आचार्य श्रीराम शर्मा >> जागो शक्तिस्वरूपा नारी जागो शक्तिस्वरूपा नारीश्रीराम शर्मा आचार्य
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नारी जागरण हेतु अभियान
नारी युग-युगान्तरों से मूक साधिका
नारी युग-युगान्तरों से मूक साधिका के रूप में संसार को स्वर्ग से भी श्रेष्ठ बनाती आई है। अनादिकाल से ही पुरुष समाज पर नारी का ऋण चला आ रहा है और चलता रहेगा। इस दृष्टि से पुरुष समाज नारी का कृतज्ञ है। वह उसके ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकता; किन्तु नारी की दुर्दशा देखकर आज ऐसा लगता है, पुरुष आज उसके अनुदानों को भूल बैठा है । फलस्वरूप कृतघ्नता का परिचय दे रहा है।
यही आज की सबसे बड़ी सभ्यता, सामाजिकता, नागरिकता एवं मानवता है कि पुरुष नारी के प्रति अपना संकीर्ण दृष्टिकोण बदले और उसके आध्यात्मिक तत्त्वों- साहस, नैतिकता, सहनशीलता, विवेक-चातुर्य, त्याग, बलिदान, समर्पण आदि से अपने आपको तथा राष्ट्र एवं समाज को सुखी एवं समुन्नत बनाए। युग परिवर्तन का भी महान् प्रयोजन पूर्ण करने के लिए सर्वतोभावेन उसी मातृशक्ति को जाग्रत् करना चाहिए, उसी को बढ़ाना चाहिए और विश्व शान्ति के उपयुक्त वातावरण बनाने की उसी से याचना करनी चाहिए।
नारी के सम्बन्ध में संकीर्ण दृष्टिकोण अपनाकर हम न केवल अपना, अपने परिवार का; वरन् समस्त संसार का अहित ही करते हैं।
नारियों के बीच प्रत्यक्ष काम करना वर्तमान परिस्थितियों में नर के लिए अति कठिन है। इसमें संदेह का वातावरण बनेगा, आशंका रहेगी और उँगलियाँ उठेगी। सहयोग मिलने की अपेक्षा असहयोग और बदनामी के प्रसंग उठ खड़े होंगे।
इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए नर को सूत्र संचालन तक ही सीमित रहना चाहिए। उसकी पीठ पीछे रहकर अधिकाधिक कार्य करना और साधन जुटाना ही उचित है। प्रत्यक्ष में तो नारी की हलचलें दृष्टिगोचर होनी चाहिए।
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