आचार्य श्रीराम शर्मा >> युग की माँग प्रतिभा परिष्कार - भाग 2 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार - भाग 2श्रीराम शर्मा आचार्य
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युग की माँग प्रतिभा परिष्कार - भाग 1
Yug Ki Maang - a Hindi book by Sriram Sharma Acharya
भगवत्सत्ता का निकटतम और सुनिश्चित स्थान एक ही है, अंतराल में विद्यमान प्राणाग्नि। उसी को जानने-उभारने से वह सब कुछ मिल सकता है, जिसे धारण करने की वसता मनुष्य के पास है। प्राणवान् प्रतिभासंपन्नों में उस प्राणाग्नि का अनुपात सामान्यों से अधिक होता है। उसी को आत्मबल-संकल्पबल भी कहा गया है।
पारस को छूकर लोहा सोना बनता भी है या नहीं? इसमें किसी को संदेह हो सकता है, पर यह सुनिश्चित है कि महाप्रतापी-आत्मबलसंपन्न व्यक्ति असंख्यों को अपना अनुयायी-सहयोगी बना लेते हैं। इन्हीं प्रतिभावानों ने सदा से जमाने को बदला है-परिवर्तन की पृष्ठभूमि बनाई है। प्रतिभा किसी पर आसमान से नहीं बरसती, वह तो अंदर से जागती है। सवर्णों को छोड़कर वह कबीर और रैदास को भी वरण कर सकती है। बलवानों, सुंदरों को छोड़कर गाँधी जैसे कमजोर शरीर वाले व चाणक्य जैसे कुरूपों का वरण करती है। जिस किसी में वह जाग जाती है, साहसिकता और सुव्यवस्था के दो गुणों में जिस किसी को भी अभ्यस्त-अनुशासित कर लिया जाता है, सर्वतोमुखी प्रगति का द्वार खुल जाता है। प्रतिभा परिष्कार-तेजस्विता का निखार आज की अपरिहार्य आवश्यकता है एवं इसी आधार पर नवयुग की आधारशिला रखी जाएगी।
अनुक्रम
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- प्राणवान् प्रतिभाओं की खोज
- विशिष्टता का नए सिरे से उभार
- प्रतिभा परिवर्धन के तथ्य और सिद्धांत
- युगसृजन के निमित्त प्रतिभाओं को चुनौती
- प्रतिभा संवर्धन का मूल्य भी चुकाया जाए
- प्रतिभा के बीजांकुर हर किसी में विद्यमान हैं
- बड़े कामों के लिए वरिष्ठ प्रतिभाएँ
- उत्कृष्टता के साथ जुड़ें, प्रतिभा के अनुदान पाएँ