आचार्य श्रीराम शर्मा >> जागो शक्तिस्वरूपा नारी जागो शक्तिस्वरूपा नारीश्रीराम शर्मा आचार्य
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नारी जागरण हेतु अभियान
संतान को लेकर माताओं के सपने
प्राचीनकाल में हर माता चाहती थी कि मेरा बच्चा योग्य हो, समाज को कुछ देकर जाय, यशस्वी बने, कीर्तिवान् हो और इसके लिए समुचित प्रयत्न भी करती थी।
संतान को लेकर माताएँ सपने तो आज भी बड़े-बड़े देखती हैं, पर उन सपनों में संतान का भविष्य किसी उच्च पद पर आसीन बेटे की प्रतिमूर्ति में ही अधिक उज्ज्वल दिखाई देता है।
यह स्वप्न इस बात के परिचायक हैं कि मातृशक्ति की-भारतीय नारी की मनोभूमि कितनी दुर्बल और रुग्ण है। वे स्वयं तो आत्म-निर्भर या सक्षम, समर्थ होने की बात सोच ही नहीं सकतीं; अपनी संतान के संबंध में उसी दायरे में चक्कर काटती रहती हैं। देश में योग्य और प्रतिभाशाली व्यक्तित्वों का जो अभाव है, उस अभाव के लिए एक बड़ी सीमा तक मातृशक्ति की यह मनोगत अवस्था उत्तरदायी है।
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