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आरोग्य कुंजी

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :45
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1967
आईएसबीएन :1234567890

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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख


अनाजमात्रको अच्छी तरह साफ करके हाथ-चक्कीमें पीसकर बिना छाने इस्तेमाल करना चाहिये। अनाजकी भूसीमें सत्व और क्षार भी रहते हैं। दोनों बड़े उपयोगी पदार्थ हैं। इसके उपरान्त भूसीमें एक ऐसा पदार्थ होता है, जो बगैर पचे ही निकल जाता है और अपने साथ मलको भी निकालता है। चावलका दाना नाजुक होने के कारण इश्वरने उसके ऊपर छिलका बनाया है, जो खानेके कामका नहीं होता। इसलिए चावलको कूटना पड़ता है। कुटाई उतनी ही करनी चाहिये जिससे ऊपरका छिलका निकल जावे। मशीनमें चावलके छिलकेके अलावा उसकी थी भी बिलकुल निकाल डाली जाती है। इसका कारण यह है कि चावलकी भूसीमे बहुत मिठास रहती है; इसलिए अगर भूसी रखी जाय तो उसमें सुसरी या कीड़ा पड़ जाता है। गेहूं और चावलकी भूसी निकाल दें, तो बाकी केवल स्टार्च रह जाता है; और भूसीमें अनाजका बहुत कीमती हिस्सा चला जाता है। गेहूं और चावलकी भूसीको अकेला पकाकर भी खाया जा सकता है। उसकी रोटी भी बन सकती है। कोकणी चावलोंका तो आटा पीसकर उसकी रोटी ही गरीब लोग खाते हैं। पूरे चावल पकाकर खानेकी अपेक्षा चावलके आटेकी रोटी शायद अधिक आसानीसे पचती हो और थोड़ी खानेसे पूरा सन्तोष भी दे।

हम लोगोंको दाल या शाकके साथ रोटी खानेकी आदत है। इससे रोटी पूरी तरह चबायी नहीं जाती। स्टार्चवाले पदार्थोंको जितना हम चबाये और जितने वे लारके साथ मिले उतना ही अच्छा है। यह लार स्टार्च पचनेमें मदद करती है। अगर खुराकको बिना चबाये हम निगल जाये, तो उसके पचनेमें लारकी मदद नहीं मिल सकती। इसलिए खुराकको उसी स्थिति में खाना कि उसे चबाना पड़े, अधिक लाभदायक है।

स्टार्च-प्रधान अनाजोंके बाद स्नायु बांधनेवाली (प्रोटीनप्रधान) दालों इत्यादिको दूसरा स्थान दिया जाता है। दालके बिना खुराकको सब लोग अपूर्ण मानते हैं। मांसाहारीको भी दाल तो चाहिये ही। जिस आदमीको मेहनत-मजूदूरी करनी पड़ती है और पूरी मात्रामें बिलकुल दूध नहीं मिलता, उसका गुजारा दालके बिना न चले यह मैं समझ सकता हूँ। मगर मुझे यह कहने में जरा भी संकोच नहीं होता कि जिन्हें शारीरिक काम कम करना पड़ता है-जैसे कि क्लार्क, व्यापारी, वकील, डॉक्टर या शिक्षक-और जिन्हें दूध पूरी मात्रामें मिल जाता है, उन्हें दालकी आवश्यकता नहीं है। सामान्यतः दाल भारी खुराक मानी जाती है और स्टार्च-प्रधान अनाजकी अपेक्षा बहुत कम मात्रामें खायी जाती है। दालोंमें मटर और लोबिया बहुत भारी हैं। मूंग और मंसूर हलके माने जाते हैं।

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