आचार्य श्रीराम शर्मा >> समयदान ही युगधर्म समयदान ही युगधर्मश्रीराम शर्मा आचार्य
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प्रतिभादान-समयदान से ही संभव है
Samaydaan Hi Yugdaan - Sriram Sharma Acharya
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दान अर्थात् देना; ईश्वर प्रदत्त क्षमताओं को जागृत विकसित करना और उससे औरों को भी लाभ पहुँचाना। यही है पुण्य परमार्थ-सेवा। स्वर्गीय परिस्थितियाँ इसी आधार पर बनती हैं।
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लेना-बटोरना-दूसरों के अधिकार का अपहरण करना, यही पाप है, इसी की प्रतिक्रिया का अलंकारिक प्रतिपादन है नर्क।
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यहाँ समस्त महामानव मात्र एक ही अवलंबन अपनाकर उत्कृष्टता के प्रणेता बन सके हैं, कि उन्होंने संसार में जो पाया, उसे प्रतिफल स्वरूप अनेक गुना करके देने का व्रत निवाहा।
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धनदान तो एक प्रतीक मात्र है। उसका तो दुरुपयोग भी हो सकता है, प्रभाव विपरीत भी पड़ सकता है। वास्तविक दान प्रतिभा का है, धन साधन उसी से उपजते हैं। प्रतिभादान-समयदान से ही संभव है। यह ईश्वर प्रदत्त संपदा सबके पास समान रूप से विद्यमान है।
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वस्तुतः समयदान तभी बन पड़ता है, जब अंतराल की गहराई में, आदर्शों पर चलने के लिए बेचैन करने वाली टीस उठती हो।
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यह असाधारण समय है। तत्काल निर्णय और तीव्र क्रियाशीलता उसी प्रकार आवश्यक है जैसी कि आग बुझाने या ट्रेन छूटने के समय होती है। हनुमान, बुद्ध, समर्थ गुरु रामदास, विवेकानंद आदि ने समय आने पर शीघ्र निर्णय न लिए होते, तो ये उस गौरव से वंचित ही रह जाते, जो उन्हें प्राप्त हो गया।
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महात्मा ईसा ने ठीक ही कहा है, "श्रेष्ठ कार्य यदि बाएँ हाथ की पकड़ में आता है तो भी तुरंत पकड़ो। बाएँ से दाएँ का संतुलन बनाने जितने थोडे-से समय में ही कहीं शैतान बहका न ले....।"
विषय-क्रम
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- दान और उसका औचित्य
- अवसर प्रमाद बरतने का है नहीं
- अभूतपूर्व अवसर जिसे चूका न जाए
- समयदान-महादान
- दृष्टिकोण बदले तो परिवर्तन में देर न लगे
- प्रभावोत्पादक समर्थता
- प्रामाणिकता और प्रखरता ही सर्वत्र अभीष्ट
- समय का एक बड़ा अंश, नवसृजन में लगे
- प्राणवान प्रतिभाएँ यह करेंगी
- अग्रदूत बनें, अवसर न चूकें