आचार्य श्रीराम शर्मा >> इक्कीसवीं सदी बनाम उज्जव भविष्य भाग-1 इक्कीसवीं सदी बनाम उज्जव भविष्य भाग-1श्रीराम शर्मा आचार्य
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विज्ञान वरदान या अभिशाप
धर्मग्रंथों में वर्णित भविष्य कथन
धर्मग्रंथों को "अपौरुषेय" कहा गया है। उन्हें ईश्वर की वाणी माना गया है। दिव्य द्रष्टाओं, भविष्यवक्ताओं की तरह उनमें भी आने वाले समय के संबंध में बहुत कुछ कहा गया है। वे सभी इस दृष्टि से एकमत प्रतीत होते हैं कि बीसवीं सदी का अंत और इक्कीसवीं का प्रारंभ दो युगों की संधि बेला के रूप में होगा और आगामी युग मनुष्य जाति के उज्ज्वल भविष्य के रूप में सामने आएगा। इस संदर्भ में विभिन्न धर्मग्रंथों का अभिमत इस प्रकार है-
श्रीमद्भागवत- कलियुग का अंत निकट है और अभी युग संधि वेला चल रही है। इतना ही नहीं, उसके द्वादस स्कंध के द्वितीय-तृतीय अध्याय में कलियुग, उससे पूर्व और बाद के समय के लक्षणों का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है। किस प्रकार मध्य युग के बाद अनास्था का बाहुल्य, संस्कार शून्यता में अभिवृद्धि, आचार-विचार में भ्रष्टता का आधिक्य होगा, यह सब प्रथम अध्याय में वर्णित है। द्वितीय अध्याय में कलिकाल की विवेचना करते हुए शुकदेव जी नई-नई बीमारियों का पनपना, असहिष्णु होना, वह सब जो इन दिनों हम देख रहे हैं, इस काल की विशेषता बताते हैं। सतयुग का उल्लेख करते हुए वे कहते हैं कि कलियुग के अंतिम दिनों में निष्कलंक सत्ता के अवतरण में सद्भावना और सात्विकता की सर्वत्र अभिवृद्धि होगी।
वाल्मीकि रामायण में युद्ध कांड के श्लोक ९५-१६० में सतयुग के आगमन को सुनिश्चित बताते हुए, उस समय में लोगों के व्यवहार, दृष्टिकोण, परिस्थिति का वर्णन किया गया है।
हरिवंश पुराण के भविष्य पर्व में कहा गया है कि कलियुग की पूर्व संधिवेला के समापन का ठीक यही उपयुक्त समय है।
महाभारत के वन पर्व में उल्लेख आता है कि जब एक युग समाप्त होकर दूसरे का प्रारंभ निकट आता है, तो संसार में संघर्ष और विग्रह उत्पन्न होते हैं। जब चंद्र, सूर्य और बृहस्पति तथा पुष्य नक्षत्र एक राशि में आएँगे, तब सतयुग का शुभारंभ सुखद भविष्य के रूप में होगा।
ओल्ड टेरटामेंट के डैनियल तथा "रेवेलेशन'' अध्यायों में इस बात की चर्चा की गई है कि बीसवीं सदी की समाप्ति से पूर्व नया युग आने से पहले प्राकृतिक आपदा और मानवी विग्रह चरमोत्कर्ष पर होंगे। "सेवन टाइम" वर्णित इन भविष्य वाणियों के विशेषज्ञ समझे जाने वाले पुरातत्ववेत्ता एवं हिब्रू भाषा विशारद डा. विलियम अलब्राइट एवं जेम्दा ग्रांट ने इनके घटित होने का सही-सही समय म १८० रो २००० के बीच बताया है। इसमें इस सदी के अंत में स्वर्णिम युग की स्थापना की भी बात कही गई है। नोस्ट्राडेमस की ऐसी ही भविष्य वाणियों की संगति इससे ठीक-ठीक बैठ जाती है।
इस्लाम धर्म- इसमें भी चौदहवीं सदी को उथल-पुथल भरा समय बताय। गया है। यह समय आज की परिस्थितियों से पूर्णत: मेल खाता है। "कुरआन सार" पुस्तक में बिनोवा लिखते हैं कि कयामत के बाद समस्त पृथ्वी पर ऐसा प्रकाश छा जाएगा कि हमेशा दिन रहे, रात्रि की कालिमा कभी न आए। वे कहते हैं कि इस दिव्य प्रकाश से विश्वात्मा को अद्भुत शांति मिलेगी।
"इस्लाम भविष्य की आशा" पुस्तक में श्री सैयदकुल कहते हैं कि इक्कीसवीं सदी का प्रारंभ विज्ञान और धर्म के अद्भुत समन्वय के रूप में होगा। डा. कैरेल की पुस्तक ''अज्ञात मानव'' का हवाला देते हुए वे लिखते हैं कि आने वाले समय में शिक्षा प्रणाली आमूलचूल बदलेगी और भाव प्रधान शिक्षा पर जोर दिया जाएगा। इससे वातावरण आध्यात्मिक बनेगा और नई मानव जाति के रूप में पृथ्वी पर महामानवों का प्रादुर्भाव होगा, जिससे सर्वत्र एकता और समता का राज्य स्थापित होगा।
इस प्रकार न केवल दिव्य दृष्टि संपन्न महामानव, अपितु विभिन्न धर्मग्रंथ भी एक ही तथ्य की ओर संकेत करते हैं कि नवयुग की अरुणोदय वेला आ पहुँची। अब समय के प्रवाह के साथ व्यक्ति को अपने चिंतन को भी बदल लेना चाहिए, नहीं तो परब्रह्म को चेतन सत्ता उसे दंड व्यवस्था द्वारा भी सही मार्ग पर लाना जानती है एवं वह ऐसा करके रहेगी।
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