना की है। मगर उसकी खास आवश्यकता नहीं है। मनुष्यके कदके अनुसार तीससे छत्तीस इंच गहरा टब ठीक काम देता है। अनुभवसे ज्यादा बड़े टबकी आवश्यकता मालूम हो, तो ज्यादा बड़ा ले सकते हैं। उसमें ठंडा पानी भरना चाहिये। गर्मीकी ऋतुमें पानीको ठंडा रखनेकी खास आवश्यकता है। पानीको तुरन्त ठंडा करनेके लिए यदि मिल सके तो थोड़ी बरफ डाल सकते हें। समय हो तो मिट्टीके घड़ेमें ठंडा किया हुआ पानी अच्छी तरह काम दे सकता है। टबमें पानीके ऊपर एक कपड़ा ढंककर जल्दी-जल्दी पंखा करनेसे भी पानीको तुरन्त ठंडा किया जा सकता है।

टबको दीवारके साथ लगाकर रखना चाहिये और उसमें पीठको सहारा देनेके लिए एक लम्बा लकड़ीका तख्ता रखना चाहिये, ताकि उसका सहारा लेकर रोगी आरामसे बैठ सके। रोगीको अपने पैर पानीसे बाहर रखकर टबमें बैठना चाहिये। पानीसे बाहरका शरीरका भाग ढंका रहना चाहिये, ताकि सर्दी न लगे। जिस कमरेमें यह टब रखा जाय, वह हवादार और रोशनीदार होना चाहिये। रोगीको आरामसे टबमें बैठाकर पेडू पर नरम तौलियेसे धीरे-धीरे घर्षण करना चाहिये। पांच मिनटसे लेकर तीस मिनट तक टबमें बैठ सकते हैं। स्नानके बाद गीले हिस्सेको सूखाकर रोगीको बिस्तरमें सुला देना चाहिये। यह स्नान बहुत सख्त बुखारको भी उतार देता है। इस तरह स्नान लेनेमें नुकसान तो है ही नहीं, जब कि लाभ प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। स्नान भूखे पेट ही लेना चाहिये। इससे कब्जियत को भी फायदा होता है। और अजीर्ण भी मिटता है। स्नान लेनेवालेके शरीरमें उससे स्फूर्ति आती है। कब्जियतवालोको स्नानके बाद आधा घंटा टहलनेकी सलाह सुनेने दी है। इस स्नानका मैंने बहुत उपयोग किया है। मैं यह नहीं कह सकता कि वह हमेशा ही सफल हुआ है, मगर इतना कह सकता हूँ कि सौमें पचहत्तर बार वह सफल हुआ है। खूब बुखार चढ़ा हुआ हो, तब यदि रोगीकी स्थिति ऐसी हो कि उसे टबमें बैठाया जा सके, तो उससे दो-तीन डिग्री तक बुखार अवश्य उतर जायगा और सन्निपातका भय मिट जायगा।

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