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आरोग्य कुंजी

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :45
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1967
आईएसबीएन :1234567890

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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख


१. पृथ्वी अर्थात् मिट्टी


ये प्रकरण लिखनेका मेरा हेतु यह बताना है कि नैसर्गिक उपचारों का जीवन में क्या महत्त्व है और मैंने उनका उपयोग किस तरह से किया है। इस विषय पर कुछ तो पिछले प्रकरणों में कहा जा चुका है। यहां वे बातें मुझे कुछ विस्तारसे कहनी हैं। जिन तत्वोंसे यह मनुष्यरूपी पुतला बना है, वे ही नैसर्गिक उपचारोंके साधन हैं। पृथ्वी (मिट्टी), पानी, आकाश (अवकाश), तेज (सूर्य) और वायुसे यह शरीर बना है। इन साधनोंका उपयोग यहां क्रमसे बतानेकी मैंने कोशिश की है।

13-12-'42


सन् १९०१ तक मुझे कोई भी व्याधि होती थी, तो मैं डॉक्टरोके पास भागता तो नहीं जाता था, मगर उनकी दवाका थोड़ा उपयोग कर लेता था। एक-दों चीज़ें तो मुझे स्वर्गीय डॉक्टर प्राणजीवन मेहता ने बताई थीं। मैं एक छोटे से अस्पतालमें काम करता था। कुछ अनुभव मुझे वहांसे मिला और कुछ पढ़नेसे। मुझे खास तकलीफ़ कब्जियतकी रहती थी। उसके लिए समय-समय पर मैं फ्रूट सॉल्ट लेता था। उससे कुछ आराम तो मिलता था, मगर कमजोरी मालूम होती थी, सिरमें दर्द होने लगता था और दूसरे भी छोटे-मोटे उपद्रव होते रहते थे। इसलिए डॉक्टर प्राणजीवन मेहताका बताई हुई दवा लोह (डायलाइज्ड आयरन) और नक्सवोमिका मैं लेने लगा। दवा पर मेरा विश्वास बहुत कम था। इसलिर लाचार हो जाने पर ही मैं दवा लेता था। इससे मुझे संतोष नहीं होता था।

इस अर्सेमें खुराकके मेरे प्रयोग तो चल ही रहे थे। नैंसर्गिक उपचारोंमं मुझे काफ़ी विश्वास था। मगर इस बारेमें मुझे किसीकी मदद नहीं थी। इधर-उधरसे जो कुछ मैंने पढ़ लिया था, उसके आधार पर मुख्यतः भोजनमें फेरबदल करके मैं काम चला लेता था। खब घूम लेता था, इसलिए खाट पर कभी पड़ना नहीं पड़ा। इस तरहसे मेरी ढीली-डाली गाड़ी चला करती थी। ऐसे समय जुस्टकी 'रिटर्न टू नेचर' नामकी पुस्तक भाई पोलाकने मुझे पढ़नेको दी। वे खुद उसके उपचारों को काम में नहीं लेते थे। खुराक जुस्टने जो बताई थी, वही कुछ हद तक वे लेते थे। लेकिन वे मेरी आदतों को जानते थे, इसलिए उन्होंने वह पुस्तक मुझे दी। उसमें खास जोर मिट्टी पर दिया गया है। मुझे लगा कि उसका उपयोग कर लेना चाहिये। जुस्टने कब्जियतमें मिट्टीको ठंडे पानीमें भीगोकर बगैर कपड़ेके पेड़ पर रखनेकी सूचना की है। मगर मन तो एक बारीक कपड़ेमें पुलटिसकी तरह मिट्टीको लपेट कर सारी रात अपने पेड़ू पर रखा। सबेरे उठा तो दस्तको हाजत मालूम हुई। पाखाने जाते ही बंधा दुआ सन्तोषकारी दस्त हुआ। यह कहा जा सकता है कि उस दिनसे लेकर आज तक हट सॉल्टको मैंने शायद ही कभी हुआ होगा। आवश्यक मालूम होने पर कभी अरंडीका तेल छोटा पीना चम्मच सवेरे जरूर ले लेता हूँ। मिट्टीकी यह पट्टी तीन इँच चौड़ी, छह इंच लम्बी और बाजरेकी रोटीसे दुगुनी मोटी या यह कहो कि आधा इंच मोटी होती है। जुस्टका दावा है कि जहरीले सांपने काटा हो उसे गढ्ढा खोदकर उसमें मिट्टीसे ढककर सुला देनेसे जहर उतर जाता है। यह दावा सच्चा साबित हो या न हो, परंतु मैंने स्वयं मिट्टीके जो प्रयोग किये हैं, उन्हें यहां कह दूं। मेरा अनुभव है कि सिरमें दर्द होता हो, तो मिट्टीकी पट्टी सिर पर रखनेसे बहुत फायदा होता है। यह प्रयोग मैंने सैकड़ों पर किया है। मैं जानता हूँ कि सिर-दर्द के अनेक कारण हो सकते हैं, परन्तु सामान्यतः यह कहा जा सकता है कि किसी भी कारण से सिर में दर्द क्यों न हो, मिट्टीकी पट्टी सिर पर रखने से तात्कालिक लाभ तो होता ही है। सामान्य फोड़े-फुन्सीको भी मिट्टी मिटाती है। मैंने तो बहते हुए फोड़े परभी मिट्टी रखी है। ऐसे फोड़े पर मिट्टी रखनेसे पहले मैं साफ़ कपड़ेको, परमेंगनेट को, गुलाबी पानीमें भिगोता हूँ, फोड़ेको उससे साफ करता हूँ और फिर उस पर मिट्टीकी पुलटिस रखता हूँ। इससे अधिकांश फोड़े मिट ही जाते हैं। जिन पर मैंने यह प्रयोग किया है, उनमें से एक भी केस निष्फल रहा हो ऐसा मुझे याद नहीं आता। बर्र वगैराके डंक पर मिट्टी तुरन्त फायदा करती है। बिच्छुके डंक पर भी मैंने मिट्टीका खूब प्रयोग किया है। सेवाग्राममें बिच्छूका उपद्रव आये दिनकी बात हो गयी है। बिच्छूके जितने इलाजोंका पता लगा है, वे सब इलाज सेवाग्राममें आजमा कर देखे गये हैं। मगर उनमें से किसीको भी अचूक नहीं कहा जा सकता। मिट्टी उनमें किसीसे कम साबित नहीं हुई।

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