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आचार्य श्रीराम शर्मा >> मरणोत्तर श्राद्ध-कर्म-विधान

मरणोत्तर श्राद्ध-कर्म-विधान

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :4
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15530
आईएसबीएन :0

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इसमें मरणोत्तर श्राद्ध-कर्म विधानों का वर्णन किया गया है..... 

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दिव्य-पितृ-तर्पण

चौथा तर्पण दिव्य-पितरों के लिए है। जो कोई लोकसेवा एवं तपश्चर्या तो नहीं कर सके, पर अपना चरित्र हर दृष्टि से आदर्श बनाये रहे, उस पर किसी तरह की आँच न आने दी। अनुकरण, परम्परा एवं प्रतिष्ठा की सम्पत्ति पीछे वालों के लिए छोड़ गये।ऐसे लोग भी मानव मात्र के लिए वन्दनीय हैं, उनका तर्पण भी ऋषि एवं दिव्य मानवों की तरह ही श्रद्धापूर्वक करना चाहिए।

इसके लिए दक्षिणाभिमुख हों। वामजानु (बायाँ घुटना मोड़कर बैठे) जनेऊ अपसव्य (दाहिने कन्धे पर सामान्य से उल्टी स्थिति में) रखें।

कुशा दुहरे कर लें। जल में तिल डालें। अञ्जलि में जल लेकर दाहिने हाथ के अँगूठे के सहारे जल गिराएँ। इसे पितृतीर्थ मुद्रा कहते हैं। प्रत्येक पितृ को तीन-तीन अञ्जलि जल दें।

ॐ कव्यवाडादयो दिव्य पितरः आगच्छन्तु गृह्णन्तु एतान् जलाञ्जलीन्।

ॐ कव्यवाडनलस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः॥३॥

ॐ सोमस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः॥३॥

ॐ यमस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः॥३॥

ॐ अर्यमा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा)। तस्मै स्वधा नमः ॥३॥

ॐ अग्निष्वात्ताः पितरस्तृप्यन्ताम् इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तेभ्यः स्वधा नमः॥३॥

ॐ सोमपाः पितरस्तृप्यन्ताम् इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तेभ्यः स्वधा नमः॥३॥

ॐ बर्हिषदः पितरस्तृप्यन्ताम् इदं सतिलं जलं (गंगाजलं वा) तेभ्यः स्वधा नमः॥३॥

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    अनुक्रम

  1. ॥ मरणोत्तर-श्राद्ध संस्कार ॥
  2. क्रम व्यवस्था
  3. पितृ - आवाहन-पूजन
  4. देव तर्पण
  5. ऋषि तर्पण
  6. दिव्य-मनुष्य तर्पण
  7. दिव्य-पितृ-तर्पण
  8. यम तर्पण
  9. मनुष्य-पितृ तर्पण
  10. पंच यज्ञ

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