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आचार्य श्रीराम शर्मा >> सफलता के सात सूत्र साधन

सफलता के सात सूत्र साधन

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :48
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15531
आईएसबीएन :0

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विद्वानों ने इन सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है, वे हैं...

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प्रयत्न और परिस्थितियाँ


हम जो सफलता चाहते हैं, जिसके लिए प्रयत्नशील हैं वह कामना कब तक पूरी हो जाएगी, इसका उत्तर सोचने से पूर्व अन्य परिस्थितियों को भुलाया नहीं जा सकता, अपना स्वभाव, सूझ-बूझ, श्रम-शीलता, योग्यता, दूसरों का सहयोग, सामाजिक परिस्थितियाँ, साधनों का अच्छा-बुरा होना, सिर पर लदे हुए तात्कालिक उत्तरदायित्व, प्रगति की गुंजायश, स्वास्थ्य आदि अनेक बातों से सफलता संबंधित रहती है और सब बातें सदा अपने अनुकूल ही नहीं रहतीं इसलिए केवल इसी आधार पर सफलता की आशा नहीं की जा सकतीं कि हमने प्रयत्न पूरा किया तो सफलता भी निश्चित रूप से नियत समय पर मिल ही जानी चाहिए।

एक विद्यार्थी बहुत परिश्रमी और ठीक प्रकार पढ़ने-लिखने वाला है और विद्याध्ययन में अपनी ओर से कुछ त्रुटि नहीं रहने देता पर परिस्थितियाँ यदि उसके प्रतिकूल रहती हैं तो परीक्षाफल संदिग्ध हो जाता है। स्वास्थ्य का यकायक बिगड़ जाना, घर में कोई आघात लगाने वाली शोक-संताप भरी दुर्घटना हो जाना, किसी कारण मन का खिन्न या क्षुभित रहना, अध्यापक का सुशिक्षित न होना, समय पर पुस्तक का न मिल सकना, बुरे साथियों द्वारा पढ़ाई के समय ध्यान बटाने वाला उच्छृंखल वातावरण बने रहना, घर से विद्यालय बहत दूर होने पर चलते-चलते थक जाना, प्रश्न-पत्र में अप्रत्याशित विषयों का आ जाना, परीक्षक की असावधानी या कठोरता, परीक्षा काल में आकस्मिक उद्वेग आदि कितने ही कारण ऐसे हो सकते हैं जिनसे परिश्रमी और ठीक तरह पढ़ने वाले विद्यार्थी को भी असफलता का मुंह देखना पड़े।

इसी प्रकार सफलता के ऐसे कारण भी हो सकते हैं, जिनके कारण कम परिश्रम करने वाला छात्र भी उत्तीर्ण हो जाए। सुशिक्षित अध्यापक, प्रसन्नतादायक वातावरण, अच्छे साथी, हल्के प्रश्न-पत्र, उदार परीक्षक, सामयिक सूझ-बूझ, परीक्षा समय का वातावरण, पर्चे आउट होना या नकल आदि का अनैतिक लाभ आदि कितने ही हम अपवादों पर ध्यान दें। स्थिर व्यवस्था और विधान के प्रति आस्था रखे। कर्म तत्परतापूर्वक करे उसमें तनिक भी असावधानी न होने दें। पर सफलता के लिए उतावले न हों। अमूक समय तक अमुक मात्रा में सफलता मिल ही जानी चाहिए यह कोई निश्चित नहीं कह सकता। परिस्थितियाँ और घटनाएँ उनमें विघ्न डाल सकती हैं और मंजिल तक पहुँचने में देर लग सकती है। बीच-बीच में कई अवसर असफलता के मिल सकते हैं। लंबा रास्ता लगातार चलते हुए कहाँ पार होता है ? बीच-बीच में रुकना भी तो पड़ता है। चलते रहने से मंजिल कटती है तो उसे प्रगति कह सकते हैं पर निरंतर चलना, निरंतर प्रगति भी कहाँ संभव है ? कुछ देर रुकना और सुस्ताना भी तो पड़ता है। जितनी देर रुके उतनी देर यही सोचते रहना उचित नहीं कि इस समय हमारा भाग्य साथ नहीं दे रहा है, प्रगति रुक रही है, सफलता नहीं मिल रही है। प्रगति की भाँति अवरोध भी प्रकृति का नियम है। दिन में काम करने के बाद रात को सोना भी तो पड़ता है।

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    अनुक्रम

  1. सफलता के लिए क्या करें? क्या न करें?
  2. सफलता की सही कसौटी
  3. असफलता से निराश न हों
  4. प्रयत्न और परिस्थितियाँ
  5. अहंकार और असावधानी पर नियंत्रण रहे
  6. सफलता के लिए आवश्यक सात साधन
  7. सात साधन
  8. सतत कर्मशील रहें
  9. आध्यात्मिक और अनवरत श्रम जरूरी
  10. पुरुषार्थी बनें और विजयश्री प्राप्त करें
  11. छोटी किंतु महत्त्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें
  12. सफलता आपका जन्मसिद्ध अधिकार है
  13. अपने जन्मसिद्ध अधिकार सफलता का वरण कीजिए

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