आचार्य श्रीराम शर्मा >> व्यक्तित्व परिष्कार की साधना व्यक्तित्व परिष्कार की साधनाश्रीराम शर्मा आचार्य
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नौ दिवसीय साधना सत्रों का दर्शन दिग्दर्शन एवं मार्गदर्शन
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निर्धारित साधनाओं के स्वरूप और क्रम
साधना शब्द अपने आप में अपना स्वरूप स्पष्ट करता है। बहुत कुछ पाने की और उसका उपयोग करके लाभान्वित होने की इच्छा सभी को होती है किन्तु यदि प्राप्त की साधना-सम्हालना नहीं आया, तो उपयोग और लाभ कमाना संभव नहीं होगा- यह सर्वविदित है। ऋषियों ने अनुभव किया कि ईश्वरीय सत्ता अनुदानों की वर्षा करती ही रहती है। यदि हम उन्हें साधना सीख लें, तो हर सुख सौभाग्य को अपने जीवन में जगा सकते हैं। इसीलिए उन्होने साधना की अनिवार्यता पर बहुत जोर दिया है।
हर साधना का उद्देश्य एक ही है - भावनाओं, कामनाओं, विचारणाओं और चेष्टाओं को ईश्वरीय अनुशासन के अनुरूप ढाल लेना। व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों-पहलुओं को साधने के लिए विभिन्न प्रकार की साधनदि विनिर्मित की गयी हैं। उपयुक्त साधना उपयुक्त मनोभूमि में एवं उपयुक्त वातावरण में सम्पन्न होने पर चमत्कारिक परिणाम उत्पन्न करती है।
परम पूज्य गुरुदेव का कथन है "उपासना सीमित समय में की जा सकती है, किन्तु साधना तो २४ घंटे से कम में पूरी नहीं होती है। मनुष्य की हर चेष्टा अथवा क्रिया के साथ कोई न कोई प्रवृत्ति जुड़ी होती है! हर प्रवृत्ति साधनामय बने, उसके लिए दिनचर्या से जुड़ी हर प्रक्रिया साधना रूप में ही चलानी होगी। इस दृष्टि से युग तीर्थ शान्तिकुज में ऐसी व्यवस्था बनायी गयी है कि हर साधक २४ घंटे साधनामय मनोभूमि में रह सके।
गंगा की गोद, हिमालय की छाया, सप्तऋषियों की तप:स्थली, अखण्डदीप, नित्ययज्ञ, प्रखर मार्गदर्शन, दिव्य संरक्षण, सजल श्रद्धा एवं प्रखर प्रज्ञा से ओत-प्रोत प्राणवान तीर्थ चेतना, भक्तियोग, ज्ञानयोग, कर्मयोग के त्रिवेणी संगम जैसी अनेक विशेषताएं साधक को थोड़े प्रयास में ही दिव्य अनु भूतियों की गोद में बिठा देने में सक्षम हैं। साधनाओं का स्वरूप और क्रम समझ कर साधना सत्रों में भाग लेने वाले साधक वैसा कुछ प्राप्त करने में सफल होते हैं जिसे अलौकिक कहा जा सके।
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- नौ दिवसीय साधना सत्रों का दर्शन दिग्दर्शन एवं मार्गदर्शन
- निर्धारित साधनाओं के स्वरूप और क्रम
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