आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री साधना क्यों और कैसे गायत्री साधना क्यों और कैसेश्रीराम शर्मा आचार्यडॉ. प्रणव पण्डया
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गायत्री साधना कैसे करें, जानें....
आदिशक्ति, वेदमाता, देवमाता, विश्वमाता
के रूप में गायत्री का परिचय
गायत्री परमात्मा की वह इच्छा शक्ति है जिसके कारण सारी सृष्टि चल रही है। छोटे से भाप से लेकर पूरे विश्व-ब्रह्माण्ड तक व नदी-पर्वतों से लेकर पृथ्वी चाद व सूर्य तक सभी उसी की शक्ति के प्रभाव से गतिशील हैं। वृक्ष-वनस्पतियों में लीवन की तरंगें उसी के कारण उठ रही हैं। अन्य प्राणियों में उसका उतना ही अंश मौजूद है जिससे कि उनका काम आसानी से चल सके। मनुष्य में उसकी हाजिरी सामान्य रूप से मस्तिष्क में बुद्धि के रूप में होती है। अपना जीवन निर्वाह और सुख-सुविधा बढ़ाने का काम वह इसी के सहारे पूरा करता है। असामान्य रूप में यह 'ऋतम्भरा प्रज्ञा' अर्थात सद्बुद्धि के रूप में प्रकट होती है। जो उसे सही गलत की समझ देकर जीवन लक्ष्य के रास्ते पर आगे बढ़ाती है। आम तौर पर यह मनुष्य के दिलो दिमाग की गहराई में सोई रहती है। इसको जिस विधि से जगाया जाता है उसको 'साधना' कहते हैं। इसके जागने पर मनुष्य का सम्बन्ध ईश्वरीय शक्ति से जुड़ जाता है।
स्वयं परमात्मा तो मूलरूप में निराकार है, सबकुछ तटस्थ भाव से देखते हुए शान्त अवस्था में रहते हैं। सृष्टि के प्रारम्भ में जब उनकी इच्छा एक से अनेक होने की हुई, तो उनकी यह चाहना व इच्छा एक शक्ति बन गई। इसी के सहारे यह सारी सृष्टि बनकर खड़ी हो गई। सृष्टि को बनाने वाली प्रारम्भिक शक्ति होने के कारण इसे ' आदिशक्ति ' कहा गया। पूरी विश्व व्यवस्था के पीछे और अंदर जो एकसंतुलन और सुव्यवस्था दिख रही है, वह गायत्री शक्ति का ही काम है। इसी की प्रेरणा से विश्व-ब्रह्माण्ड की सारी हलचलें किसी विशेष उद्देश्य के साथ अपनी महायात्रा पर आगे बढ़ रही हैं।
ब्रह्माजी को सृष्टि फे निर्माण और विस्तार के लिए जिस ज्ञान और किया-कौशल की जरूरत पड़ी थी, वह उन्हें आदिशक्ति गायत्री की तप-साधना द्वारा ही प्राप्त हुआ था। यही ज्ञान-विज्ञान वेद कहलाया और इस रूप में आदिशक्ति का नाम वेदमाता पड़ा अर्थात् वेदों का सार गायत्री मंत्र में बीज रूप में भरा पड़ा है।
सृष्टि की व्यवस्था को संभालने व चलाने वाली विभिन्न देव शक्तियाँ आदिशक्ति की ही धाराएँ हैं। जैसे एक ही विद्युत-शक्ति अलग- अलग काम करने वाले यंत्रों के अनुरूप, खूब लाइट, हीटर रेफ्रिजरेटर, कूलर आदि विभिन्न रूपों में सक्रिय दिखती इसी प्रकार एक ही आदिशक्ति रचना, संचालन, परिवर्तन आदि क्रियाओं के अनुरूप, ब्रह्मा, विष्णु महेश जैसी देवशक्तियों के रूप में अलग-अलग प्रतीत होती है। इसी तरह अन्य देव शक्तियाँ भी इसी की विविध धाराएँ हैं व इसी से पोषण पाती हैं। इस रूप में इसे देवमाता नाम से जाना जाता है। देवमाता का अनुग्रह पाने वाला सामान्य व्यक्ति भी देवतुल्य गुण व शक्ति वाला बन जाता है।
सारे विश्व की उत्पत्ति आदिशक्ति के गर्भ में हुई, अत: इसे विश्वमाता नाम से भी जाना जाता है और इस रूप में मां का कृपा पात्र व्यक्ति, विश्व मानव बनकर 'वसुधैव कुटुम्बकम्' अर्थात् पूरा विश्व अपना परिवार के उदार भाव में जीने लगता है।
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