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आचार्य श्रीराम शर्मा >> क्या धर्म अफीम की गोली है ?

क्या धर्म अफीम की गोली है ?

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :103
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15527
आईएसबीएन :0

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क्या धर्म अफीम की गोली है ?

सत्य की उपेक्षा न हो


आज विज्ञान को अनास्था का सेनापति बनाकर खड़ा कर दिया गया है और उसे विश्रृंखलित जीवन के सैनिकों की भरती करने की छूट दे दी गई है। फलस्वरूप सदाचरण जैसी मानवीय गरिमा आज औधे मुँह पड़ी सिसक रही है। दूसरी ओर अवांछनीयता, उछुच्खलता का दानव सर्वत्र कबड्डी खेलता घूम रहा है।

अहंकार और व्यामोह का समन्वित रूप बनता है-दुराग्रह। इसमें आवेश और हठ दोनों ही जुड़े रहते हैं। फलत: चिंतन-तंत्र के लिए यह कठिन पड़ता है कि वह सत्य और तथ्य को ठीक तरह समझ सके और उचित-अनुचित का भेद कर सके। अभ्यस्त मान्यताओं के प्रति एक प्रकार की कट्टरता जुड़ जाती है। इसे अच्छी तरह से सिद्ध करने के लिए परंपराओं के निर्वाह की दुहाई दी जाती है। उसका समर्थन धर्मशास्त्र, आप्तवचन, देशभक्ति आदि के नाम पर किया जाता है और कई बार तो उसे ईश्वर का आदेश तक घोषित कर दिया जाता है।

अपना धर्म श्रेष्ठ दूसरे का निकृष्ट-अपनी जाति ऊँची, दूसरे की नीची। अपनी मान्यता सच और दूसरे की झूठ, ऐसा दुराग्रह यदि आरंभ से ही हो तो फिर सत्य-असत्य का निर्णय हो ही नहीं सकता। न्याय और औचित्य की रक्षा के लिए आवश्यक है कि तथ्यों को ढूंढ़ने के लिए खुला मस्तिष्क रखा जाए और अपने-पराए का नए-पुराने का भेदभाव न रखकर विवेक और तर्क का सहारा लेने की नीति अपनाई जाए। सत्य को प्राप्त करने का लक्ष्य इस नीति को अपनाने से पूरा हो सकता है। पक्षपात और दुराग्रह तो सत्य को समझने से इनकार करना है। ऐसे हठी लोग प्रायः सत्य और सत्यशोधकों को सताने तक में नहीं चूकते।

टेलिस्कोप के आविष्कारक गैलीलियो ने जब पृथ्वी को गतिशील बताने का सर्वप्रथम साहस किया तो पुरातन पंथी धर्मगुरुओं ने इसे धर्म के विरुद्ध ठहराया। उसे तरह-तरह से सताया गया और जेल में बंद करके सड़ाया गया। सबसे पहले जब पेरिस में रेलगाड़ी चली तो उस प्रचलन का पुरातन पंथियों ने घोर विरोध किया और कहा-जो काम हमारे महान पूर्वज नहीं कर सके, उन्हें करना अपने पूर्वपुरुषों के गौरव पर बट्टा लगाना है। रेलगाड़ी के चलाने वाले जोसफ केग्नार को उस जुर्म में जेल में डाला गया कि वह ईश्वर के नियमों के विरुद्ध काम करता है। इटली में शरीरशास्त्र की शिक्षा किसी समय अपराध थी।

आपरेशन करना पाप समझा जाता था और कोई चिकित्सक छोटा-मोटा आपरेशन भी करता पाया जाता तो उसे मृत्यु दंड सुनाया जाता था।

कारीगर रैगर बेकन ने सर्वप्रथम दो ऐनकों को जोड़कर सूक्ष्मदर्शी यंत्र बनाया था। इस आविष्कार की निंदा की गई। उस कारीगर को इस खतरनाक काम को करने के अभियोग में दस वर्ष की कैद सुनाई गई। बेचारा जेल में ही तड़प-तड़पकर मर गया।

रसायनशास्त्र के कुछ नवीन सिद्धांतों का प्रतिपादन करने के अपराध में संत अरहीनियस को प्राध्यापक के पद से पदच्युत करके एक छोटा अध्यापक बनाया गया और उसे सनकी ठहराकर अपमानित किया गया। विधि का विधान ही समझिए कि वही सिद्धांत आगे चलकर विज्ञान जगत में सर्वमान्य हुआ और उन्हें इसी खोज पर नोबुल पुरस्कार मिला।

डॉ० हार्ले ने जब सर्वप्रथम यह कहा कि रक्त नसों में भरा नहीं रहता, वरन् चलता रहता है तो समकालीन चिकित्सकों ने उसे खुले आम बेवकूफ कहा। ब्रुनो ने जब अन्य ग्रहों पर भी जीवन होने की संभावना बताई तो लोग इतने क्रुद्ध हुए कि उसे जीवित ही जला दिया।

दुराग्रह के अत्याचारों का इतिहास बहुत लंबा और बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। पिछले दिनों यह हठवादिता बहुत चलती रही है। धर्मपरंपरा, देशभक्ति, ईश्वर का आदेश आदि न जाने क्या-क्या नाम इस हठवादिता को दिए जाते हैं और सत्य एवं धर्म की आत्मा का हनन होता रहा है। मानवीय विवेक में निष्पक्ष सत्यशोधक की दृष्टि को ही प्रश्रय मिलना चाहिए। यह तभी संभव है जब धर्म आगे-आगे चले और विज्ञान तथ्यानुयायी बने।

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